सड़क दुर्घटनाएं बढ़ीं, भरोसा टूटा

हाजीपुर : वैशाली जिले के मार्गों पर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं से एक नयी सामाजिक चिंता इस सवाल के साथ उभरी है कि क्या सड़क पर सफर अब सुरक्षित नहीं? जिले में अब शायद ही कोई दिन दुर्घटनारहित गुजरता है. पिछले दो दिनों के आंकड़े लें तो इस अवधि में कम-से-कम पांच सड़क दुर्घटनाएं हुईं. उनमें […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2016 3:14 AM

हाजीपुर : वैशाली जिले के मार्गों पर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं से एक नयी सामाजिक चिंता इस सवाल के साथ उभरी है कि क्या सड़क पर सफर अब सुरक्षित नहीं? जिले में अब शायद ही कोई दिन दुर्घटनारहित गुजरता है. पिछले दो दिनों के आंकड़े लें तो इस अवधि में कम-से-कम पांच सड़क दुर्घटनाएं हुईं. उनमें छह लोगों की मौत हो गयी.

मृतकों में एक सहायिका भी शामिल थी. इस मौत से कई जिंदगियां आसुंओं में डूब गयीं. सराय थाने की मानसिंगपुर गांव की सहायिका दुखनी देवी की मौत अपने पीछे कई सवाल छोड़ गयी है. क्या सड़क के किनारे पैदल चलना गुनाह है? आखिर वाहन को इतनी तेज गति से चलाने की छूट चालकों को क्यों दी जाती है कि सामने जब कोई इनसान या जानवर आ जाये, तो ब्रेक लगाकर वाहन को रोका नहीं जा सके. निर्धारित गति सीमा से तेज वाहन चलानेवाले चालकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?

बीते शुक्रवार की देर शाम तीन युवकों की मौत का गवाह बना गोरौल का हरसेर गांव. यह घटना पुलिस की चौकसी के सारे दावे की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है. एनएच-77 पर एक बाइक पर सवार तीन युवक लहेरियाकट बाइक चलाते हुए जा रहे थे. ट्रिपल राइडर बाइक फर्राटे से हाजीपुर से गोरौल तक पहुंच जाती है. इस दौरान एनएच की निगरानी कर रही चार-चार थानों की पुलिस व गश्ती जीप कहां थी? अगर पुलिस चौकस होती, तो ट्रिपल राइडिंग के आरोप में गुंजन, मनीष और विक्रांत पकड़े जाते और शायद तीन घरों में मचे कोहराम और तीन गांवों में पसरा मातम का मंजर नहीं होता.
कौन देगा सुरक्षित सफर का भरोसा : कोई आदमी जब घर से निकलता है, तो उसके साथ गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचने का भरोसा भी होता है. लेकिन यह भरोसा अब खंडित हो रहा है. कब, कहां और कौन वाहन से कुचल जाये, कहां दो वाहन टकरा कर जिंदगी और मौत में फर्क मिटा दें, यह आशंका हमेशा बनी रहती है. हाजीपुर-पटना के बीच गंगा नदी पर गांधी सेतु चालू होने के बाद जिले में जिस अनुपात में दुर्घटनाएं बढ़ीं, प्रशासन को सड़क सुरक्षा का ख्याल जितना आना चाहिए था, आया नहीं. अलबत्ता, कुछ सामाजिक संस्थाओं के जरिये सड़क सुरक्षा सप्ताह के आयोजन अवश्य होते रहे हैं, पर प्रशासनिक स्तर पर दुर्घटनाओं के कारणों की गंभीरता से समीक्षा नहीं की जा रही है. ज्यादातर दुर्घटनाएं चालकों की
लापरवाही, ओवरलोडिंग, रफ ड्राइविंग और यातायात नियमों का पालन नहीं करने के कारण हो रही है. सवारी ढोने वाले वाहनों के चालक दक्ष हैं या नहीं, लाइसेंस देने के बाद समय-समय पर उसकी समीक्षा नहीं होती.

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