वैशाली की धरोहर का रखवाला चितरंजन बनायेगा म्यूजियम
वैशाली के सोये इतिहास को जगाने का सपना देखनेवाला युवक अपने त्याग के बल पर एक ऐतिहासिक म्यूजियम स्थापित करने का संकल्प ले चुका है. वह पिछले पांच वर्षो से अपने लक्ष्य को पाने के लिए कदम-दर-कदम बढ़ रहा है. वर्षो पुराना सैकड़ों पुरातात्विक अवशेषों को एकत्रित कर चुका है. म्यूजियम स्थापित करने के लिए […]
वैशाली के सोये इतिहास को जगाने का सपना देखनेवाला युवक अपने त्याग के बल पर एक ऐतिहासिक म्यूजियम स्थापित करने का संकल्प ले चुका है. वह पिछले पांच वर्षो से अपने लक्ष्य को पाने के लिए कदम-दर-कदम बढ़ रहा है. वर्षो पुराना सैकड़ों पुरातात्विक अवशेषों को एकत्रित कर चुका है. म्यूजियम स्थापित करने के लिए पुरातात्विक विभाग के निदेशक ने भी भरोसा दिलाया है.
हालांकि, इस ऐतिहासिक कार्य को करने के दौर में इसे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. मगर उसकी इच्छा शक्ति के आगे अब तक की तमाम बाधाएं उसे रोक नहीं पायी हैं.
हाजीपुर : वैशाली के पटेढ़ी बेलसर प्रखंड क्षेत्र के नगवां गांव में पांच वर्ष पहले चितरंजन पटेल ने मत्स्य पालन करने के लिए पोखरा खुदवाया था. उस वक्त बड़ी संख्या में पुरातात्विक अवशेष मिले थे. अपनी जमीन में ऐतिहासिक धरोहर को देख कर युवक का सोच बदल गया और मत्स्य पालन का ख्याल मन से त्याग दिया और वैशाली की पावन धरती के धरोहरों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा लिया. वह खुदाई के दौरान मिले अवशेषों को पूरी तरह संभाल रहा है. उसके द्वारा संकलित अतुल्य वस्तुओं को देखने के लिए आज भी विदेशी पर्यटक नगवां गांव आते हैं.
आशियाने को बनाया मिनी म्यूजियम : खुदाई में मिले पुरातत्व अवशेषों को चितरंजन ने फिलहाल अपने घर पर ही रखा. स्वयं जमीन पर सोता है. मगर सारी धरोहरों को सजा कर रखा है. छोटा-सा घर है. उसे अपना घर नहीं मानो मिनी म्यूजियम बना दिया हो. बड़ी सावधानी से सभी ऐतिहासिक चीजों को रखता है. हर रोज नियमित ढंग से उनकी साफ-सफाई करता है.
क्या-क्या मिला था खुदाई में
ईशा मसीह का स्टैच्यू
ब्रिटेन के राजा जार्ज पंचम की हुकु मत के दौर का सिक्का
प्राचीन काल की दीवार
सफेद पत्थर
पुराने घड़े का अवशेष
मुगल काल का सिक्का
पांच हजार वर्ष पहले की मुगल महारानी की पायल
काला कुआं
सुरंगनुमा चौड़ी दीवार
पुराने जेवरात
महाराजाओं का मुकुट
अल्यूमीनियम परत पर बना नक्शा
कई ताम्र पत्र
मिट्टी के मनके
जापानी एवं चाइनिज सिक्के
राजाओं के द्वार में रखा जाने वाला जलपात्र
ईंट पर उकेरी गयीं विभिन्न किस्म की तसवीरें
दादा के सपने को साकार करेगा चितरंजन : नगवां गांव के स्वर्गीय शोभा सिंह का इकलौता पुत्र है चितरंजन. जेएनयू में पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रहा है. उसने बताया कि उसके दादा के सपने थे कि वह अपने गांव के इतिहास को पूरी दुनिया के सामने रखे. चितरंजन के पिता को यह करने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन उस ऐतिहासिक काम को इस जुझारू पोते ने करने का साहसिक प्रयास किया है.
म्यूजियम को अपनी जमीन देगा दान : अगर सरकार इस गांव में म्यूजियम बनाने को तैयार होगी, तो चितरंजन उसके लिए अपनी जमीन दान में देने को तैयार है. इसके लिए अब तक जिला प्रशासन, पुरातत्व विभाग एवं बिहार सरकार से कई बार मांग कर चुका है. यहां तक कि वैशाली के जिलाधिकारी ने पिछले साल चितरंजन को आश्वासन दिया था कि नगवां को पर्यटक स्थल बनाया जायेगा. चितरंजन ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया,जापान, श्रीलंका, नेपाल, ब्रिटिश एवं अन्य देशों के लोग अवशेषों को देखने आते हैं.
महात्मा बुद्ध का सुरंग मार्ग : तालाब खुदाई के दौरान एक सुरंग दिखायी दी थी. उसके बारे में गांव के बुजुर्ग लोगों का कहना है कि महात्मा बुद्ध इसी रास्ते जाते थे. वैशाली में प्रवास के दौरान महात्मा बुद्ध इन इलाकों में ही रहा करते थे. इस तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. यहां मिलने वाली मूर्तियों को देखने से लगता है कि भगवान बुद्ध इस जगह पर जरूर आये होंगे.
स्थानीय लोगों की मांग : नगवां गांव के लोगों ने मांग की है कि यहां मिले अवशेषों को यहीं स्थापित किया जाये. नगवां में ही संग्रहालय बनाया जाये. वैशाली में नगवां को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकास करने की पहल हो.
ब्रिटिश महिला बनायेगी कॉल सेंटर: ब्रिटिश महिला हिलेरी ने नगवां गांव में आ कर सभी ऐतिहासिक धरोहरों को देख कर काफी खुश हुईं. उन्होंने कहा कि इस स्टेट की सरकार से मदद मिलेगी तो यहां म्यूजियम और एक कॉल सेंटर का स्थापना करूंगी.
क्या कहती हैं चितरंजन की मां : चितरंजन पटेल की मां लीला देवी कहती हैं कि इस ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिए म्यूजियम बनाने में अगर हमलोगों को खून भी बेचना पड़ेगा तो बेचेंगे. लेकिन इसे बरबाद नहीं होने देंगे. अपने पुत्र की हर तरह से मदद करने के लिए तैयार हूं.
क्या कहता है चितरंजन पटेल : प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल रही है. पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जिले से लेकर राज्य और केंद्र सरकार तक मदद के लिए दौड़ लगा रहा रहा हूं, लेकिन कहीं कोई सुनने वाला नहीं मिल रहा. फिर भी अपने गांव में म्यूजियम बना कर ही दम लूंगा. इसके लिए जो करना पड़ेगा वह करू ंगा. अपने गांव की पहचान पूरी दुनिया में करने के लिए संक ल्प ले चुका हूं.
चितरंजन पटेल, छात्र जेएनयू