दौ सौ वर्ष पुराना है वृद्धांबा मंदिर
हाजीपुर : कलश स्थापना के साथ बुढ़िया मईया का दरबार सज गया है. शक्ति पीठ के रूप में जिले में विख्यात बुढ़िया माई स्थान वृद्धाम्बा मंदिर से प्रदेश भर के श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है. वैसे तो सालों भर देवी के दर्शन व अाराधना के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्र में इस स्थान […]
हाजीपुर : कलश स्थापना के साथ बुढ़िया मईया का दरबार सज गया है. शक्ति पीठ के रूप में जिले में विख्यात बुढ़िया माई स्थान वृद्धाम्बा मंदिर से प्रदेश भर के श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है.
वैसे तो सालों भर देवी के दर्शन व अाराधना के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्र में इस स्थान की महत्ता बढ़ जाती है. शारदीय एवं वासंतिक नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है.
कहां है बुढ़िया मईया का दरबार : हाजीपुर-लालगंज मुख्य मार्ग के हरौली गांव में स्थित बुढ़िया मईया का दरबार. इस स्थान का निर्माण कब और कैसे हुआ, इसकी जानकारी तो कोई नहीं दे पाता,
लेकिन कई मान्यताएं प्रसिद्ध हैं. कोई डेढ़ सौ तो कोई दो सौ वर्ष पुराना बताता है. मईया के चमत्कार से गांव वाले और वहां दर्शन करने वाले रू-ब-रू होते रहे हैं. लोगों का ऐसा विश्वास है जो दिल से मईया को याद करता है,
उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है.
स्थापित होने की क्या मान्यता : क्षेत्र के बलहा बसंत का रामकरण मांझी नामक मल्लाह नाव से व्यापार के लिए असम गया. जब वह लौटने लगा तो उसकी नाव सुंदर नामक वन के पास नदी में फंस गयी. वहां रेत थी, जिस पर वह सो गया. उसने सपने में बुढ़िया मईया को देखा. उन्होंने कहा कि मैं वन में रहते-रहते ऊब गयी हूं.
मांझी ने कहा आदेश करें, तब मईया ने कहा, मुझे यहां से ले चलो. तब नाव पर दोनों सवार हुए, तो नाव आसानी से चल पड़ा. अपने गांव के पूर्व वर्तमान स्थान हरौली गांव के निकट नाव पुन: रेत में फंस गयी.
काफी प्रयास के बाद भी नाव नहीं निकली. तब मईया पिंडी का रूप धारण कर एक लाल कलश में समा गयीं. सुबह होने पर मांझी ने यह बात ग्रामीणों को बतायी. धीरे-धीरे ग्रामीणों की भीड़ जुट गयी.
सभी ने जयकारा लगा कर उन्हें नाव से उतारा और वहीं एक पीपल के पेड़ के नीचे उनकी स्थापना कर दी. बाढ़ और कटाव के कारण उनका स्थान ग्रामीणों ने बदल लिया. वर्तमान मुख्य मार्ग के किनारे मईया का मंदिर स्थापित है.
क्या है पूजा और भोग का विधान : मंदिर प्रबंध समिति के विजय ठाकुर बताते हैं कि मंदिर जाने से पहले प्रसाद लिया जाता है. मंदिर से दो किलोमीटर पहले गदाई सराय गांव है,
जहां चावल की लाई और मूढ़ी मिलती है, जो मईया को पसंद है. इसके अलावा चना, चीनी का लड्डू, बतासा आदि से मईया को पूजते हैं. माता की पिंडी कपड़े से नहीं बल्कि सिंदूर से ढंकी हुई है. जब कभी यह सिंदूर खत्म होने लगता है तो माता पुजारी या किसी श्रद्धालु को स्वप्न देकर सिंदूर से ढंकने का आदेश देती हैं.
कुंवारी पूजन की है परंपरा : नवरात्र अनुष्ठान के दौरान यहां कुंवारी पूजन की परंपरा है. कुंवारी पूजन धूमधाम से आयोजित किया जाता है. गांव एवं गांव के आसपास के इलाकों में कुंवारी कन्याओं को निमंत्रण दिया जाता है.
अष्टमी के दिन मंदिर परिसर में उनकी पूजा अाराधना के बाद उपहार और दक्षिणा देकर विदा करते हैं. मान्यता है कि कुंवारी पूजन देवी का ही पूजन है. दीपों से पूरे मंदिर परिसर को सजाया जाता है.
रामलीला का होता था आयोजन : दशहरा के अवसर पर सबसे पहले यहीं मेला लगना शुरू हुआ था. दूर-दूर से व्यवसायी पहुंचते और सामान की खरीद बिक्री होती थी.
रामलीला का भव्य आयोजन होता था. दरभंगा से रामलीला मंडली प्रति वर्ष आती थी. वर्तमान में मेला अब भी लगता है, लेकिन अब यह सिमट गया है. रामलीला की परंपरा खत्म हो गयी. बीच के कुछ युवाओं ने ऑर्केस्ट्रा का आयोजन किया, लेकिन अश्लीलता के कारण इसे बंद कर दिया गया.
क्या कहते हैं पुजारी
माता का दरबार सज गया है और सभी के लिए खुला हुआ है. कोई भी श्रद्धालु धर्म संप्रदाय से ऊपर उठ कर दरबार में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. अगर मईया के प्रति निष्ठा और श्रद्धा है, तो मनोकामना अवश्य पूरी होगी. मईया के चमत्कार से सभी परिचित हैं. प्रदेश भर के श्रद्धालुओं की आस्था यहां से जुड़ी है.