पटना. देश की नयी संसद में पहले विधेयक के तौर पर मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया है. इसके बाद अब इस बात की जिज्ञासा बढ़ गयी है कि इस बिल के पास होने के बाद सदन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व में कितनी बढ़ोतरी होगी. इसके साथ ही यह जानने की जिज्ञासा भी होगी कि आखिर बिल पास होने के बाद जो बिहार की महिलाओं की हिस्सेदारी कितनी हो जायेगी.
बिहार में शहरी निकाय स्तर पर लागू है 50 प्रतिशत आरक्षण
स्थानीय निकाय में 50 प्रतिशत आरक्षण पानेवाली बिहार की महिलाओं के लिए अब लोकसभा और बिहार विधानसभा में भी एक तिहाई से अधिक सीटों पर हिस्सेदारी सुनिश्चित हो रही है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि लोकसभा और विधानसभा में बिहार की महिलाएं अभी कितनी संख्या में है और आरक्षण लागू होने के बाद इनकी संख्या न्यूनतम कितनी रह जायेगी.
लोकसभा में अभी है महज तीन महिला सांसद
वर्तमान परिसीमन के अनुसार बिहार में लोकसभा सीट की बात करें तो इसकी संख्या 40 है. वर्तमान लोकसभा में बिहार से मात्र 3 महिला सांसद है. ऐसे में अब यह बिल पेश होने के बाद से महिला के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 13 हो जाएगी. मतलब साफ़ है कि आरक्षण लागू होने के बाद किसी भी हाल में बिहार से महिला सांसद की संख्या 13 होगी. अगर सामान्य सीट से कोई महिला जीत दर्ज करेंगी तो यह संख्या बढ़ भी सकती है. इससे संसद में भी महिला की सहभागिता बढ़ेगी.
विधानसभा में कम से कम 80 महिलाओं का होगा कोटा
ऐसे ही वर्तमान परिसीमन में बिहार विधानसभा की बात करें तो कुल सीटों की संख्या 243 है. वर्तमान विधानसभा में सिर्फ 28 महिला विधायक हैं. यदि महिला आरक्षण बिल लागू होता है, तो यह संख्या 80 हो जाएगी. मतलब बिहार में भी महिला विधायक की संख्या कम से कम 80 होगी. इससे सदन के अंदर महिला से जुड़ी समस्या का सही तरीके उठाया जाएगा. हालांकि, यह अभी तय नहीं हुआ है कि महिला आरक्षण बिल रोटेशनल बेस पर होगा या नहीं. 180 लोकसभा सीट पर डूएल मेंबरशिप होगी या कोई अन्य व्यवस्था लागू की जायेगी. इनमें से एक तिहाई सीट एससी-एसटी के लिए रिजर्व होगी. 2027 के बाद परिसीमन होने के बाद इतनी ही सीट्स को बढ़ा कर महिलाओं के लिए रिजर्व कर दिया जाएगा.
तीन बार सदन में पहले भी पेश हो चुका है विधेयक
मोदी सरकार ने महिलाओं के लिए 33 फीसद सीटें आरक्षित करने का विधेयक लाया है उसे सबसे पहले 1996 में एचडी देवगौड़ा सरकार में पेश किया गया था. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2008 में इस कानून को फिर से पेश किया. यह कानून 2010 में राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका और 2014 में इसके विघटन के बाद यह खत्म हो गया.