पूर्वी राज्यों से ज्यादा इस बार बिहार में हुई प्री मॉनसून वर्षा, जानें बिहार में मॉनसून कब तक देगा दस्तक
बिहार में मार्च से मई तक के प्री मॉनसून सीजन में सामान्य से नौ फीसदी अधिक बारिश हुई है. यह उसके पड़ोसी राज्यों से अधिक है. प्री मॉनसून का बढ़ा हुआ ट्रेंड पिछले दो-तीन साल में बढ़ा है.
पटना. देश के पूर्वी राज्यों और पूर्वी हिमालय में बसे कई राज्यों की तुलना में इस बार सबसे ज्यादा प्री मॉनसून बारिश बिहार में दर्ज हुई है. बिहार में मार्च से मई तक के प्री मॉनसून सीजन में सामान्य से नौ फीसदी अधिक बारिश हुई है. यह उसके पड़ोसी राज्यों से अधिक है. प्री मॉनसून का बढ़ा हुआ ट्रेंड पिछले दो-तीन साल में बढ़ा है. मौसम विभाग के मुताबिक पड़ोसी राज्य झारखंड में प्री मॉनसून बारिश सामान्य से 11 फीसदी कम, उत्तर प्रदेश में 19 प्रतिशत,ओड़िशा में सामान्य से 27 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 26, त्रिपुरा में 36 और मिजोरम में सामान्य से 32 फीसदी कम प्री मॉनसून बारिश हुई है. दिल्ली को छोड़ कर कमोबेश यही स्थिति उत्तरी राज्यों की है. गंगेटिक मैदान से परे पश्चिमी बंगाल के शेष हिस्से में सामान्य से केवल तीन फीसदी अधिक प्री मॉनसून बारिश हुई है.
पूर्वोत्तर पहुंचा मॉनसून, बिहार में देगा समय पर दस्तक
दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून पूरी रफ्तार के साथ आगे बढ़ते हुए गुरुवार को बंगाल के उत्तर-पश्चिम की खाड़ी के कुछ हिस्सों मसलन मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड के अधिकतर हिस्सों में आगे बढ़ गया है. अगले दो दिनों के दौरान मध्य और उत्तरी बंगाल की खाड़ी के कुछ और हिस्सों, पूर्वोत्तर राज्यों के शेष हिस्सों और उपहिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम के कुछ हिस्सों में माॅनसून पहुंच जायेगा. लिहाजा बिहार मेें समय से पहले या समय पर मॉनसून आने की संभावनाएं मजबूत हुई हैं.
अगले तीन दिन जारी रहेंगी थंडर स्टोर्म गतिविधियां
प्रदेश के उत्तरी बिहार में थंडर स्टोर्म गतविधियां तेज अगले तीन दिन जारी रहेंगी. इसको लेकर अलर्ट रहेगा. वहीं, गुरुवार को बिहार में सर्वाधिक अधिकतम तापमान डेहरी में 42.8, औरंगाबाद में 42.2 और बक्सर में 42.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया.
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प्री मॉनसून बारिश और थंडर स्टोर्म गतिविधियों में आयी तेज कुछ और साल ऐसी ही रही, तो बिहार के फसल पैटर्न में बदलाव करना पड़ेगा. बिहार के अधिकतर इलाके में मार्च से मई के बीच अगर पुरवैया का प्रवाह बढ़ा, तो हमारी कृषि आधारित गतिविधियों पर असर पड़ेगा.
– डॉ ए सत्तार , वरिष्ठ मौसम विज्ञानी, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर