आम लोगों को नहीं मिल रहा 100 नंबर का लाभ
।। राहुल अमृज राज ।। हाजीपुर : सरकार द्वारा आम जनता के लिए जारी किया गया पुलिस का टॉल फ्री नंबर 100 कुछ दिनों तक तो ठीक-ठाक चला, लेकिन इन दिनों इस नंबर पर फोन करने पर कभी प्लीज चेक्ड दी नंबर तो कभी, दिस रूट इज बिजी, वगैरह बता कर कट जा रहा है. […]
।। राहुल अमृज राज ।।
हाजीपुर : सरकार द्वारा आम जनता के लिए जारी किया गया पुलिस का टॉल फ्री नंबर 100 कुछ दिनों तक तो ठीक-ठाक चला, लेकिन इन दिनों इस नंबर पर फोन करने पर कभी प्लीज चेक्ड दी नंबर तो कभी, दिस रूट इज बिजी, वगैरह बता कर कट जा रहा है. इस नंबर पर दसों बार फोन करने पर घंटी नहीं बजती है.
पुलिस की सेवा लेने के लिए आज छोटा बच्च भी पुलिस का नंबर पूछने पर जल्दबाजी में वन डबल जीरो यानी 100 बताता है. किसी भी नयी कंपनी का मोबाइल कनेक्शन लेने पर मोबाइल फोन ऑपरेटर उस सिम कार्ड में पुलिस का नंबर 100 पहले से ही फोनबुक में लोड कर बिक्री के लिए बाजार में उतारता है.
पुलिस के इस नंबर को जब आम जनता के लिए जारी किया गया था तो इस नंबर का सार्वजनिक स्थानों पर काफी प्रचार-प्रसार किया गया था. बीते लगभग तीन वर्ष पहले सदर थाना क्षेत्र के दौलतपुर में हुई एक हत्या की घटना की जानकारी एक छोटे बच्चे ने पुलिसवालों को इसी 100 नंबर पर दी थी. नंबर जारी होने के समय लोगों में इस बात को लेकर काफी खुशी थी.
अब अपने थाने या पुलिस कप्तान को किसी भी घटना की जानकारी देने के लिए सभी नंबर अलग-अलग रहने से उसे लिख कर रखने की झंझट से मुक्ति मिली, लेकिन यह नंबर अब सिर्फ शोभा की वस्तु बना हुआ है. दूसरी और जिले के लगभग सभी थानों में थानाध्यक्ष से बात करने के लिए मोबाइल फोन नंबर के साथ-साथ सभी थानों का बेसिक फोन नंबर आज भी है, लेकिन थानाध्यक्ष अगर किसी मामला के अनुसंधान में देहाती क्षेत्रों में निकल जाते हैं तो उनका मोबाइल फोन आउट ऑफ रेंज यानी कवरेज एरिया से बाहर बताये जाने की स्थिति में अगर कोई व्यक्ति किसी प्रकार की सूचना देने के लिए थाने के बेसिक फोन पर संपर्क करना चाहता है तो फोन लगता ही नहीं है.
जिले के लगभग सभी थानों का फोन लंबे समय से डेड यानी मृत पड़ा हुआ है. थानों के बेसिक फोन को ठीक कराने के लिए न थानाध्यक्ष ध्यान देते हैं और नहीं कोई वरीय पुलिस पदाधिकारी. अगर किसी थाने का बेसिक फोन ठीक भी है तो उस थाना के ओडी पदाधिकारी रिसीवर को हटा कर रखे रहते हैं. ऐसा नहीं है कि जिस थाने का फोन डेड है उस फोन को थानाध्यक्ष टेबल से हटा कर किसी काल कोठरी में रख दिये हैं, बल्कि उसे अपने टेबल पर शोभा की वस्तु मान कर रखे रहते हैं.
थानों के फोन लंबे समय से डेड पड़े रहने से बिहार सरकार को तो दूरसंचार विभाग को मासिक पैसा चुकता करना ही पड़ता है, सरकार के द्वारा जनता को सुविधा प्रदान करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन उन संसाधनों का देखरेख करनेवाला कोई नहीं है. इन्हीं कारणों से हमेशा आम जनता उत्तेजित होकर यह कहती है कि पुलिस तथा फायर ब्रिगेड की गाड़ियां घटना के काफी देर से पहुंचती हैं. इस बात का ताजा उदाहरण सहदेई बुजुर्ग स्टेशन पर रात के लगभग एक बजे हुई घटना है.
जब डकैत स्टेशन अधीक्षक उमेश प्रसाद सिंह के साथ मारपीट कर 32 हजार रुपये छीन लिए और प्वाइंटमैन द्वारा लाउडस्पीकर से एलाउंस कर डकैतों द्वारा तांडव मचाने की जानकारी गांव वालों को दी गयी. इससे बौखलाये डकैतों ने प्वाइंट मैन हरिशंकर मंडल पर ताबड़तोड़ चाकू से प्रहार कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया. प्वाइंट मैन श्री मंडल आज पीएमसीएच में मौत से जूझ रहा है.
डकैत लगभग आधा घंटा तक स्टेशन अधीक्षक के कार्यालय में तांडव मचाते रहे और स्टेशन से सहदेई बुजुर्ग ओपी की दूरी जो कोई भी व्यक्ति पैदल पांच मिनट में पहुंच जाये वहां पुलिस लगभग एक घंटा बाद पहुंची.