बौद्धकालीन युग व लिच्छवी राजवंश के इतिहास से जुड़ा है रामबाग मंदिर

लालगंज नगर : लालगंज प्रखंड क्षेत्र के घटारो गांव के समीप नारायणी नदी के तट पर स्थित रामबाग की अनोखी दास्तान बौद्धकालीन युग और लिच्छवी राजवंश से जुड़ी एक रहस्यमयी गाथा है. सदियों से बुजुर्गों द्वारा अपनी आगे की पीढ़ियों को इससे जुड़ी कहानियां सुनाकर अपनी मान्यताओं को बल प्रदान किया गया. दिवंगत व वर्तमान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 4, 2017 8:27 AM
लालगंज नगर : लालगंज प्रखंड क्षेत्र के घटारो गांव के समीप नारायणी नदी के तट पर स्थित रामबाग की अनोखी दास्तान बौद्धकालीन युग और लिच्छवी राजवंश से जुड़ी एक रहस्यमयी गाथा है. सदियों से बुजुर्गों द्वारा अपनी आगे की पीढ़ियों को इससे जुड़ी कहानियां सुनाकर अपनी मान्यताओं को बल प्रदान किया गया. दिवंगत व वर्तमान बुजुर्गों ने मान्यताओं के हवाले से अपनी-अपनी अगली पीढ़ी को रामबाग की दास्तान सुना-सुनाकर गाथा के प्रति लोगों में विश्वास का बीजारोपण किया.
गुमनामी के अंधेरे में डूबा है स्थापित शिवलिंग: मान्यताओं के मुताबिक त्रेता युग से पहले रामबाग मंदिर में स्थापित शिवलिंग आज गुमनामी के अंधेरे में खोया हुआ है. जहां अयोध्या से जनकपुर के लिए चले भगवान श्री राम ने विश्राम किया था. आज से नहीं बल्कि पूर्व से ही उक्त बागवानी का नाम रामबाग के रूप में प्रचलित है.
रामबाग स्थित मंदिर पर पहुंचे थे भगवान श्रीराम: पौराणिक कहानियों के अनुसार जब महान तपस्वी विश्वामित्र वन में ऋषि-मुनियों द्वारा यज्ञ कर प्रारंभ किये जाने पर भगवान शिव की कठोर तपस्या कर वरदान प्राप्त करने के बाद लंका अधिपति रावण अपने बल का दुरुपयोग कर ऋषि-मुनियों के अनुष्ठान में बाधा उत्पन्न करता था और उन्हें कठोर ढंग से प्रताड़ित भी करता था. उस समय महर्षि विश्वामित्र अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण को आश्रम में ले जाने के लिए अयोध्या पहुंचे थे, तब राजा दशरथ ने पुत्र मोह त्यागकर महर्षि विश्वामित्र का आदर सत्कार करते हुए भगवान राम और लक्ष्मण को उनके गुरुकुल आश्रम में जाने की इजाजत दी थी. उसके बाद ऋषि विश्वामित्र के साथ अयोध्या से चलकर भगवान हाजीपुर के रामभद्र पहुंचे थे.
हाजीपुर के रामभद्र में आज भी मौजूद है भगवान राम का चरणपादुका: रामचौड़ा सह रामभद्र स्थित चर्चित मंदिर में आज भी भगवान राम का चरणपादुका मौजूद है. वहां से चलकर वे घंटाराव पहुंचे थे.
कालांतर में घंटाराव के अपभ्रंश के रूप में घटारो शब्द के रूप में संबंधित गांव का नाम प्रचलित हुआ. उस जगह को उस समय लालबाग भी कहा जाता था. जहां स्वयं भगवान श्री रामचंद्र, शेषावतार व उनके प्रिय भ्राता लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र तीनों ने लालबाग में विश्राम किया था. उसी समय बौद्धकालीन शिवलिंग की स्थापना की गया थी, स्वयं भगवान रामचंद्र जी ने उक्त शिवलिंग पर पुष्प अर्पित कर भगवान शिव की पूजा की थी.
आज वह रामबाग राघवानंद जी की देखरेख में सन 1982 से है. प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार आज भी नारायणी नदी से सटे बांध जहां भी हैं. महज प्रति एक किलोमीटर की दूरी पर बौद्धकालीन कुआं भी मौजूद है. यह भी कहा जाता है कि श्री रामचंद्र जी ने भगवान बुद्ध का दर्शन रामबाग में किया था.

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