पटना. मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को अयोध्या के राजकुमार रामचंद्र का विवाह जनक कुमारी सीता के साथ हुआ था. इस तारीख को विवाह पंचमी कहा जाता है और अवध में विवाह के लिए यह सबसे शुभ तिथि मानी जाती है.
इस दिन अवध में बड़े ही धूमधाम से श्रीराम विवाहोत्सव मनाया जाता है. विवाह पंचमी के दिन सीता-राम विवाह उत्सव तो मिथिला में भी होता है, लेकिन मैथिल इस दिन कन्यादान करने से परहेज करते हैं.
विवाह पंचमी के दिन मिथिला में कोई पिता अपनी बेटी का विवाह नहीं करता था, वैसे अब जानकारी के अभाव और परंपरा के धूमिल होने के कारण कुछ एक विवाह होने लगे हैं, लेकिन बहुआयत में इस दिन विवाह से परहेज ही किया जाता है.
अवध में जहां बहू को लक्ष्मी माना जाता है, वहीं मिथिला में बेटी को लक्ष्मी माना जाता है. अवध इस तिथि को लक्ष्मी के आगमन की तिथि मानता है, जबकि मिथिला के लिए यह लक्ष्मी की विदाई तिथि है. मिथिला में इस तिथि पर सीता को याद किया जाता है.
भारत और नेपाल में फैले मिथिला समाज में इस दिन लोग कन्याओं का विवाह करने से बचते हैं. ऐसी मान्यता है कि उर्मिला के पिता जनक कुशध्वज ने मिथिला की सत्ता संभालने के बाद तीन परंपराएं स्थापित की. जनक कुशध्वज ने ही मिथिला में सशर्त बेटी विवाह की परंपरा भी हमेशा के लिए खत्म कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि उनके बड़े भाई जनक सिरध्वज ने केवल वर की योग्यता देखी, और कुछ नहीं देखा.
उन्होंने कहा कि विवाह पंचमी निश्चित रूप से शुभ दिन था, लेकिन मेरी चारों बेटियों ने जीवन भर दुख भोगा. सीता ने जहां वनवास भोगा वही उर्मिला ने 14 वर्षों तक पति वियोग में बिताये. उर्मिला ने वियोग क्यों सहा, इस प्रश्न का तो खुद राम भी उत्तर नहीं दे पाये.
किसी मैथिल को मेरी तरह कन्यादान का दुख न हो इसलिए वो इस दिन कन्यादान से परहेज करें. मिथिला में यह तारीख मेरी चारों बेटियों को याद किया जाये. उनकी तरह कोई मिथिला की बेटी दुखी न रहे इसकी कामना की जाये. जनक कुशध्वज के इस वचन को आज भी मैथिल समाज निभा रहा है. लोग विवाह पंचमी के दिन विवाह करना उत्तम नहीं मानते हैं.
आज भी बहुआयत मैथिलों का यही मानना है कि सीता की तरह किसी बेटी का वैवाहिक जीवन न हो, इसलिए इस दिन विवाह से परहेज किया जाता है. लोगों का मनना है कि सीता का जीवन दुखों से भरा रहा. विवाह होने के बाद सीता को 14 साल का वनवास भोगना पड़ा.
वनवास काल के दौरान भी मुश्किलों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. लंकापति रावण ने अपहरण लिया. लंका विजय हासिल कर जब दोनों अयोध्या लौटे, तो अयोध्या के धोबी ने कलंक लगा कर देश निकाला पर मजबूर कर दिया.मिथिला के लोग आज भी सीता और उर्मिला का जीवन नहीं भूल पाये हैं और इस तिथि को अपनी बेटी का विवाह करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.
जनक कुशध्वज ने विवाह पंचमी पर कन्यादान से परहेज करने के साथ साथ दो और परंपराएं शुरू की थी. लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला चार बहनों में तीसरी बहन थी और वो जनक कुशध्वज की बेटी थी.
जनक कुशध्वज ने राम से सवाल किया था कि सीता को पति वियोग के कारण रहे, लेकिन मेरी पुत्री उर्मिला को पति वियोग क्यों हुआ. कहा जाता है कि सरयू में समाधि लेने से पूर्व राम भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं खोज पाये.
जनक कुशध्वज इसी लिए एक घर में तीसरी बहन की शादी पर प्रतिबंध लगा दिया. उन्होंने कहा कि मिथिला की कोई बेटी उर्मिला जैसा दुख उठाये यह मैं नहीं चाहता. जनक कुशध्वज ने तो अपने कार्यकाल में पश्चिम कन्यादान पर भी रोक लगा दी थी, लेकिन अब लोग धीरे धीरे जनक कुशध्वज के समय से चली आ रही मान्यताओं और परंपराओं को भूलने लगे हैं.
Posted by Ashish Jha