बोधिवृक्ष की छांव तले हुई विश्व शांति की कामना, भिन्न -भिन्न देशों के ढाई हजार से ज्यादा भिक्षु हुए शामिल
बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी की ओर से रविवार को पवित्र बोधिवृक्ष की छांव तले भिक्षुओं के लिए महा कठिन चीवारदान समारोह का आयोजन किया गया था. इसमें आयोजन करने में किये जाने वाले व्यय थाईलैंड के कुछ उपासकों ने वहन किया था.
बोधगया. एक तरफ हर घर में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा था, तो दूसरी ओर महाबोधि मंदिर में विभिन्न देशों के बौद्ध भिक्षुओं की ओर से विश्व में शांति व भाईचारे की कामना की जा रही थी. बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी की ओर से रविवार को पवित्र बोधिवृक्ष की छांव तले भिक्षुओं के लिए महा कठिन चीवारदान समारोह का आयोजन किया गया था. इसमें आयोजन करने में किये जाने वाले व्यय थाईलैंड के कुछ उपासकों ने वहन किया था. रविवार की सुबह बोधगया स्थित विभिन्न देशों के बौद्ध मठों में प्रवास करने वाले बौद्ध भिक्षु महाबोधि मंदिर पहुंचे और सभी ने एक साथ विश्व शांति की कामना की.
भिक्षुओं को नकदी राशि भी भेंट की गयी
थोरोवाद व महायान पंथ के भिक्षुओं ने अपने-अपने तरीके से भगवान बुद्ध की प्रार्थना की व विश्व में शांति, करुणा, अहिंसा व भाईचारे की कामना की. थाई श्रद्धालुओं की ओर से भिक्षुओं को धारण करने वाले वस्त्र यानी चीवर दान किये गये व सभी को कालचक्र मैदान में भोजन यानी संघदान कराया गया. चीवारदान समारोह में शामिल करीब ढाई हजार भिक्षुओं को नकदी राशि भी भेंट की गयी, ताकि वे अपनी जरूरत की अन्य सामग्रियों की खरीदारी कर सकें. इस अवसर बीटीएमसी की सचिव डॉ महाश्वेता महारथी के साथ ही मंदिर के भिक्षु प्रभारी भिक्खु चालिंदा, केयर टेकर भिक्खु दीनानंद, भिक्खु मनोज सहित अन्य मौजूद रहे. चीवरदान समारोह आयोजित होने के बाद विभिन्न बौद्ध मठों में भी यह आयोजित होगा व उपासकों की ओर से भिक्षुओं को चीवर दान किये जायेंगे.
चीवरदान की परंपरा तथागत के समय से ही जारी
दरअसल, मान्यता के मुताबिक तथागत बुद्ध के वक्त बरसात के दिनों में भिक्षुओं को अपने जीवन यापन के लिए मांगें जाने वाले भिक्षा को लेकर गांवों में भ्रमण करने में परेशानी होती थी. नदी-नालों में पानी होने के कारण भिक्षुओं को परेशानी होती थी. इसके साथ ही अहिंसा धर्म को पालन करने में भी दिक्कत होती थी. मान्यता थी कि अगर बरसात के दिनों में भिक्षु पैदल भ्रमण करेंगे, तब उनके पैरों से दब कर कीट, पतंग आदि की मौत हो जाती थी.
भिक्षुओं की ओर से अहिंसा का पालन नहीं हो पाता
इस कारण भिक्षुओं की ओर से अहिंसा का पालन नहीं हो पाता था. इस कारण बरसात के दिनों में तीन महीने तक बौद्ध भिक्षु संबंधित बौद्ध मठों में प्रवास करते हुए साधना व पूजा आदि किया करते थे. इस दौरान श्रद्धालुओं को धर्म से संबंधित शिक्षा व ज्ञान भी भिक्षुओं द्वारा दिया जाता था. इसके बाद वर्षावास के समापन के बाद श्रद्धालुओं की ओर से भिक्षुओं को उनके धारण करने वाले वस्त्र धारण यानी चीवर के साथ दैनिक उपयोग की सामग्री भी दान किया करते थे. आज भी यह परंपरा जारी है व तीन महीने के वर्षावास के समापन के बाद श्रद्धालुओं की ओर से भिक्षुओं को चीवर व अन्य सामग्री दान किये जा जाते हैं.