गया: वट सावित्री व्रत इस बार 19 मई को मनाया जायेगा. अभी करीब 10 दिन शेष बचे हैं, इसके बावजूद बाजार में खरीदारी को लेकर चहल-पहल शुरू हो गयी है. सोमवार की दोपहर बाद काफी महिलाओं ने साड़ियों के साथ-साथ पूजन व शृंगार सामग्रियों की खरीदारी की. तेज धूप के बावजूद महिलाएं घरों से निकलकर बाजार पहुंचीं व वट सावित्री व्रत व पूजन से जुड़े सामान की खरीदारी की. केपी रोड, जीबी रोड, धामी टोला सहित प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्रों में स्थायी व अस्थायी दुकानों से महिलाएं व उनके परिजनों ने बट सावित्री पूजन से जुड़े सामान की खरीदारी की है. बाजार में खरीदारी को लेकर भीड़ अधिक बढ़ने से दोपहर बाद से देर शाम तक अधिकतर व्यवसायिक क्षेत्रों में जाम की स्थिति बनी रही. लोगों को पैदल चलने में भी मशक्कत करनी पड़ रही थी. इधर, कपड़ा के खुदरा कारोबारी महेंद्र मोर ने बताया कि वट सावित्री पूजा के साथ-साथ वैवाहिक लगन को लेकर बाजार में भीड़ बढ़ी है. महंगाई के बावजूद लोग खुलकर खरीदारी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि अधिकतर महिलाएं औसतन एक हजार से 10 हजार रुपये रेंज तक की साड़ियों की खरीदारी कर रही हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत को ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी से अमावस्या तक व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से पूर्णिमा तक करने का विधान है. इस वर्ष यह व्रत 19 मई को मनाया जायेगा. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कथा सावित्री और सत्यवान से जुड़ी है. देवी सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए कठोर व्रत की थी. देवी सावित्री ने व्रत को रखने के लिए वटवृक्ष (बरगद) की पूजा की थी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा विष्णु व महेश, तीनों महा शक्तियों का वास होता है. इस व्रत को करने वाली महिलाएं अखंड सौभाग्यवती बनी रहने की प्रभु से कामना करती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत को रखने पर पति के स्वस्थ जीवन व लंबी आयु की प्राप्ति होती है. साथ ही घर में सुख शांति व समृद्धि का भी वास होता है.
भारद्वाज ज्योतिष शिक्षा व शोध संस्थान के निदेशकडॉ ज्ञानेश भारद्वाज ने बताया कि 18-19 मई की रात्रि 09:02 से शुरू लेकर 19 मई को रात्रि 08:32 बजे तक अमावस्या तिथि है. भरणी नक्षत्र तदुपरी कृतिका नक्षत्र व्याप्त है. वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त सुबह 05:09 से 09:18 तक अति शुभ है. वट सावित्री व्रत वाले दिन सुहागिन महिलाओं को सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करना चाहिए. इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस दिन शृंगार जरूर करना चाहिए. इस दिन पीला सिंदूर लगाना शुभ माना गया है.
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इस दिन बरगद पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान व यमराज की मूर्ति रख कर पूजन करने की मान्यता रही है. बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल व मिठाई चढ़ाना चाहिये. इसके बाद वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर परिक्रमा करना चाहिए. इसके बाद हाथ में काले चने को लेकर इस व्रत की कथा सुनने के बाद बांस के पंखे से वटवृक्ष को हवा देने के बाद व ब्राह्मण को दान जरूर दें. अगले दिन व्रत को तोड़ने से पहले बरगद के वृक्ष का कोपल खाकर उपवास समाप्त करें.