पटना. बिहार में इस साल सावन सूखा ही बिता जा रहा है. 36 जिलों में सुखाड़ दस्तक दे रहा है. वैसे तो पूरे राज्य में सामान्य से 45 फीसदी कम बारिश हुई है, लेकिन इन 36 जिलों में की स्थिति ठीक नहीं है. हालांकि, यह तय है कि बेहद समृद्ध किसान ही भू-जल सुविधा से खेत सींच सकेंगे. साधारण किसान के पास केवल कम पानी में उगायी जाने वाली फसलों से ही उम्मीद बची है. मौसम विज्ञानियों की राय है कि कम पानी में होने वाली और कम समय में पकने वाली फसलें ही लगाएं.
आइएमडी की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक 36 जिलों में सामान्य से काफी कम बरसात हुई है. इनमें भी 15 जिले ऐसे हैं, जहां बारिश नाममात्र ही हुई है. पूरे प्रदेश में अभी तक सिर्फ 240 मिलीमीटरबारिश ही हुई है, जबकि सामान्य तौर पर 432 मिलीमीटरबारिश होनी चाहिए थी. फिलहाल, प्रदेश में अररिया और किशनगंज ही ऐसे जिले हैं, जहां बरसात सामान्य से 15 फीसदी तक अधिक हुई है.
क्लाइमेट चेंज की चलते खेती के लिए यह बड़ा संकट है. फिर भी किसान को चाहिए कि अपने खाने भर धान जरूर बोएं. नहीं, तो उन्हें सूखे का संकट और भयावह नजर आयेगा. दरअसल, किसान को पेट भरने के लिए बाजार से धान खरीदने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए. जिनके पास सिंचाई की सुविधा है, वे 110-115 दिनों में पकने वाले धान के बीज लगाएं. 140-145 दिन वाला बीज हरगिज न बोयें न रोपें. डॉ सिंह ने बताया कि किसान धान को गेहूं की तरह बोएं. इससे उन्हें अपने खाने योग्य धान आसानी से मिल जायेगा. हालांकि अनुमान है कि 15 अगस्त के बाद अच्छी बारिश होगी.
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राजेंद्र भगवती, राजेंद्र सरस्वती, राजेंद्र नीलम, 27 पी 31 और 6129 जैसी वैरायटी इस सीजन में बेहतर होगी. नाम मात्र की नमी योग्य सिंचाई में इसे गेहूं की तरह बोया जा सकता है. इनमें जलवायु के बदलाव को बर्दाश्त करने की क्षमता भी ह
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषिविश्वविद्यालय के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी और जलवायु विशेषज्ञ डॉ ए सत्तार ने बताया कि मॉनसून अजीबवर्ताव कररहा है. लिहाजा, बिहार के किसानों को वैकल्पिक खेती करने की जरूरत है.