सकारात्मक असर. पूर्ण शराबबंदी से सड़क दुर्घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से कमी
घायलों की संख्या काफी घटी नहीं हुई दुर्घटना में एक भी मौत मरीजों से अक्सर भरा रहनेवाला सदर अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड पड़ा सूना सदर अस्पताल में घायलों के पहुंचने में करीब 70 फीसदी की आयी है कमी शराबबंदी के पहले के आंकड़ों पर गौर करें, तो जिले में हर माह कम-से-कम दो दर्जन लोगों […]
घायलों की संख्या काफी घटी
नहीं हुई दुर्घटना में एक भी मौत
मरीजों से अक्सर भरा रहनेवाला सदर अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड पड़ा सूना
सदर अस्पताल में घायलों के पहुंचने में करीब 70 फीसदी की आयी है कमी
शराबबंदी के पहले के आंकड़ों पर गौर करें, तो जिले में हर माह कम-से-कम दो दर्जन लोगों की मृत्यु सड़क दुर्घटनाओं में हो जाती थी. एक अप्रैल के बाद की तसवीर बताती है कि शराबबंदी ने जिले में न सिर्फ विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराइयों पर लगाम लगाया है, बल्कि जान-माल के नुकसान को भी काफी कम कर दिया है.
हाजीपुर :यह महज संयोग नहीं है कि बीते एक अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच जिले में सड़क दुर्घटना के कारण किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई. इसे शराबबंदी का परिणाम बताया जा रहा है. शराबबंदी के शुरुआती दस दिनों में ही इसका व्यापक असर दिखने लगा है. शराबबंदी के पहले के आंकड़ों पर गौर करें, तो जिले में हर एक या दो और माह कम-से-कम दो दर्जन लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हो जाती थी. बीते 10 दिनों के अंदर झगड़े फसाद में खून-खराबे की घटनाएं और सड़क दुर्घटनाएं अप्रत्याशित रूप से कम हुईं हैं.
खाली पड़े हैं इमरजेंसी वार्ड के बेड : घटना-दुर्घटना में जख्मी होकर आये मरीजों से अक्सर भरा रहनेवाला सदर अस्पताल का इमरजेंसी वार्ड इन दिनों सूना-सा रह रहा है. वार्ड में अधिकतर बेड खाली हैं, जबकि यहां मरीजों के लिए बेड कम पड़ जाते थे. रविवार को इमरजेंसी की ड्यूटी में तैनात चिकित्सा अधिकारी डॉ ब्रजेश शरण कहते हैं कि शराबबंदी लागू होने के दिन से रविवार तक उनकी ड्यूटी के दौरान एक-दो सड़क दुर्घटनाओं को छोड़ कर मारपीट का कोई मामला नहीं आया. सिर्फ सदर अस्पताल ही नहीं, शहर के तमाम नर्सिंग होम और निजी अस्पतालों पर भी इसका असर देखा जा रहा है. इन अस्पतालों में घटनाओं से आहत मरीजों की आमद काफी कम गयी है.
10 दिनों में मारपीट के 8 मामले आये : सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में हर दिन औसतन आधा दर्जन मामले मारपीट के आते रहे हैं. वहीं, एक से 10 अप्रैल के बीच इस प्रकार की कुल 8 घटनाएं हुई, जिनमें घायल हुए. लोग यहां इलाज को पहुंचे. पूर्व की इन अवधियों में जहां घायलों की संख्या 60 से 90 तक रही है. शराबबंदी लागू होने के बाद अब तक महज आठ लोगों के घायल होने की सूचना है. जानकारों का कहना है कि ज्यादातर मारपीट, झड़पें और खून-खराबे की घटनाओं में नशे की बड़ी भूमिका रही है. इसलिए शराबबंदी से समाज को व्यर्थ के फसादों से राहत मिली है.
सड़क दुर्घटनाओं में 16 हुए घायल : शराबबंदी के बाद से सड़क दुर्घटनाओं में भारी कमी को दरसा रहा है सदर अस्पताल का इमरजेंसी वार्ड. एक से 10 अप्रैल के बीच यहां 16 ऐसे घायलों को इलाज हुआ, जो विभिन्न मार्ग दुर्घटनाओं के शिकार बने. इसके पहले तक इमरजेंसी वार्ड में रोजाना औसतन 8 से 10 लोग जख्मी होकर आते रहे हैं.
जानकारों के मुताबिक, चूंकि ज्यादातर सड़क दुर्घटनाएं शराब पीकर नशे की हालत में वाहन चलाने से होती रही है. शराब पर पाबंदी से इन दुर्घटनाओं में भी कमी आयी.
नहीं हुई घरेलू हिंसा की कोई घटना : एक अप्रैल से अभी तक महिला पर घरेलू अत्याचार की कोई घटना सामने नहीं आयी. नगर थानाध्यक्ष ने बताया कि बीते 10 दिनों में एक भी घरेलू हिंसा की शिकायत नहीं आयी. वहीं, सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भी इस दौरान घरेलू अत्याचार से घायल कोई महिला नहीं आयी.
सदर अस्पताल परिसर में भीड़ हुई कम : शराबबंदी के बाद से सदर अस्पताल परिसर की भीड़ भाड़ भी कमने लगी है. यहां की दिनचर्या भी अब सामान्य दिखने लगी है. 10 दिन पहले तक यहां रजिस्ट्रेशन काउंटर, दवा वितरण काउंटर के परिसर से लेकर ओपीडी तक मरीजों, उनके परिजनों और अन्य लोगों की जो आवाजाही बनी रहती थी, वह अब नहीं दिख रही. अस्पताल के सूत्र बताते हैं कि शराबबंदी लागू होने के बाद से घायलों की संख्या तो काफी घट गयी है, इसके साथ सामान्य मरीजों की तादाद भी कम रही है.
कहते हैं अधिकारी
बेशक, राज्य सरकार द्वारा शराबबंदी कानून-लागू किये जाने के बाद से स्वास्थ्य के क्षेत्र में इसका बड़ा असर दिखने लगा है. 10 दिनों के भीतर ही जिस तरह से हिंसक घटनाओं या सड़क दुर्घटनाओं में कमी आयी है, उससे स्वस्थ समाज का संकल्प पूरा होता नजर आ रहा है. नशामुक्ति को लेकर सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी तक आवश्यक सेवाएं उपलब्ध करा दी गयी हैं.
डॉ अमरनाथ झा, एसीएमओ