गया में पितृपक्ष के दौरान पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तथा तर्पण किया जाता है. पितृपक्ष इस साल 10 सितंबर 2022 दिन शनिवार से शुरू हो रहा है. वहीं, 25 सितंबर 2022 दिन रविवार तक रहेगा. पितृपक्ष 16 दिन तक रहता है. पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वज को तर्पण कर उन्हें याद करते हैं और उनके नाम पर उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं. धार्मिक मान्यतानुसार पूर्वज की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है. जो लोग अपने पितर की पूजन नहीं करते है. उनके पूर्वज को मृतलोक में जगह नहीं मिलती है. उनकी आत्मा भटकती रहती है. देव पितर का काम न्याय करना है. जब ये अपने परिवार पर न्याय नहीं करते है, वह परिवार विखंडित हो जाता है. यह मनुष्य तथा अन्य जीवों के कर्मों के अनुसार उनका न्याय करते है. भगवान कृष्ण ने कहा है की वह पितर में अर्यमा नमक पितर है. पितर की पूजा करने से भगवान विष्णु की पूजा होती है.
विष्णु पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी के पीठ से पितर उत्पन हुए है. पितर को उत्पन होने के बाद ब्रह्मा जी उस शारीर को त्याग दिए और पितर को जन्म देने वाला शरीर संध्या बन गया. इसलिए संध्या काल में पितर बहुत शक्तिशाली होते है. पितृपक्ष के दौरान गया में पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि गया में पिंडदान करने पर पूर्वज को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अवमस्या तक के सोलह दिनों के अवधि को कहते है. जिस तिथि को माता -पिता का देहांत होता है. उस तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है.
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गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. इस नदी के तट पर पिंडदान किया जाता है. गया में पिंडदान करने से माता, पिता के साथ कुल के सभी पीढ़िया तृप्त हो जाती है. शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितर के निर्मित जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है. उनका मनोरथ पूर्ण होता है. पितृपक्ष के अवधि में जो पूजन होता है पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म के लिए उसमें भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा की जाती है. भगवान विष्णु की पूजा से ही प्रेत से पितृ योनी में जाने की दरवाजा खुल जाता है साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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