हर तरफ छायी होली की मस्ती
हाजीपुर : होली की मस्ती चारो तरफ छायी हुई है.विभिन्न संगठनों की ओर से होली मिलन समारोह आयोजित किये जा रहे हैं. कई संगठनों ने बच्चों के बीच पिचकारियां भी बांटीं. होली को लेकर कई मान्यताएं हैं. इस पर्व को नव संवत्सर का आरंभ और वसंत आगमन का प्रतीक माना जाता है. इस दिन प्रखर […]
हाजीपुर : होली की मस्ती चारो तरफ छायी हुई है.विभिन्न संगठनों की ओर से होली मिलन समारोह आयोजित किये जा रहे हैं. कई संगठनों ने बच्चों के बीच पिचकारियां भी बांटीं.
होली को लेकर कई मान्यताएं हैं. इस पर्व को नव संवत्सर का आरंभ और वसंत आगमन का प्रतीक माना जाता है. इस दिन प्रखर ज्ञानी भगवान मनु का जन्म हुआ था. यह भक्त प्रह्लाद की स्मृति एवं होलिका के नष्ट होने की खुशी मनाने का दिन है. इसी दिन भगवान शंकर ने कामदेव को भस्म किया था. बदलती ऋतु का यह त्योहार किसानों की उस खुशी का प्रतीक है, जो उन्हें फसल के पकने पर होती है. होली को पहले मदनोत्सव कहा जाता था. बाद में यह रंगोत्सव हो गया. फागुन महीना शुरू होते ही वसंत पंचमी के दिन से ही जगह-जगह होलिका स्तंभ लगाने के साथ चहल-पहल शुरू हो जाती थी.
गांवों में सजती थी पहले महफिल : पहले गांव हो या शहर जगह-जगह संगीत की महफिल सजती थी. डफ, झांझ, मंजीरे, ढोलक और चंग के गीत पर होली गाते रसिया और ध्रुपद गाते लोक कलाकार स्वांग भर कर नकल उतार कर दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन करते थे. प्रेम और सौहार्द बना रहता था. सभी रंगों की मस्ती में खो जाते थे. धुरखेली से एक दिन पहले लोग पलास और टेसू के फूलों से पानी का हौंदिया भर देते और सुबह में उसी रंग से होली खेलते. सोने, चांदी, पीतल की पिचकारियों से रंग बरसाये जाते. लोग खूब आनंद उठाते. महिलाओं, युवाओं, बच्चों और पुरुषों की अलग-अलग टोली होती.
वर्तमान में होली का स्वरूप बदला : वर्तमान में इसका स्वरूप बदल गया है. गांव में अब यह सिमटा नजर आता है, तो शहरों में लोग इससे अलग रहने की कोशिश करते हैं. पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के लोग इससे अलग रहना पसंद करने लगे हैं, लेकिन सामाजिक संगठनों एवं संस्कृति कर्मियों के प्रयास से होली मिलन के बहाने फिर से इसकी पहचान लौटने लगी है.