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बिहार में बारिश के पैटर्न पर बड़ा बदलाव, मिथिलांचल की खेतों में बिचड़ा से लेकर रोपनी तक प्रभावित

Bihar weather: धान का कटोरा कहे जाने वाला शाहाबाद का इलाका हो या मिथिलांचल की खेत, बिचड़ा से लेकर रोपनी प्रभावित हो रही है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून बेहद असंतुलित हो गया है.

बिहार में बारिश के पैटर्न में बड़ा बदलाव दिख रहा है. पहले सावन के महीने में भारी बारिश होती थी, पर इस साल लोग तपिश की मार झेल रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार में पिछले 20 सालों से बारिश के दिनों में लगातार कमी आ रही है. इसका बड़ा प्रभाव खेती-किसानी पर पड़ रहा है. वहीं इस सीजन में धान की रोपनी नहीं होने से किसानों के चेहरे पर मायूसी है. बारिश के असंतुलित होने से कृषि उत्पादन में कमी आने की भी आशंका बढ़ गयी है. बिहार जैसे कृषि आधारित समाज और अर्थव्यवस्था के लिए असंतुलित बारिश आपदा से कम नहीं है. बिहार में मौसम का मिजाज बदला-बदला सा नजर आ रहा है. भारी बारिश के लिए मशहूर सावन के इस महीने में भी जेठ की तरह असहनीय धूप से किसानों के चेहरे मुरझाये हुए हैं.

मिथिलांचल के खेत में बिचड़ा से लेकर रोपनी तक हो रही प्रभावित

धान का कटोरा कहे जाने वाला शाहाबाद का इलाका हो या मिथिलांचल की खेत, बिचड़ा से लेकर रोपनी प्रभावित हो रही है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून बेहद असंतुलित हो गया है. इसकी वजह से आषाढ़, सावन और भादो जैसे बरसाती महीनों का चरित्र भी बदलने लगा है. अब आषाढ़ में रिमझिम की जगह भारी बारिश हो रही है. सावन-भादो की झमाझम बारिश अब अल्प वर्षा में बदल गयी. बारिश के दिन भी कम हुए हैं. यही वजह है कि बिहार जैसा मैदानी इलाका आषाढ़ और अब सावन में अभूतपूर्व तपिश झेल रहा है. इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि पिछले कुछ सालों से बिहार में मॉनसून आने का समय पहले से ज्यादा नियमित हुआ है. इसके बाद भी मॉनसून के आने के बाद और उसके जाने से पहले के बीच की उसकी सक्रियता बेहद असंतुलित हो गयी है.

बारिश नहीं होने से कृषि पैदावार पर बड़ा संकट

मॉनसून के चलते कठिन मौसमी दशाएं विकसित हो रही हैं. यह कठिन मौसम बड़ी आपदों का संकेत हैं. इसमें सबसे बड़ा संकट कृषि पैदावार में कमी होने की शक्ल में दस्तक दे रहा है. बिहार जैसे कृषि आधारित समाज और अर्थव्यवस्था के लिए यह बात किसी आपदा से कम नहीं है. आइएमडी पटना के मुताबिक पिछले कुछ सालों से बिहार में हीट वेव में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है. यह हीट वेव के साथ बढ़ती गर्मी फसलों की परिपक्वता में बड़ी बाधा है. गर्मी की अधिकता के प्रभाव की वजह से 50 ग्राम प्रति किलो उत्पादन घट जाता है. दरअसल हीट वेव की वजह से पूरे मौसम की आद्रता कम हो जाती है. वहीं गर्म की वजह से मिट्टी के पोषक तत्व भी खत्म होते हैं. बिहार में बरसात के पहले दो माह जून और जुलाई के पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि मॉनसून के परंपरागत स्वभाव अब बदल गया है.

बिहार में सामान्य से 85 फीसदी कम हुई बारिश

इस साल जुलाई में पूरे प्रदेश में सामान्य से 85 फीसदी कम बारिश हुई है. जबकि जून में 100 प्रतिशत से अधिक थी. वर्ष 2021 में जून में सामान्य से 111 फीसदी अधिक बारिश हुई थी. जुलाई में 26 फीसदी कम बारिश हुई थी. वर्ष 2020 में जून में 82 फीसदी अधिक और जुलाई में केवल 27 फीसदी अधिक बरसात हुई थी. वर्ष 2019 में जून में सामान्य से 41 फीसदी कम और जुलाई में 20 प्रतिशत अधिक बरसात हुई. वर्ष 2018 में जून में सामान्य से 40 फीसदी और जुलाई में भी 15 फीसदी कम बारिश हुई थी. वर्ष 2017 में जून में 49 फीसदी कम और जुलाई में सामान्य से दस फीसदी कम बारिश हुई थी.

बारिश के दिनों में 36 फीसदी की कमी

बिहार में पिछले 20 सालों से बारिश के दिनों में लगातार आ रही कमी है. पटना में बारिश के दिनों की संख्या में 36 फीसदी की कमी आयी है. गया और भागलपुर में बारिश के दिनों में 24-25 प्रतिशत, मुजफ्फरपुर औरपूसा में 28 से 30 फीसदी बारिश वाले दिन कम हुए हैं. पूर्णिया और सुपौल में भी 17- 20 फीसदी बारिश वाले दिन घटे हैं. कुल मिला कर बारिश वाले दिनों की संख्यापूरे प्रदेश में घटी है.

मॉनसून असंतुलन गंभीर दौर में

आइएमडी पटना के क्षेत्रीय निदेशक विवेक सिन्हा ने बताया कि मॉनसून के असंतुलित होने से मौसम ज्यादा खराब हुआ है. पिछले कुछ सालों में ज्यादा असंतुलित हुआ है. इससे न केवल कृषि उत्पादन में कमी आयेगी, बल्कि बिहार अर्थव्यवस्था में पैसे का प्रवाह भी अनियमित और असंतुलित होगा. इससे बिहार के सांस्कृतिक ढांचे पर भी असर पड़ेगा. अत्याधिक गर्मी से अनाज उत्पादन में कमी की बात साबित हो चुकी है. उदाहरण के लिए मॉनसून की बारिश समय पर होती तो खरीफ की फसलें दीपावली या छठ महापर्व तक तक बाजार में आ जाती हैं. लोगों के पास पैसे आते हैं. वह पैसा बाजार में क्रय-विक्रय के जरिये प्रवाहित होता है.

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