सरकारी स्कूल साक्षर बनाने के कारखाने में तब्दील
हाजीपुर: कहीं पेड़ के नीचे चलता है विद्यालय, तो कहीं खंडहर बन चुका विद्यालय का भवन. कहीं तीन से चार शिक्षक शिक्षिकाओं के भरोसे पूरे विद्यालय का संचालन हो रहा है, तो कहीं मास्टर साहब के भय, अनुशासन और पाबंदियों से उन्मुक्त कक्षाओं में धमाल मचाता उच्छृंखल बचपन. जिले के जिस इलाके में चले जाइए, […]
हाजीपुर: कहीं पेड़ के नीचे चलता है विद्यालय, तो कहीं खंडहर बन चुका विद्यालय का भवन. कहीं तीन से चार शिक्षक शिक्षिकाओं के भरोसे पूरे विद्यालय का संचालन हो रहा है, तो कहीं मास्टर साहब के भय, अनुशासन और पाबंदियों से उन्मुक्त कक्षाओं में धमाल मचाता उच्छृंखल बचपन. जिले के जिस इलाके में चले जाइए, स्कूली शिक्षा की यही तसवीर दिखायी देती है़ शायद ही ऐसे स्कूल मिलते हैं जो मानकों के अनुरूप सुविधाओं से पूर्ण हों़ गांव के स्कूल में शिक्षा के गिरते स्तर को देख कर सहसा सवाल पैदा हो जाता है कि इस शिक्षा से हम किस समाज और मानस का निर्माण कर रहे हैं़ शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की के सरकार चाहे जो जो दावे कर ले, लेकिन वैशाली जिले की जमीनी हकीकत यही बताती है कि बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए अभी लंबी दूरी तय करनी बाकी है़ इस दिशा में अब तक हुए सरकारी प्रयासों को देख कर लगता है मानो सरकार का लक्ष्य शिक्षा की जगह साक्षरता तक सिमट कर रह गया है़ आज के सरकारी स्कूल भी साक्षर बनाने के कारखाने में तब्दील हो चुके हैं़ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, योग्य शिक्षक और अनुशासित विद्यार्थियों से सुसज्जित किसी सरकारी स्कूल जिले की जमीन पर कहीं भी, किसी गांव में ढूंढ़ना मुश्किल है़ गांव के बुजुर्ग पुराने समय को याद कर कहते हैं कि श्रीकृष्ण बाबू से लेकर केबी सहाय के समय तक स्कूलों का शैक्षणिक माहौल ठीक था, लेकिन उसके बाद शिक्षा में लगातार गिरावट आती चली गयी़ आज तो सरकारी स्कूलों की स्थिति यह है कि न शिक्षक मन से काम करते हैं न विद्यार्थी पढ़ने में रुचि रखते हैं़ स्कूलों में शैक्षणिक वातावरण और अनुशासन में निरंतर ह्रास के कारण ही निजी विद्यालयों में तेजी से इजाफा हुआ़ आज ऊंचे-महंगे प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को इतना महंगा कर दिया कि आम आदमी अपने बच्चों को उनमें दाखिला दिलाने का केवल सपना पाल सकता है, नामांकन तो वह सिर्फ सरकारी स्कूल में ही करा पाता है़ लिहाजा, एक शिक्षित और होनहार पीढ़ी के निर्माण के लिए चार से छह साल के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा की तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराने की गारंटी तो सरकार को करनी ही पडे़गी़ सिर्फ समाज को साक्षर बना कर वह शिक्षा की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती़ यह दीगर बात है कि साक्षरता के लिए भी चलायी जा रही अक्षर आंचल जैसी योजनाएं ढाक के तीन पात साबित हुई हैं़ उत्कृष्ट स्कूली शिक्षा के लिए आवश्यक आधारभूत सुविधाओं के मामले में जिले की स्थिति काफी दयनीय है़ 6-7 साल तक के 80 प्रतिशत बच्चे, जो गरीब परिवारों से आते हैं, अपर्याप्त, साधनविहीन एवं निम्न कोटि की आंगनबाड़ी की शिक्षा पर आश्रित हैं़ उनमें भी सिर्फ 40 से 45 प्रतिशत बच्चों को यह सुविधा मिल पायी है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति जागरूकता में उत्साहजनक वृद्घि हुई है़ बच्चियों में शिक्षा के प्रति जबरदस्त ललक पैदा हुई है ़ गांवों में हाइ स्कूलों की आवश्यकता और मांग बढ़ गयी है . इन स्थितियों में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किये बिना शिक्षा के अधिकार का कोई मायने नहीं रह जायेगा़