भवानी भुइयां की महिमा अपरंपार

भगवानपुर. हाजीपुर-मुजफ्फरपुर रेल खंड पर बिठौली हाल्ट और भगवानपुर स्टेशन के बीच रतनपुरा गांव के समीप रेल ट्रैक से सटे भवानी भुइयां नाम से प्रसिद्ध सैकड़ों वर्ष पुराना एक वृक्ष है. जहां लोग आश्विन मास में शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को उस वृक्ष की पूजा करने के लिए काफी दूर-दूर से पहुंचते हैं. कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 8, 2016 7:54 AM
भगवानपुर. हाजीपुर-मुजफ्फरपुर रेल खंड पर बिठौली हाल्ट और भगवानपुर स्टेशन के बीच रतनपुरा गांव के समीप रेल ट्रैक से सटे भवानी भुइयां नाम से प्रसिद्ध सैकड़ों वर्ष पुराना एक वृक्ष है. जहां लोग आश्विन मास में शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को उस वृक्ष की पूजा करने के लिए काफी दूर-दूर से पहुंचते हैं.
कुछ लोग मन्नतें मानने के लिए तो कुछ लोग मन्नत के बाद अपनी मुरादें पूरी होने पर भवानी जी के वृक्ष में पटमौली टांगने के लिए आते हैं. इस वृक्ष को आजतक लोग नहीं पहचान पाये. यह किस चीज का वृक्ष है. वर्षों पुराना यह वृक्ष न बढ़ता है और न ही घटता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वज भी कहते आ रहे हैं कि हमलोगों की कई पुश्त बीत गयी, लेकिन वृक्ष जैसे के तैसे है.
स्थानीय लोगों का वृक्ष के संबंध में तरह-तरह की धारणा है. रतनपुरा गांव निवासी बैजू पंडित, पूर्व मुखिया पति राजदेव राय सहित अन्य लोगों ने बताया कि हमारे पूर्वजों का कहना था कि उनके पूर्वज कहते थे कि अंग्रेज शासन में एक औरत दही बेच कर अपने घर वापस जा रही थी, उसी दौरान अंग्रेजों की गोड़्ड़ा पलटन ने उस औरत को घेरने का प्रयास करने लगे.
पलटन से अपनी आबरू को बचाने के लिए औरत ने भवानी मइया से गुहार लगायी और पुकारा, या भवानी, फाट: हे धरती हम तोरा में समाऊ. उसके पुकार लगाते ही धरती फटी और दही बेचने वाली धरती में समा गयी. उसी स्थल पर कुछ दिनों बाद वर्तमान यह वृक्ष उग आया, वृक्ष के उगने के कुछ ही दिन बाद किसी ग्रामीण को स्वप्न आया और सुबह होते ही वृक्ष की पूजा शुरू हो गयी. लोगों का कहना है कि इस मां भवानी के वृक्ष में पटमौली बांधकर और सर झुका कर जो भी मन्नतें मांगी जाती है.
मां भवानी उसकी मुराद जरूर पूरी करती हैं. लोगों का कहना है कि करीब चालीस वर्ष पूर्व रेलवे ने छोटी लाइन से बड़ी लाइन के लिए रेल ट्रैक बदलने के समय वृक्ष को काटने का प्रयास किया. पेड़ को काटने और उखाड़ने के लिए जितनी मशीन लगायी गयी
वृक्ष के समीप पहुंचते ही सब के सब खराब होते चले गए. थक हार कर रेलवे के अभियंता एवं अधिकारियों ने छोड़ दिया. इसके बाद उच्च अधिकारियों के निर्देश पर उस स्थान पर रेल लाइन को थोड़ा तिरछा करके रेलवे लाइन बिछायी गयी. आज भी इस स्थान से रेलगाड़ी के चालक गुजरते समय गाड़ी का हॉर्न जरूर बजाते हैं. पूर्व में यहां बकरे की बली काफी संख्या में चढ़ायी जाती थी, किंतु अब लोग प्रांगण से बाहर या यहां पूजा कर अपने घर ले जाकर बली चढ़ाते हैं.

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