पटना. कोरोना संक्रमण के साथ ही अब ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. ब्लैक फंगस आंखों के साथ त्वचा, नाक, दांतों को नुकसान पहुंचाता है. इससे स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप है. वहीं, लोगों में भी दहशत है. लेकिन सावधानी और सतर्कता से इसे हराया जा सकता है. आइजीआइएमएस में ब्लैक फंगस का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने पाया कि दूसरी लहर में लोगों के नाक और मुंह में वायरस तेजी से चिपक रहा है और लंबे समय तक एक स्थान पर कैविटी बना रहा है. पीएमसीएच, आइजीआइएमएस, एम्स व एनएमसीएच में ब्लैक फंगस का इलाज चल रहा है.
आइजीआइएमएस के डॉक्टरों के मुताबिक बीते 15 दिनों के अंदर ब्लैक फंगस ओपीडी में ऐसे कई मरीज फंगस का अटैक समझकर इलाज कराने आये. लेकिन अधिकांश मरीजों में फंगस की पुष्टि नहीं हुई. डॉक्टरों ने पाया कि सेंट्रल रेटिनल आर्टरी में ब्लॉकेज था, जिससे कुछ मरीजों की आंखों की रोशनी बेहद कमजोर हो गयी.
आंखों की नसों में खून के थक्के भी कोरोना बना रहा है. आइजीआइएमएस के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल ने कहा कि एथिकल कमेटी की बैठक में कोरोना पर रिसर्च करने के लिए तैयार प्रस्ताव पास किया जायेगा. साथ ही वर्तमान में भी बीमारी से बचाव पर स्टडी चल रही है.
विशेषज्ञों के मुताबिक कैविटी में हुए घाव से वायरस और गंभीर रूप में मुंह के अंदर फैल रहा है. पटना एम्स व आइजीआइएमएस के डॉक्टर अब वायरस के चिपकने के लिए जिम्मेदार स्पाइक प्रोटीन की पड़ताल शुरू करने जा रहे हैं. दोनों अस्पतालों के मेडिकल रिसर्च यूनिट, एथिकल कमेटी, पैथोलॉजी, इएनटी व नेत्र रोग विभाग के डॉक्टर रहेंगे. आइजीआइमएस के डॉ विभूति प्रसन्न सिन्हा ने कहा कि प्रोटीन से कोरोना वायरस नाक व मुंह में चिपकता है.
कोरोना वायरस की बाहरी सतह पर क्राउन (मुकुट) की तरह दिखने वाला जो हिस्सा होता है, यहां से वायरस प्रोटीन को निकालता है. इसे स्पाइक प्रोटीन कहते हैं. इसी प्रोटीन से संक्रमण की शुरुआत होती है. यह इंसान के एंजाइम एसीइ 2 रिसेप्टर से जुड़ कर शरीर तक पहुंचता है और फिर संख्या बढ़ा कर संक्रमण को बढ़ाता है.
Posted by Ashish Jha