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अंधेपन को मात दे बनायी अपनी अलग राह

हाजीपुर : कड़ी मेहनत एवं सच्ची लगन की बदौलत रामजीवन ने अपने अंधापन को न सिर्फ मात दी, बल्कि सात वर्षो से शिक्षा जगत में अपनी सराहनीय भूमिका निभा रहे हैं. वे वैशाली जिले में एकमात्र ब्रेल लिपि से पढ़ाने वाले नेत्रहीन शिक्षक हैं. काफी संघर्ष के बाद लक्ष्य हासिल करनेवाले राम जीवन ने कभी […]

हाजीपुर : कड़ी मेहनत एवं सच्ची लगन की बदौलत रामजीवन ने अपने अंधापन को न सिर्फ मात दी, बल्कि सात वर्षो से शिक्षा जगत में अपनी सराहनीय भूमिका निभा रहे हैं. वे वैशाली जिले में एकमात्र ब्रेल लिपि से पढ़ाने वाले नेत्रहीन शिक्षक हैं.

काफी संघर्ष के बाद लक्ष्य हासिल करनेवाले राम जीवन ने कभी भी अंधापन को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. उन्होंने माता-पिता की मौत के बाद बगैर विचलित हुए अपनी मंजिल की ओर कदम-दर-कदम बढ़ते रहे. फिलहाल यह नेत्रहीन शिक्षक हाजीपुर के मीनापुर राई उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में छात्र-छात्राओं के बीच शिक्षा की रोशनी फैला रहे हैं. वे इस विद्यालय में ब्रेल लिपि के माध्यम से नौवीं एवं दसवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे हैं.

रामजीवन का परिचय

नाम-राम जीवन प्रसाद

पिता का नाम-स्व दुखी महतो

माता का नाम -स्व लक्ष्मी देवी

पत्नी का नाम -रीबू देवी

पुत्र का नाम-विवेक एवं विगणोश

भाई का नाम- रामसेवक एवं कृष्णा

गांव -औगाड़ी

जिला – नालंदा (बिहार)

कैसे पूरी की पढ़ाई : राम जीवन ने प्रारंभिक शिक्षा पटना के कदमकुआं स्थित नेत्रहीन विद्यालय से प्राप्त की. माध्यमिक शिक्षा के लिए पटना कॉलेजिएट में दाखिला लिया. फिर इंटरमीडिएट से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट व बीएड तक की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की. इसके बाद देहरादून स्थित राष्ट्रीय दृष्टि बाधित स्कूल से ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग प्राप्त की. 1998 तक रामजीवन ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली थी.

दिल्ली में पायी पहली नौकरी : शिक्षा पूरी करने के बाद राम जीवन नौकरी की तलाश में भटक रहा था. इसी बीच वर्ष 2003 में उसे दिल्ली के नेशनल फेडरेशन ऑफ दि ब्लाइंड नामक संस्था में नौकरी मिली. तीन साल यहां काम करने के बाद उसने शिक्षा जगत में ही काम करने की ठान ली. उस वक्त बिहार सरकार में शिक्षक नियुक्ति की घोषणा की गयी थी. आरक्षित कोटे से उन्हें नौकरी मिल गयी.

शिक्षक बन पहुंचा हाजीपुर : 2008 में राम जीवन सरकारी शिक्षक बने. हाजीपुर सदर इलाके के मीनापुर राई उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में योगदान करने का विभाग ने आदेश दिया. यहां सोशल साइंस के विषयोंे को पढ़ाने का उन्हें मौका मिला. इतिहास से बीए की पढ़ाई करनेवाले इस नेत्रहीन शिक्षक ने यहां चुनौती भरा कार्य शुरू किया. अब तक इसी विद्यालय में नौवीं एवं 10वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे हैं.

ब्रेल लिपि विधि से बढ़ाते हैं : ब्रेल लिपि विधि से वे बच्चों को पढ़ाते हैं या फिर छात्र-छात्राओं के सवाल पूछने पर जवाब देते हैं. पहले विद्यार्थी पढ़ते हैं, उसके बाद वे उसे अच्छी तरह समझा देते हैं. उन्हें इस काम में कोई दिक्कत नहीं होती.

अनुशासन के बने पर्याय : प्रतिदिन समय पर विद्यालय पहुंच कर वे अनुशासन की मिसाल पेश कर रहे हैं. साथ ही अपनी कक्षा में भी निर्धारित समय पर पहुंच कर बच्चों को नयी दिशा देने में मग्न हो जाते हैं. पहले तो पटना से आते-जाते थे. लेकिन अब हाजीपुर के चंद्रालय में एक किराये के मकान में परिवार के साथ रहते हैं.

तीनों भाई हैं शिक्षक : स्व दुखी महतो के तीन पुत्र हैं. वर्तमान में सभी शिक्षक हैं. सबसे बड़ा पुत्र राम सेवक प्रसाद फिलहाल झारखंड में मध्य विद्यालय में कार्यरत हैं. दूसरे कृष्णा प्रसाद पटना के सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ाते हैं. खुद हाजीपुर में पढ़ा रहे हैं.

बिहार में नहीं है ब्रेल लिपि की व्यवस्था : राम जीवन

हाजीपुर. बिहार में अंधापन के शिकार लोगों के लिए ब्रेल लिपि प्रणाली की व्यवस्था नहीं है. इसके लिए दूसरे प्रांत में लोगों को जाना पड़ता है. दूसरे राज्यों में जाने में काफी परेशानी होती है. इस कारण बिहार के बड़ी संख्या में लोग ब्रेल लिपि प्रणाली से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते. शिक्षक रामजीवन प्रसाद का कहना है कि बिहार में भी ब्रेल लिपि प्रणाली को विकसित किया जाना चाहिए. अंधापन से ग्रसित लोगों के लिए यह प्रणाली बहुत जरूरी है. साथ ही इनसान को कभी संघर्ष करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. मेहनत करने पर ही सफलता मिलती है.

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