कहीं नहीं दिख रहीं आम्रपाली की यादें
हाजीपुर : बौद्ध, जैन और ब्राह्मण परंपरा की त्रिधाराओं से समन्वित वैशाली की सांस्कृतिक समृद्धि का गौरवशाली इतिहास विश्व प्रसिद्ध है. इसका वर्णन संस्कृत, पाली, प्राकृत, तिब्बती,चीनी आदि भाषाओं में उपलब्ध है. वैशाली महोत्सव में आनेवाला हर दर्शक प्राचीन काल की राज नर्तकी आम्रपाली की स्मृति की खोजता है, लेकिन यहां कहीं नहीं दिख रहा. […]
हाजीपुर : बौद्ध, जैन और ब्राह्मण परंपरा की त्रिधाराओं से समन्वित वैशाली की सांस्कृतिक समृद्धि का गौरवशाली इतिहास विश्व प्रसिद्ध है. इसका वर्णन संस्कृत, पाली, प्राकृत, तिब्बती,चीनी आदि भाषाओं में उपलब्ध है. वैशाली महोत्सव में आनेवाला हर दर्शक प्राचीन काल की राज नर्तकी आम्रपाली की स्मृति की खोजता है, लेकिन यहां कहीं नहीं दिख रहा. यह स्थानीय प्रशासन की उदासीनता की कहानी है. किसी भी स्थल पर आम्रपाली का कोई चिह्न् नहीं है.
आनेवाला हर पर्यटकों को लगता है कि यह कोई किवदंती होगी, जबकि इतिहास इसकी प्रामाणिकता को सिद्ध करता है. महानाम नामक एक लिच्छवी अमात्य था, जिसे कोई संतान नहीं था. एक दिन वह एक आम्रवन में टहल रहा था, तो उसे एक बच्ची के रोने की आवाज सुनायी दी. अमात्य ने बच्ची को उठा लिया और पत्नी को लाकर दे दिया.
पत्नी ने जब पूरी कहानी सुनी, तो उसका नाम आम्रपाली रख दिया. जब वह बड़ी हुई, तो उसका रूप निखर आया, जिसे देख कर हर कोई मोहित हो जाता था. राज घराने की शिक्षा-दीक्षा में पली-बढ़ी आम्रपाली संगीत और नृत्य में पारंगत होती चली गयी. एक समय वह वैशाली की राज नर्तकी बन गयी.
वह एक युवक से प्रेम करती थी और पत्नी बनाने का अनुरोध भी किया था. लेकिन राजद्रोह के भय से युवक हामी नहीं भरा. बाद में वह अजात शत्रु के पुत्र की मां बन गयी. अजातशत्रु को यहां पर लोग अभय कुमार के नाम से जानते थे. बौद्ध साहित्य में युवक की चर्चा है. बौद्ध साहित्य थेरी गाथा में अंबपाली के 19 पद संकलित हैं. आचार्य चातुर्सेन की रचना वैशाली की नगर वधु, रामवृक्ष बेनीपुरी की नाट्य रचना आम्रपाली आदि प्रामाणिक माने गये हैं. यहां आनेवाले खासकर युवा वर्ग यहां की जानकारी लेने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन सही जानकारी देने वाला कोई नहीं है. चारों और भीड़ है. आधुनिकता का बोलवाला है. सरकार की योजनाओं का असर भी दिखता है. हर कोई सुनी-सुनाई और पढ़ी बातों का प्रमाण खोज रहे हैं. लेकिन कहीं भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि आम्रपाली के नाम का इस्तेमाल हो रहा है. सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं का महोत्सव में भागीदारी है, लेकिन आम्रपाली की याद को संजोने की पहल किसी ने नहीं की है.