Bihar के बगहा के हरनाटांड़ वन क्षेत्र के बैरिया काला गांव में एक दुर्लभ प्रजाति के तितली मिलने से लोगों में तरह-तरह की चर्चा का विषय बना हुआ है. लोग तितली को देवी का आवतर समझ रख कर पूजा पाठ करने में जुट थे. वन्य प्राणी विशेषज्ञों द्वारा इसकी पहचान की गयी है. दावा किया जा रहा है कि डीपीआर सीमावर्ती क्षेत्र में यह पहली बार देखा गया है. इस तितली का नाम एटलस मॉथ बताया जा रहा है. यह दुर्लभ प्रजाति के तितली बैरिया काला गांव के बुद्ध राम महतो के एक घर में बल्ब पर बैठे देख लोग पकड़ कर उसे देवी का आवतर मानकर पूजा करने लगे.
तितली मिलने की सूचना जैसे ही बगहा वन क्षेत्र के वन कर्मियों को मिली वन कर्मियों की टीम पहुंच तितली को सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया. इसकी पुष्टि बगहा वनक्षेत्र अधिकारी सुनील कुमार ने की. उन्होंने बताया कि इस दूर्लभ प्रजाति के दिखने वाले तितली को अलग-अलग देशों में लोग अलग अलग नामों से जानते हैं. यह प्रजाति भारत के आलावा अमेरिका, मलेशिया, चीन, स्पेन, अफ्रीका आदि देशों में भी पाया जाता है और इन सब देशों में उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है.
एटलस मॉथ जून से अक्तूबर के अंत तक दिखाई देते हैं. इसके अंडे से बच्चे दो सप्ताह में निकलते हैं. प्युपा से बड़ा तितली बनने में 21 दिनों तक का समय लग जाता है और पूरे आकार में आने के बाद इनके जीवन चक्र दस दिनों तक ही रहता है. एटलस मॉथ के पंख का 24 सेंटीमीटर तक फैलाव वाले रहते हैं. जबकि इंडियन लूना मॉथ के पंख का फैलाव 12 से 17 सेंटीमीटर तक रहता है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अधिकारी कमलेश मौर्या ने बताया कि इसके बारे में जानकारी नहीं होने के कारण लोग इसे नजर अंदाज कर देते हैं. लेकिन यह दुर्लभ प्रजाति के कीट खुशनसीब लोगों को ही दिखाई देते हैं. इस कीड़े को इनसेक्टा वर्ग में रखा जाता है. इस कीड़े के पंख काले, गुलाबी, बैगनी और सफेद रेखाओं के साथ भूरे रंग के होते हैं. इसके पंखों के नीचे का भाग हल्का होता है. वहीं इसके दोनों पंखों की नोक पर सांप के सिर जैसा निशान दिखता है, जो अन्य तितली से इसे अलग करता है. इस एटलस मॉथ का निवास स्थान उष्णकटिबंधीय जंगल के अलावा माध्यमिक जंगल और झाड़ीदार क्षेत्र में पाया जाता है.