बिहार में है दुनिया का सबसे चमत्कारी मंदिर, जहां बलि देने पर नहीं निकलता बकरे का खून
World Most Miraculous Temple : बिहार के कैमूर में माता मुंडेश्वरी भवानी का मंदिर 1700 साल से भी ज्यादा पुराना है. यहां पर बलि देने की प्रथा पूरी तरह से अलग है.
World Most Miraculous Temple : यूं तो बिहार अपने आप में खास है. यहां की बोली, खान-पान, जीवन शैली हर चीज लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि विविधता से भरे बिहार में दुनिया का इकलौता ऐसा हिंदू मंदिर है जहां बलि देने पर भी बकरे का खून नहीं निकलता और वह पूरे तरह से स्वस्थ होता है. बता दें कि बिहार में एक जिला है कैमूर, जहां भगवानपुर प्रखंड के सरैयां गांव में पहाड़ी पर स्थित माता मुंडेश्वरी भवानी का मंदिर है जो कि 1700 साल से भी ज्यादा पुराना है. यहां पर बलि देने की प्रथा पूरी तरह से अलग है जिन्हें जानकर आप पूरी तरक आश्चर्यचकित रह जाएंगे. लेकिन उससे पहले जान लेते हैं मंदिर के बारे में जिसे भारत का सबसे पुराना मंदिर प्राप्त होने का भी खिताब प्राप्त है.
कैमूर में स्थित है माता मुंडेश्वरी भवानी का मंदिर
माता मुंडेश्वरी भवानी का मंदिर, बिहार के कैमूर ज़िले के भगवानपुर गांव में है. यह मंदिर, पर्वतश्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फ़ीट की ऊंचाई पर बना है. इसे उत्तरी भारत का सबसे पुराना हिंदू मंदिर माना जाता है. दावा किया जाता है कि यह मंदिर 1700 साल से भी ज्यादा पुराना है. इसे सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) ने 1915 से संरक्षित स्मारक घोषित किया है. इस मंदिर में, माता मुंडेश्वरी की प्राचीन मूर्ति है. वहीं, मंदिर के गर्भगृह में एक पंचमुखी शिवलिंग है. पुरातत्वविदों के अनुसार यहां से प्राप्त शिलालेख 389 ई0 के बीच का है जो इसके प्राचीनतम समय का एहसास कराता है.
बलि देने पर नहीं निकलता बकरे का खून
इसे आश्चर्य एवं श्रद्धा, जो चाहे जो कह लीजिए. भक्तों की कामना पूरी होने पर बकरे की बलि दी जाती है. लेकिन, माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है. जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है और पुजारी अक्षत (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं, तब बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है. थोड़ी देर बाद पुजारी मंत्र पढ़कर बकरे के उपर फूल व अक्षत मारते हैं तब लड़खड़ाते हुए बकरा गर्भ गृह से बाहर निकलने लगता है. इस पल को देखना हर कोई चाहता है, पर किसी-किसी को ही यह सौभाग्य प्राप्त हो पाता है. बकरे के अचेत होने पर ही मां द्वारा बली स्वीकार करने की बात मानी जाती है.
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क्या हैं मंदिर की कहानी ?
माघ पंचमी से पूर्णिमा तक इस पहाड़ी पर एक मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से भक्त आते हैं। कहते हैं कि चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था. अतएव यह मुंडेश्वरी माता के नाम से स्थानीय लोगों में जानी जाती हैं.
पहुंचना है बहुत आसान
कुछ दिनों में बहुत सारी छुट्टियां आने वाली है. ऐसे में अगर आप कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं तो कैमूर को अपने विश लिस्ट में जगह दे सकते हैं. यहां की प्राकृतिक खूबसूरती आपका मन मोहने के साथ ही एक गजब का सुकून देंगी. बिहार का ये जिला हवाई, रेल और सड़क तीनों ही तरह से वेल कनेक्टेड है. कैमूर का सबसे नजदीक एयरपोर्ट उत्तर प्रदेश का लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा है. वहीं, गया में मौजूद एयरपोर्ट भी यहां के नजदीकी एयरपोर्ट में से एक है. यहां उतरने के बाद आप रेल या कार से आसानी से कैमूर जा सकते हैं. वहीं, कैमूर के मोहनियां में मौजूद रेलवे स्टेशन भी देश के सभी प्रमुख स्टेशनों से जुड़ा हुआ है.
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