मंदिर का जीर्णोद्धार जयमंगला बाबा ने कराया
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दिल से मांगी हर मुराद होती है पूरी
मंदिर का जीर्णोद्धार जयमंगला बाबा ने कराया लालगंज : लालगंज के ऐतवारपुर गांव स्थित सती स्थान, माता के उन जागृत स्थानों में से एक है. जहां दिल से मांगी गयी हर मनोकामना पूर्ण होती है. ऐतवारपुर स्थित माता के इस स्थान की अपनी अलग ही एक कहानी है. ऐसी मान्यता है कि लगभग एक हजार […]
लालगंज : लालगंज के ऐतवारपुर गांव स्थित सती स्थान, माता के उन जागृत स्थानों में से एक है. जहां दिल से मांगी गयी हर मनोकामना पूर्ण होती है. ऐतवारपुर स्थित माता के इस स्थान की अपनी अलग ही एक कहानी है. ऐसी मान्यता है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व यहां स्थित माता की पिंडी जो पीपल वृक्ष की कोढ़र में स्थित थी. नारायणी नदी में आयी प्रलयंकारी बाढ़ के कारण नदी में बह कर पटना की ओर चली गयी थी. बाढ़ के थमने पर गांव के कई ग्रामीणों को माता ने स्वप्न देकर पुनः गांव में लाकर स्थापित करने का आदेश दिया, तब गांववासी नाव के सहारे माता को खोजने निकल पड़े.
काफी खोजबीन के बाद माता की पिंडी पीपल वृक्ष के साथ लोगों को मिल गयी. इसे लाने के लिए लोगों ने माता की पिंडी को पीपल पेड़ से अलग करना चाहा, जिसके लिए लोगों ने पिंडी पर प्रहार किया. जैसे ही पिंडी पर प्रहार हुआ वहां से खून की धार निकलने लगी. घटना से लोग हतप्रभ हो गये. पुनः लोगों ने दूसरा रास्ता अख्तियार किया और पेड़ के तना समेत माता की पिंडी को गांव ले आये. जहां विधिपूर्वक स्थापित किया गया. इसके बाद वहां पुनः पीपल, बड़ एवं पाकड़ के तीन पेड़ उत्पन्न हो गये और माता की पिंडी पुनः तीनों वृक्षों के कोढ़र में चली गयी, जिसे जमाने से लोग पूजते आ रहे हैं. उनकी अपनी प्रसिद्धि है.
ऐसा मान्यता है की यहां आकर जिसने भी श्रद्धापूर्वक माता से जो कुछ भी मांगा. माता उसकी मनोकामना पूर्ण करती हैं. वर्ष 1988 में माता के मंदिर का जीर्णोद्धार संत जगदीश गौतम उर्फ जयमंगला बाबा ने कराया. मंदिर परिसर में उन्होंने कई यज्ञ भी कराया. इस प्रकार माता की प्रसद्धि पुनः फैल गयी. उस समय से हर सोमवार एवं शुक्रवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. जहां नवरात्रि में खास कर सप्तमी, अष्टमी एवं महानवमी पर भारी भीड़ उमड़ती है. यहां माता के दर्शन को आनेवालों में नेपाल सहित कई प्रदेशों के लोग शामिल होते हैं.
जयमंगला बाबा के सती स्थान आने और मंदिर के जीर्णोद्धार के पीछे भी एक कहानी है. जय मंगला बाबा देवघर धाम में थे कि माता ने उन्हें दर्शन देकर अपने पास बुलाया. बाबा माता की खोज में निकल पड़े. काफी खोजबीन के बाद माता के भग्न मंदिर को ढूंढ़ निकाला तथा माता की सेवा में लग गये. यहां के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. बाबा की ही कृपा है कि आज मंदिर के 15 कट्ठे के परिसर में हनुमान मंदिर, धर्मशाला एवं पुस्तकालय शोभायमान है.
मां के जयकारे से हर कोना हुआ भक्तिमय: महनार. महनार गंगाजी अवस्थित बड़ी दुर्गाजी मंदिर में पत्थर की मूर्ति स्थापित है. वहां पर सालों भर अलग-अलग भक्तों के द्वारा माता को भोग लगाने एवं पूजा करने की परंपरा है. इसका सभी भक्त खुशी-खुशी निर्वहण करते आ रहे हैं. 30 दिन अलग-अलग भक्तों की सूची बनायी गयी है. उसी के अनुसार माता की पूजा सह भोग प्रत्येक दिन लगाये जाते हैं. वहीं, दूसरी तरफ महनार प्रखंड व नगर क्षेत्र में शक्ति की देवी मां दुर्गा जी की पूजा की तैयारी अंतिम चरण में है. हर तरफ माता के जयकारे से कोना-कोना भक्तिमय बना हुआ है. महनार नगर का शायद ही कोई मार्ग है,
जहां माता की पूजा नहीं होती है. स्टेशन रोड में शुक्र हाट पर, निबंधन ऑफिस के सामने, संगत मंदिर में, अरुण चौधरी के मकान में, न्यू रोड में, हाजीपुर रोड में, गंगाजी रोड आदि जगहों पर भव्य पंडाल और मूर्ति स्थापित कर माता जी की पूजा की जा रही है. इसके अतिरिक्त गांवों में घर-घर में नवरात्र हो रहा है और पूरे समाज के लोगों द्वारा
एक जगह पर मिल कर लगभग सभी गांवों में मूर्ति स्थापित कर माता जी की पूजा की जा रही है. इसमें सबसे पुरानी पूजा, जो 135 वर्षों से चमरहरा गांव में होती आ रही है. बंगाली पद्धति से पूजा होने के कारण सबसे भिन्न है. चरहरावाली दुर्गा मैया प्राचीनकाल से अपने भक्तों का कष्ट मिटाने के कारण काफी लोगों के बीच आस्था का केंद्र बनी हुई है.
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