World Glaucoma Week : 30 वर्ष के युवा भी अब आ रहे ग्लूकोमा की चपेट में, जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

कोरोना काल के दौरान ग्लूकोमा के करीब तीन प्रतिशत मरीज बढ़े हैं. इसके कारणों में वंशानुगत समस्या तो है ही, बिगड़ी जीवनशैली और स्टेराइड का अधिक सेवन या लंबे समय तक आंखों में स्टेराइड युक्त दवा डालना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 15, 2023 4:04 AM

आनंद तिवारी, पटना. आंखों की गंभीर बीमारी ग्लूकोमा (काला मोतिया) अब कम उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रही है. अभी तक यह बीमारी 55 साल के पार वाले लोगों को होती थी. लेकिन अब 30 से 35 साल के युवाओं को भी यह अपनी चपेट में ले रहा है. नेत्र रोग के ऑप्थेल्मोलॉजिकल एसोसिएशन व अलग-अलग अस्पतालों के डॉक्टरों की ओर से किये गये शोध में भी पता चला है कि ग्लूकोमा अब 35 वर्ष के युवाओं में भी नजर आ रहा है. यहां तक कि 40 की उम्र पार कर चुके हर पांच में से एक व्यक्ति को ग्लूकोमा का खतरा रहता है. इसे देखते हुए डॉक्टर हर साल ग्लूकोमा का टेस्ट कराने की सलाह देते हैं.

पटना में कोरोना काल के बाद और बढ़े मरीज

शहर में कोरोना काल के दौरान ग्लूकोमा के करीब तीन प्रतिशत मरीज बढ़े हैं. इसके कारणों में वंशानुगत समस्या तो है ही, बिगड़ी जीवनशैली और स्टेराइड का अधिक सेवन या लंबे समय तक आंखों में स्टेराइड युक्त दवा डालना है. समय पर इसकी जांच न करायी जाये, तो दृष्टिहीनता भी हो सकती है. लोगों को ग्लूकोमा के प्रति जागरूक करने के लिए इस साल 12 से 18 मार्च को भी विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है. शहर के आइजीआइएमएस, पीएमसीएच, पटना एम्स व एनएमसीएच अस्पताल में रोजाना करीब 50 मरीज इस बीमारी के आ रहे हैं.

दो तरह का होता है ग्लूकोमा

  • ओपेन एंगल ग्लूकोमा

यह धीरे-धीरे बढ़ता है और मरीजों को पता ही नहीं चलता. जब आंख के बढ़े प्रेशर से ऑप्टिक नर्व खराब हो जाती है तो उसे ओपेन एंगल ग्लूकोमा कहते हैं. यह काफी आम है. इसमें तरल पदार्थ को ड्रेन करने वाली कैनाल ब्लॉक हो जाती है, जिससे आंख का प्रेशर बढ़ जाता है. इसके होने से आंख की नजर धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है. समय रहते पता चल जाये, तो आंख की रोशनी बचायी जा सकती है.

  • एंगल क्लोजर ग्लूकोमा

यह कम खतरनाक होता है, इसका इलाज अस्पतालों में उपलब्ध है. इसमें मरीज को अचानक अटैक पड़ता है और नजर कमजोर हो जाती है. इसमें बहुत तेज दर्द होता है और मरीज सीधे डॉक्टर के पास पहुंचता है.

मायोपिया के मरीजों में ग्लूकोमा का बढ़ जाता है खतरा

मोबाइल, कंप्यूटर और टेलीविजन का शौक आंखों को बीमार बना रहा है. आंखों की बीमारी मायोपिया का खतरा भी बढ़ गया है. इसमें नजदीक की चीजें को देखने में परेशानी होती है. मायोपिया के मरीजों को ग्लूकोमा का खतरा दोगुना बढ़ जाता है.

यह है बीमारी के लक्षण

  • अचानक दृष्टि का धुंधला हो जाना

  • रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखना

  • आंखों में तेज दर्द का बने रहना

  • जी मिचलाना-उलटी महसूस होना

  • आंखों का अक्सर लाल रहना

Also Read: H3N2 Virus : पटना में सर्दी-जुकाम, बुखार के मरीजों की होगी रैपिड जांच, सैंपल को RMRI भेजने के निर्देश
हर साल आंखों के प्रेशर की जांच कराएं

आइजीआइएमएस के पूर्व निदेशक व नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ विभूति प्रसन्न सिन्हा ने बताया कि ग्लूकोमा से बचने के लिए साल में कम से कम एक बार आंखों के प्रेशर की जांच कराएं. इससे समय रहते ग्लूकोमा पर काबू पाया जा सकता है. ग्लूकोमा आनुवंशिक भी हो सकता है. ग्लूकोमा के इलाज में आंखों पर दबाव यानी इंट्राऑकुलर प्रेशर को कम किया जाता है. इसके लिए आइड्रॉप्स, दवाएं, लेजर इलाज या आवश्यकता पड़ने पर सर्जरी भी करनी पड़ सकती है.

Next Article

Exit mobile version