साइकिल का पंर बना कर भी मैराथन में स्वर्ण पदक का सपना

अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी मुकाम पाया जा सकता है. इसी की मिसाल पेश कर रहा है अरुण सहनी. जिले के एक छोटे से गांव देसरी प्रखंड के गाजीपुर का रहनेवाला अरुण अपने भाई के साथ साइकिल मरम्मत की दुकान में बतौर मिस्त्री का काम करते हुए भी मैराथन में धावक के रूप […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 12, 2015 9:44 AM

अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी मुकाम पाया जा सकता है. इसी की मिसाल पेश कर रहा है अरुण सहनी. जिले के एक छोटे से गांव देसरी प्रखंड के गाजीपुर का रहनेवाला अरुण अपने भाई के साथ साइकिल मरम्मत की दुकान में बतौर मिस्त्री का काम करते हुए भी मैराथन में धावक के रूप में हिस्सा लेकर कई पदक और मेडल जीत चुका है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर देश के कई महानगरों में आयोजित हाफ और फुल मैराथन में भाग लेने वाले अरुण ने इसी साल मुंबई में 42 किलो मीटर की दौड़ में तीसरा स्थान पाया है. अरुण की इस उपलब्धि पर आसपास के लोग ही नहीं बल्कि पूरा जिला नाज करता है.

संवाददाता, हाजीपुर

खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा भी हर बदें से पूछे बता तेरी रजा क्या है. यह कहावत जिले के देसरी प्रखंड के गाजीपुर गांव में रहने वाले अरुण कुमार सहनी पर पूरी तरह चरितार्थ होती है़ 20 जून, 1989 को गरीब परिवार में जन्मे अरुण को आज पूरा देसरी क्षेत्र चैंपियन धावक के रूप में जानता है़ पिछले कुछ वषों में देश के कई महानगरों में आयोजित मैराथन दौड़ में अरुण ने हिस्सा लिया और कई मेडल व सर्टिफिकेट हासिल किये.

कैसे शुरू किया दौड़ का सफर : अरुण ने पहली बार 20 अगस्त, 2009 को हैदराबाद में आयोजित हाफ मैराथन में भाग लिया था़ उसके बाद से फिर उसने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा़ अब तक वह एक दर्जन से अधिक हाफ व फुल मैराथन में भाग ले चुका है़ पहली बार में उसे 108वां रैंक मिला था़ फिर वर्ष 2010 में 80 वां और 2011 में 50 वां रैंक हासिल किया़ इसी तरह कड़ी मेहनत को जारी रखा और वर्ष 2012 में 35 वें स्थान पर पहुंचा.

2013 में तो अरु ण को सातवां स्थान मिला़ इसकी मेहनत इसी तरह बढ़ती गयी और 2014 में मुंबई में आयोजित 42 किलो मीटर के फुल मैराथन में तीसरा स्थान लाकर अरुण ने बिहार का नाम रोशन किया़ दिल्ली, बेंगलुरु,पुणो, कोलकाता सहित कई जगहों पर इसने मैराथन दौड़ में भाग लिया है और दर्जनों मेडल व शील्ड हासिल कर क्षेत्र का नाम रोशन कर रहा है.

स्वर्ण पदक जीतने का है सपना : अरुण का सपना है कि वह भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत़े इसके लिए उसे कड़ी मेहनत के साथ ही कई सुविधाओं की भी जरूरत है, लेकिन गरीबी इन सब के बीच आड़े आ रही है़ प्रभात खबर से बातचीत के दौरान अरुण ने बताया कि वह वर्ष 2016 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में भाग लेना चाहता है़ ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत कर भारत के साथ ही वैशाली जिले का नाम रोशन करने का उसका सपना है. उसके पिता गणोश सहनी ठेला चला कर किसी तरह परिवार का भरण-पोषण कर रहे है़ं

साइकिल दुकान में करता है काम : अरुण के भाई की हाजीपुर-जंदाहा एनएच में गाजीपुर चौक पर साइकिल रिपेयरिंग की छोटी-सी दुकान है, जिसमें अरुण भी साइकिल बनाने का काम करता है़ अरुण की मानें तो ओलंपिक की तैयारी के लिए उसे एक अच्छे ट्रेनर के साथ ही अन्य संसाधनों की भी आवश्यकता है़ उसके पास एक बढ़िया जूता तक नहीं है़ आठ भाई-बहनों में अरुण चौथे नंबर पर है़ परिवार के लोग उसे मैराथन से रोकते हैं, लेकिन वह जिद कर अपने सपने को पूरा करने के प्रयास में लगा है.

क्या कहता है धावक

मैं अपने भारत के लिए ओलंपिक से स्वर्ण पदक लाना चाहता हूं. इसके लिए मुङो आवश्यक संसाधन और सहायता की जरूरत है. सरकारी स्तर तो दूर स्थानीय स्तर पर भी किसी जन प्रतिनिधि या अन्य ने अब तक उसकी कोई सहायता नहीं की, जिसका उसे मलाल है.

अरुण सहनी, मैराथन धावक

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