मुंशी के सहारे चलता है काम

अव्यवस्था : किराये के मकान के बेसमेंट में चल रहा एससी-एसटी थाना जिले का एकमात्र एससी-एसटी थाना में शायद ही सही समय पर पुलिस कर्मी मिलते हों. फरियादी आ कर लौट जाते हैं. कई कई दिनों के बाद जब थानाध्यक्ष नहीं मिल पाते हैं तो फरियादी अपना मामला कोर्ट में दर्ज कराते हैं. आम लोगों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 10, 2015 8:21 AM
अव्यवस्था : किराये के मकान के बेसमेंट में चल रहा एससी-एसटी थाना
जिले का एकमात्र एससी-एसटी थाना में शायद ही सही समय पर पुलिस कर्मी मिलते हों. फरियादी आ कर लौट जाते हैं. कई कई दिनों के बाद जब थानाध्यक्ष नहीं मिल पाते हैं तो फरियादी अपना मामला कोर्ट में दर्ज कराते हैं. आम लोगों के अनुसार दलितों एवं महादलितों के विवादों को सुलझाने के कोई पुलिस कर्मी समय नहीं देते.
हाजीपुर : एससी-एसटी थाने में सुबह-शाम सिर्फ चाय-पानी लेने ही यहां के पुलिस पदाधिकारी आते हैं. पूरा वक्त एक मुंशी के सहारे कटता है. प्राथमिकी दर्ज कराने के अलावा और भी कई काम थाना से लोगों को होती है. देखा जाता है कि थानाध्यक्ष कभी भी स्थायी रूप से नहीं बैठते है. बताया जाता है कि दूर-दूर से आने वाले दलित व महादलित समुदाय के पीड़ित लोग दिन भर इंतजार के बाद वापस चले जाते हैं.
कभी नहीं लगा जनता दरबार : एसटी-एससी थाने में जनता दरबार कभी नहीं लगाया गया. जबकि थाना के बाहर लगे बोर्ड पर हर मंगलवार को जनता दरबार लगाने की घोषणा की जा चुकी है. अधिकतर मंगलवार को दर्जनों लोग जनता दरबार लगे होने की आशा में आ कर वापस लौट जाते हैं. बताया गया है कि जनता दरबार नहीं लगने पर थानाध्यक्ष को दोषी माना जाता है. उसके खिलाफ कार्रवाई भी होती है. मगर यहां के थानाध्यक्ष के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. हालांकि वैशाली के नये एसपी ने हर सोमवार को थानों में जनता दरबार लगाने का आदेश दिया है.
पुलिसकर्मियों को नहीं है उचित सुविधा : यहां के पुलिस पदाधिकारी की लापरवाही के भी कई कारण बताये जाते हैं. थाना में पर्याप्त बुनियादी सुविधा नहीं है. सिर्फ एक कमरा में थाना का पूरा काम निबटाया जाता है. शौचालय एवं पेयजल की समस्या भी है. रहने की व्यवस्था को लेकर भी पुलिस कर्मी परेशान रहते हैं. उपस्करों के अभाव के अलावा कई और समस्या है. न तो यहां पुलिस कर्मियों के लिए बैरक है और न ही उनके लिए रहने-सहने की कोई व्यवस्था ही उपलब्ध है.
लंबित है दर्जनों महत्वपूर्ण मामले : इस थाना में दलित व महादलित परिवार के कई ऐसे मामले हैं, जिसका अब तक निष्पादन नहीं किया गया है. पिछले वर्ष के दर्जनों विवाद की प्राथमिकी दर्ज की गयी. लेकिन, अब तक उसका कभी सुपरविजन नहीं हुआ. आरोपितों को धर- पकड़ करने की कार्रवाई भी बहुत कम होती है.
अनुसंधान कर्मियों की शिथिलता के चलते ढ़ेरों मामले का अनुसंधान वर्षाें से लंबित चल रहा है. गरीब तबके के दलित-महादलित यहां न्याय की आशा में पहुंचते तो हैं जरूर, लेकिन उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता है. पीड़ितों का आरोप है कि एससी-एसटी थाने में पहुंचे मामले को यहां केवल कामधेनु समझा जाता है. गिरफ्तारी और कार्रवाई की मांग करने पर उलटे पीड़ित दलित-महादलितों को डांट-डपट कर भगा दिया जाता है.
वर्ष 2014 के मामले नही सुलङो : गत वर्ष 35 प्राथमिकी दर्ज करायी थी. जिसमें पांच फीसदी मामलों को भी सुलझाया नहीं गया. सभी लंबित बताये जा रहे हैं. केस के आइओ की बदली होती रही. मामलों की फाइल खुली तक नहीं. इस वर्ष भी कई मामले दर्ज हो चुके हैं मगर निष्पादन की दिशा में काम नहीं होना बताया जा रहा है.
मामले जो नहीं सुलझाये गये
मुंशी के सहारे चलता है थाना : अक्सर देखा जाता है कि थानाध्यक्ष एवं अन्य पुलिस पदाधिकारी गायब रहते हैं. सिर्फ मुंशी ही पूरा भार अपने कंधों पर उठाये रहते हैं. केस दर्ज करने को भी टाल -मटोल किये जाने की खबर मिलती रहती है. बताया जाता है कि यहां कई पद खाली हैं. जिसके कारण मामलों को निष्पादन करने में काफी परेशानी होती है. दलित उत्पीड़न की शिकायत को ढंग से सुलझाने में यह थाना नाकाम साबित हो रहा है.
वाहनों की है समस्या : बताया कि इस थाना में पर्याप्त संख्या में पुलिस वाहन नहीं है. जजर्र वाहन से ही पुलिसकर्मियों को आना-जाना पड़ता है. हालांकि गत दिनों में कई थानाध्यक्षों ने वाहनों की मांग की थी, लेकिन आज तक विभाग द्वारा वाहनों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया. वाहनों के अभाव के कारण सैंकड़ों मामले का अनुसंधान पूरा नहीं किया जा सका है.
वैसे आरोप हैं कि उगाही के लिए पुलिस कर्मी अपने निजी वाहन का इस्तेमाल तो कर लेते हैं, लेकिन अनुसंधान या कार्रवाई के नाम पर वाहन के अभाव का बहाना बना कर इससे कन्नी काट लेने से नहीं चुकते.
क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी
दलित उत्पीड़न की शिकायत को सुलझाने में लापरवाही बरतने का आरोप साबित होने पर पुलिस पदाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. थानाध्यक्षों को पहले से ही लंबित मामलों को अविलंब निष्पादन कर रिपोर्ट करने का आदेश दिया जा चुका है.
अजय कुमार मिश्र, डीआइजी

Next Article

Exit mobile version