मिड डे मील पर उठ रही है अंगुली
* कौन है जिसे मासूम बच्चों की मुस्कुराहट अच्छी नहीं लगती ।। पप्पू कुमार सिंह ।। हाजीपुर : वे कौन लोग हैं, जिन्हें मासूम बच्चों की चहल–पहल और उनकी मुस्कुराहट नहीं अच्छी लगती. वह कौन है, जिसे बच्चों से वैर है. बच्चों की मासूमियत पर खतरा मिड डे मील मुहैया करानेवाली एजेंसी की लापरवाही से […]
* कौन है जिसे मासूम बच्चों की मुस्कुराहट अच्छी नहीं लगती
।। पप्पू कुमार सिंह ।।
हाजीपुर : वे कौन लोग हैं, जिन्हें मासूम बच्चों की चहल–पहल और उनकी मुस्कुराहट नहीं अच्छी लगती. वह कौन है, जिसे बच्चों से वैर है. बच्चों की मासूमियत पर खतरा मिड डे मील मुहैया करानेवाली एजेंसी की लापरवाही से हो रहा है या फिर राजनीति की कोई गंदी चाल है.
सवालों की फेहरिश्त इसी जगह नहीं रुकती, प्रश्नवाचक चिह्न् और भी हैं. हम दोष किस पर मढ़े, रसोईया, शिक्षक, प्रधानाध्यापक, जिले के मिड डे मील प्रभारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी, डीएम या फिर पूरे शिक्षा विभाग पर. रसोईया कहता है, हमने खाना चख कर बच्चों को परोसा. हेड मास्टर साहब और स्कूल के शिक्षक भी यही कहते हैं.
मिड डे मील सप्लाइ करनेवाली एजेंसी का दावा है कि हमारी गुणवत्ता को किसी भी कसौटी पर परख लीजिए, हम बेदाग निकलेंगे. जब सभी अपनी–अपनी बातों पर कायम हैं, तो फिर चूक कहां हो रही है. यह एक जटिल एवं बड़ा सवाल है. इस सवाल का जवाब ढूंढना पुलिस और प्रशासन का काम है, लेकिन जिले में एक–दो नहीं बल्कि जब से मिड डे मील योजना शुरू हुई है, तब से सैकड़ों वारदातें हो चुकी हैं. जब बच्चे मिड डे मील खाकर बीमार हुए हैं.
बेशक जिले में छपरा के मशरक जैसी घटना नहीं घटी है, लेकिन हर घटना में बच्चों को स्कूल से सीधे एंबुलेंस के डरावने सायरन के साथ सदर अस्पताल में भरती होना पड़ा है. यह सौभाग्य एवं बच्चों की किस्मत अच्छी रही है किसी भी घटना में जिले ने अपने नौनिहालों को नहीं खोया. तमाम घटनाओं में जिला प्रशासन ने संजीदगी दिखायी, जिला विभाग में हड़कंप मचा. जांच कर दोषी को सजा अथवा निलंबित करने का परंपरागत जुमला बार–बार दोहराया गया, लेकिन कोई भी ऐसा मामला उठा कर देख लीजिए, जिसमें पुलिस या प्रशासन सच्चाई के तह तक गया हो.
वैशाली में सौ से अधिक बच्चे मिड डे मील खाकर बीमार हुए. इसमें काफी बवाल मचा. हाल ही में लालगंज प्रखंड के रामपुर बखरा में भोजन करने से 27 बच्चे बीमार पड़े. इन दोनों घटनाओं में छिपकली एवं मेढ़क निकलने की बात सामने आयी. इसके अलावा जिले का कोई ऐसा प्रखंड नहीं, जहां बच्चों के मध्याह्न् भोजन में शिकायतें नहीं मिली हों. तमाम मामलों में कमोबेश जांच टीम गठित की गयीं, लेकिन परिणाम क्या आया, किसी को पता नहीं.
अस्पताल से लौटने के बाद बच्चों के सामने उसी एजेंसी द्वारा दिये गये भोजन शिक्षकों के सामने परोस दिया जाता है. शुक्रवार को भी सदर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय रंदाहा में मिड डे मील खाने से 53 बच्चे बीमार पड़ गये. स्कूल के हेड मास्टर एवं रसोईये ने कहा कि हमने बच्चों के सामने परोसने से पहले खाया था. ग्रामीण इसका विरोध करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शिक्षक लोग खाना खाते नहीं चखते हैं. ग्रामीणों के तर्क में दम है.
चखने एवं खाने में फर्क है. खाना चख कर मास्टर साहबों को कुछ नहीं होता, जबकि खाना खाने के वाले बच्चे सीधे अस्पताल पहुंच जाते हैं. इस जगह पर जांच की जरूरत है कि आखिर वहीं खाना शिक्षक खाते हैं,तो कुछ नहीं होता, जबकि बच्चों में उल्टी एवं पेट दर्द की शिकायत होने लगती है. सवाल उठता है क्यों और कैसे. इस मसले पर जिला शिक्षा पदाधिकारी ने कहा कि अगर एजेंसी द्वारा मुहैया कराये गये खाने में गड़बड़ी होती है, तो अन्य स्कूलों में भी ऐसी समस्या उत्पन्न होती.
यह स्थानीय राजनीति करने वालों की करतूत है. उनके तर्क भी अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन राजनीति कौन कर रहा है, इसका पता भी तो विभाग ही लगायेगा. राजनीति करने वालों का पता लगा कर उसे कड़ी सजा दिलाने का दायित्व भी तो पुलिस और प्रशासन पर है. फिर इसमें विलंब क्यों. बहरहाल मध्याह्न् भोजन के साथ ऐसी घटिया हरकत कोई भी करे, लेकिन याद रखिए जिंदगी मासूम बच्चों की ही खतरों में पड़ रही है.