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प्रद्युम्न को कई धाराओं में सुनायी गयी सजा

हाजीपुर : फादर टेरेसा के रूप में चर्चित वैशाली के चकवाजा में अनाथ आश्रम के संचालक प्रद्युम्न कुमार को विभिन्न धाराओं में पॉक्सो के विशेष न्यायाधीश सह अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम बीके तिवारी ने सजा सुनायी. उन पर अपने अनाथ आश्रम के संचालन के दौरान अनाथ बच्चों का यौनशोषण समेत अन्य गैर कानूनी […]

हाजीपुर : फादर टेरेसा के रूप में चर्चित वैशाली के चकवाजा में अनाथ आश्रम के संचालक प्रद्युम्न कुमार को विभिन्न धाराओं में पॉक्सो के विशेष न्यायाधीश सह अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम बीके तिवारी ने सजा सुनायी.
उन पर अपने अनाथ आश्रम के संचालन के दौरान अनाथ बच्चों का यौनशोषण समेत अन्य गैर कानूनी कार्य करने का दोषी पाया गया. इसके बाद उन्हें सजा दी गयी.
सजा प्राप्त प्रद्युमA कुमार का जीवन : पटेढ़ी बेलसर प्रखंड के चकवाजा गांव निवासी अधिवक्ता प्रद्युमA कुमार ने अपना पेशा छोड़ कर अपने ही गांव में लोक सेवा आश्रम के नाम से अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम खोला. इस बात से उनकी ख्याति देश ही नहीं विदेशों में भी जा पहुंची. कई विदेशी भी उनके इस आश्रम पर पहुंच गये और उन्हें इसके लिए शाबाशी दी. इसका परिणाम निकला कि लोग उन्हें फादर टेरेसा के नाम से पुकारने लगे.
अनैतिक कार्य का केंद्र बताया गया : जब आश्रम चल निकला, तो अचानक लोगों ने आश्रम पर अनैतिक कार्य करने और होने का आरोप लगा दिया. कहा जाने लगा कि वहां पर रहने वाले बच्चे अनाथ नहीं हैं. वे आसपास के बच्चे हैं, जिन्हें प्रद्युमA बहला-फुसला कर लाते हैं. मात्र एक या दो बच्चे ही ऐसे थे, जो सही रूप से अनाथ कहे जाते थे.
जब खुली कलई : वर्ष 2013 में 25 अक्तूबर को आश्रम के कुछ बच्चे बीमार हो गये. इलाज के दौरान एक बच्चे की मौत हो गयी. इसके बाद प्रशासन के पास आरोपों के पत्र और आवेदन दिये जाने लगे,जिसमें कई आरोप लगाये गये थे. इसके बाद कई जांच दलों ने आश्रम की जांच की और वहां पर कई गंभीर मामले पाये जाने की बात कही. इसके बाद प्रद्युम्न पर बेलसर ओपी में वैशाली थाना कांड संख्या 270/13 दर्ज करायी गयी और 26 अक्तूबर को उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
बिहार में पॉक्सो का यह पहला मामला : 14 नवंबर को 2012 को पॉक्सो के वजूद में आने के बाद यह पहला संस्थागत मामला बना है, जिसमें एक साथ आठ पीड़ितों ने एक ही व्यक्ति के खिलाफ यौनशोषण का आरोप लगाया. मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने मामले का स्पीडीट्रायल करने का आदेश जारी किया. इसके बाद दो दिसंबर को पॉक्सो न्यायालय को इस मामले को सौंप दिया गया.
कब और क्या हुआ
29 अप्रैल, 2014 को मामले के आरोपित प्रद्युमA कुमार के खिलाफ भादवि की धारा 341, 323, 420, 406, 376, 377 एवं पॉक्सो की धारा 4, 6 एवं 8 के अंतर्गत आरोप गठित हुआ
आरोप गठन के बाद अभियोजन पक्ष ने न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी आरआर सिंह, तीन सूचक, तीन चिकित्सक, छह पीड़ित बच्चे सहित 15 साक्ष्य न्यायालय में प्रस्तुत किये गये, जबकि सफाई पक्ष ने मात्र पांच लोगों को ही खड़ा किया.
लगभग सात माह तक चले साक्ष्य, बहस और सुनवाई के बाद 28 नवंबर को न्यायालय में आदेश के लिए 10 दिसंबर की तिथि निर्धारित की.
– सजा के दिन 10 दिसंबर को न्यायालय ने प्रद्युमA को भादवि की धारा 376 और 377 तथा पॉक्सो की दो धारा में ही सजा सुनायी. अन्य धाराओं में साक्ष्य नहीं मिलने के कारण बरी कर दिया गया.
न्यायालय ने बचाव पक्ष की सुनी बात
उम्र और शारीरिक जीर्णता का वास्ता देकर बचाव पक्ष ने कम-से-कम सजा देने की अपील न्यायालय से की, जिसकी बात न्यायालय ने सुनी और इसी के अनुरूप सजा दी. प्रद्युमA के अधिवक्ता ने आरोपित के 70 वर्ष का होने, तीन-तीन पुत्रियों की शादी करने, 105 वर्षीया बूढ़ी मां की देखभाल करने तथा एकमात्र पुत्र की शिक्षा-दीक्षा इनके ऊपर होने की बात कही थी, जिस पर न्यायालय ने विचार किया.वहीं अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ने इसका विरोध किया और कठोर दंड देने की मांग की.

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