भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक लोक पर्व सामा-चकेवा शुरू

हाजीपुर/गोरौल : भाई -बहन के प्रेम के प्रतीक लोक पर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया है. इसे सिर्फ भाई-बहन की नहीं बल्कि पर्यावरण से संबद्ध भी माना जाता है. यह लोक पर्व छठ के दिन से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है. शाम ढलते ही बहनों द्वारा डाला में सामा चकेवा को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 24, 2015 6:26 AM

हाजीपुर/गोरौल : भाई -बहन के प्रेम के प्रतीक लोक पर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया है. इसे सिर्फ भाई-बहन की नहीं बल्कि पर्यावरण से संबद्ध भी माना जाता है. यह लोक पर्व छठ के दिन से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है. शाम ढलते ही बहनों द्वारा डाला में सामा चकेवा को सजा कर सार्वजनिक स्थान पर बैठ कर गीत गाया जाता है.

जैसे सामा चकेवा अइह हे…! वृंदावन में आग लगले…! सामा चकेवा खेल गेलीए हे बहिना… आदि गीतों द्वारा हंसी -ठिठोली की जाती है. इस दौरान बहनों द्वारा चुगला का मुंह झरकाया जाता है तथा भाई को दीर्घायु होने की कामना की जाती है. सामा चकेवा में सामा कृष्ण की पुत्री थी. सामा को घूमने- फिरने में बड़ा मन लगता था.

इसलिए वह अपनी दासी डिहुली के साथ वृंदावन में जाकर ऋषियों के साथ खेला करती थी. यह बात दासी को रास नहीं आयी, और उसने सामा के पिता से इसकी शिकायत कर दी. गुस्से में आकर कृष्ण ने पुत्री को पक्षी होने का श्राप दे दिया. इसके बाद सामा पक्षी बन कर वृंदावन में रहने लगी. यह देख साधु संत भी पक्षी के रूप में उसी जंगल में रहने लगे. जब सामा के भाई सब को मालूम हुआ तो बहन को श्राप से उबारने के लिए अपने पिता की तपस्या शुरू कर दी.

इस पर प्रसन्न होकर कृष्ण ने सामा को नौ दिनों के लिए अपने पास आने का वरदान दिया. उसी दिन से सामा की पूजा अपने भाई को दीर्घायु की कामना करने वाली बहन करती है. वहीं जानकार लोगों ने बताया कि जब सामा को पक्षी होने का श्राप मिला तो उसके पति ऋषि कुमार चारूवकय शिव की अाराधना कर चकवा पक्षी होने का वरदान प्राप्त किया.

तब से ही चकवा-चकवी पक्षी के स्वागत में भी यह लोक पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी से कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है एवं इस मौके पर कई प्रजाति के प्रवासी पक्षियों का आना- जाना भी शुरू हो जाता है. यह लोक पर्व मिथिलांचल के महत्वपूर्ण पर्व में एक है.

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