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Vat Savitri Vrat 2024: पति की लंबी आयु के लिए महिलाओं ने की बरगद को पूजा..

Vat Savitri Vrat 2024 सुहागिन महिलाएं अपने अखंड सुहाग की कामना के लिए गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में रोहिणी नक्षत्र और धृति योग के साथ शनि जयंती के सुयोग में वट सावित्री का व्रत मनाया

By RajeshKumar Ojha | June 6, 2024 9:50 PM

Vat Savitri Vrat 2024 राजधानी में गुरुवार को सुहागिन महिलाओं ने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति व समृद्धि के लिए वट सावित्री व्रत रख वट वृक्ष की पूजा की. इसे लेकर नव विवाहिताओं में खासा उत्साह देखने को मिला. इस दौरान महिलाएं वट वृक्ष (बरगद ) के पेड़ के नीचे पहुंचीं और जल, अक्षत, कुमकुम आदि से पूजा-अर्चना कर दीप जलाकर आरती उतारी. इसके बाद लाल मौली धागे से वृक्ष के चारों और घूमते हुए सात बार परिक्रमा लगाकर वट सावित्री की कथा सुनी. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीपल की तरह वट वृक्ष में भी मां लक्ष्मी का वास माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है और दीर्घायु होने का आर्शिवाद प्राप्त होता है.

रोहिणी नक्षत्र व धृति योग में हुई पूजा-अर्चना
सुहागिन महिलाएं अपने अखंड सुहाग की कामना के लिए गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में रोहिणी नक्षत्र और धृति योग के साथ शनि जयंती के सुयोग में वट सावित्री का व्रत मनाया गया. सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की दीर्घायु होने की कामना के साथ पूरी निष्ठा के साथ वट सावित्री पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना की. सुबह से ही नव विवाहिता सहित महिलाएं नये-नये परिधानों में सज धज कर मौसमी फल, पकवान, प्रसाद व पूजन सामग्री के साथ वट वृक्ष के पास पहुंची. प्रसाद चढ़ाकर वट वृक्ष की पूजा की. पेड़ पर कच्चा धागा बांधा और पंखा झेलकर पति के दीर्घायु होने और अखंड सौभाग्य की कामना की. राजधानी के विभिन्न स्थलों और मंदिरों में वट वृक्ष के नीचे वट सावित्री पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. वट सावित्री की पूजा को लेकर अहले सुबह से वटवृक्ष के नीचे सुहागिनों की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी. सुहाग का लाल जोड़े के बीच सुहागिन सोलह शृंगार कर हाथों में पूजा की थाली लेकर वटवृक्ष के पास पहुंची. 

मिथिलांचल की नव विवाहिताओ ने भी सुनी कथा
वट सावित्री की पूजा में मिथिलांचल की नवविवाहिताएं भी वट सावित्री की पूजा-अर्चना की. शादी के बाद पहली बरसाईत में पूरे दिन उपवास कर सोलह शृंगार कर सभी महिलाएं पेड़ को आम और लीची का भोग लगाया. गुड्डा-गुड़िया को भी सिंदूर लगाया.अहिबातक पातिल में पूजन की दीपक जलायी गयी. वर पूजा के बाद नव दंपति को बड़े-बुजुर्ग महिलाएं धार्मिक व लोकाचार की कई कथाएं सुनी. उसके बाद पांच सुहागिन महिलाएं नवविवाहिता के साथ खीर, पूरी व ऋतु फल का प्रसाद ग्रहण किया. आगंतुक महिला श्रद्धालु एवं कथावाचिका को अंकुरित चना, मूंग, फल और बांस का पंखा देकर उनसे आशीर्वाद पायी.

वट वृक्ष में भी होता है मां लक्ष्मी का वास
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीपल की तरह वट वृक्ष में भी मां लक्ष्मी का वास माना जाता है. कथा अनुसार जब यमराज सत्यवान के प्राण ले जाने लगे, तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी थी. उसकी पति के प्रति निष्ठा को देखकर यमराज ने आज ही के दिन वरदान मांगने को कहा. जिस पर सावित्री ने एक वरदान में सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा. जब उन्हें वरदान दिया गया, तो सावित्री ने कहा कि वह पतिव्रता स्त्री हैं और बिना पति के मां नहीं बन सकती. इसका एहसास यमराज को हुआ और उन्हें लगा कि मेरे द्वारा दिये गये वरदान से मैं स्वयं गलती कर बैठा हूं. फिर उन्होंने सत्यवान के प्राण को फिर से उनके शरीर में वापस कर दिया.

वैज्ञानिक तौर पर भी वट वृक्ष का है महत्व
वट वृक्ष के नीचे पूजा करने पहुंची महिलाओं से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे पुरानी मान्यताओं के अनुसार पति के लिए वट सावित्री की पूजा करती हैं, लेकिन पूरे घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है. वहीं कई महिलाओं ने इसके वैज्ञानिक पक्ष के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा- वैज्ञानिक तौर पर भी वट वृक्ष के नीचे आश्रय लेने से ऑक्सीजन अधिक मिलता है. ऐसे में वट वृक्ष के नीचे पूजा करना अति लाभदायक है और धार्मिक रूप से यह अति उत्तम है.

प्रकृति पूजन से मिलता है अखंड सौभाग्य
बरगद पेड़ के नीचे पूजा करने के बाद महिलाओं ने कथा सुनीं. इस दौरान बताया गया कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में पर्यावरण सुरक्षा सूत्र प्रतिपादित किये गये हैं. जो कि विभिन्न धार्मिक आचरणों से झलकते हैं. यज्ञ एवं हवन से वायुमंडल को शुद्ध करना भी सनातन धर्म का विषय रहा है. व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, दीर्घायु रहें, नीति पर चले और पशु, वनस्पति व जगत के साथ साहचर्य रखें, यही वैदिक साहित्य की विशेषता है. इसी प्रकार के व्यवहार में से वट सावित्री पूजन भी आते हैं. जो यह बताते हैं कि हमारे प्रकृति पूजन से अखंड सौभाग्य का वरदान हमें प्राप्त हो.

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