कुलपति का सीएम नीतीश को पत्र : खुद को राजभवन का करीबी बता करता है फोन, फर्जीवाड़े के लिए बना रहा दबाव
मगध विवि के कलपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पास से मिली अकूत संपत्ति का मामला अभी सुलझा भी नहीं है कि मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विवि और पाटलिपुत्र विवि में भी ऐसी गड़बड़ी का मामला सामने आया है.
पटना. मगध विवि के कलपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पास से मिली अकूत संपत्ति का मामला अभी सुलझा भी नहीं है कि मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विवि और पाटलिपुत्र विवि में भी ऐसी गड़बड़ी का मामला सामने आया है. राज्य के एक यूनिवर्सिटी के कुलपति ने तो खुद पत्र लिखकर विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के खेल को उजागर कर दिया है.
मौलाना मजहरुल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय में गड़बड़ी का खुलासा वहां के कुलपति प्रो. कुद्दुस ने खुद किया है. उन्होंने बिहार के राज्यपाल फागू चौहान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखे पत्र में कहा है कि कर्मचारी और कॉपी खरीद के नाम पर फर्जी भुगतान करने का उनपर दबाव बनाया जा रहा है.
उन्होंने दो मोबाइल नंबर और लखनऊ के अतुल श्रीवास्तव नामक के व्यक्ति का जिक्र अपने पत्र में किया है. उन्होंने कहा कि अतुल खुद को राजभवन का करीबी बताता है और बार-बार फोन कर भुगतान करने का दबाव बना रहा है. कुलपति ने उत्तर पुस्तिका खरीद के टेंडर में कार्यकारी/प्रभारी कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप की भूमिका की जांच की भी मांग की है.
कुलपति के पत्र के अनुसार पटना की रिद्धि-सिद्धि आउटसोर्सिंग एजेंसी ने 45 की जगह 80 मैनपावर के भुगतान के लिए बिल भेज दिया. जब भुगतान के लिए फाइल रोकी गयी, तब अतुल श्रीवास्तव नाम के एक व्यक्ति ने राजभवन के पीबीएक्स नंबर से खुद को अधिकारी बताकर भुगतान के लिए दबाव बनाया है. वहीं इस पत्र में कॉपी छपाई का शुल्क 7 रूपये से 16 रूपये करने का आरोप लगाकर घालमेल का आरोप लागाया है. कुलपति के इस पत्रके बाद हड़कंप मच गया है.
वहीं दूसरा मामला बिहार के पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय का है. इस विवि का भवन अब तक नहीं बना पाया है, पर किताब और आलमीरा की खरीद के लिए 5 करोड़ की राशी खर्च कर दी गयी है और इन किताबों को रखने के लिए आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में 50 लाख का किराया पर जगह लिया गया है. यह खरीद पूर्व कुलपति जीएस जायसवाल के आदेश पर हुआ है.
यहां के शिक्षकों और छात्रों ने आरोप लगाया हैं कि किताब की खरीददारी में मानकों का पालन नहीं किया गया. सिलेबस और समसामयिक मुद्दों के इतर किताबें खरीद ली गईं है. ताजा संस्करण की बजाए पुरानी किताबें भी खरीद ली गई हैं, जो बिल्कुल ही अनुपयोगी है. दरअसल विश्वविद्यालयों में पुस्तकों की खरीद टेंडर के जारी होती है, पर यह खरीद बिना टेंडर के ही की गई है.
Posted by Ashish Jha