Bihar News: बिहार की राजधानी पटना में स्थित जू में गैंगेटिक डॉल्फिन की ओरिजनल फोटो की प्रदर्शिनी लगेगी. संजय गांधी जैविक उद्यान या पटना जू में 50 वां स्थापना दिवस को लेकर कई सारे कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. पटना चिड़ियाघर को गंगा डॉल्फिन के लिए समन्वय चिड़ियाघर घोषित किया गया है. इसमें राजकीय जलीय जानवर के संरक्षण के बारे में संवेदनशील बनाना और शिक्षित करना प्रमुख है. इस बात को ध्यान में रखते हुए 17 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक गंगा डॉल्फिन जागरूकता और संवेदीकरण सप्ताह का आयोजन किया जायेगा. पहले दिन दो एक्सपर्ट इसमें शामिल होंगे. दूसरे दिन गंगा किनारे रहने वाले मछुआरे के बीच जागरूकता अभियान चलाया जाएगा और तीसरे दिन जू एम्बेसेडर की ओर से कृष्णा घाट से लेकर त्रिवेणी घाट तक डॉल्फिन सेंसस को तैयार करना और आखिरी दिन डॉल्फिन की प्रदर्शनी लगायी जायेगी.
जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साइंटिस्ट डॉ गोपाल शर्मा ने इस मामले में जानकारी दी है. उन्होंने बताया है कि उन्होंने गंगा डॉल्फिन पर पीएचडी किया है और लगातार इनके लिए कार्य कर रहे हैं. जू में आयोजित होने वाले गंगा डॉल्फिन फोटो प्रदर्शनी में उनके द्वारा खींची गयी 60 जीवंत तस्वीरों को शामिल किया गया है. इसमें डॉल्फिन के अलग-अलग निवास स्थान, अलग-अलग गतिविधि और उनके जीवन से जुड़े संकट को दर्शाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि यहां भाग लेने वाले प्रतिभागियों को नदियों और नदियों के इको सिस्टम के लिए गंगा डॉल्फिन क्यों जरूरी है इसके बारे में बताया जायेगा.
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उन्होंने बताया कि नदी किनारे रहने वाले मछुआरों और किसानों के बीच जागरूकता को लेकर ट्रेनिंग दी जायेगी. अगर कभी डॉल्फिन जाल में फंस जाती है तो उन्हें कैसे बचा सकते हैं, कैसे गंगा डॉल्फिन का सर्वे करना है, इन्हें बचाने के लिए कहां से कैसे मदद मिलेगी इन बातों को विस्तार से बताया जायेगा. 90 के दशक में जब वे डॉल्फिन पर काम कर रहे थे तो हर हफ्ते डॉल्फिन के मारे जाने की खबर मिलती थी. उस वक्त उन्होंने विभिन्न घाटो के पास रहने वाले लोगों को बीच जागरूकता अभियान चलाया जिसमें वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के बारे में बताया गया. आज लोगों में जागरूकता बढ़ी है.
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वहीं, बता दें कि बिहार की पांच नदियों गंगा, कोसी, सोन, महानंदा और गंडक में डॉल्फिन की गिनती की जा रही है. केंद्र सरकार की पहल से नमामि गंगे परियोजना के तहत डॉल्फिन की गिनती की जा रही है. इसका मकसद है कि गिनती कर डॉल्फिन पर आए खतरों की पहचान की जा सके. नदियों में डॉल्फिन को पाये जाने की संख्या के आधार पर संबंधित नदी की स्वच्छता भी तय होती है. इससे नदी का फूड चेन भी संतुलित रहता है. डॉल्फिन की उपयोगिता और संरक्षण के बारे में जागरूक होना जरुरी है. इसके लेकर लोगों में जागरुकता भी बढ़ी है.
बिहार सरकार के प्रयास से ही पांच अक्टूबर, 2009 को केंद्र सरकार ने गांगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था. मालूम हो कि राज्य में साल 1990 से डॉल्फिन का संरक्षण किया जा रहा है. बता दें कि कई बार डॉल्फिन गंगा की लहरों के बीच देखी जाती है. बाढ़ के समय गंगा की लहरों पर डॉल्फिन अठखेलियां करती नजर आती है. बाढ़ के समय यह काफी संख्या में दिखायी देती हैं. भागलपुर के माणिक सरकार घाट व अन्य घाटों से बड़े और बच्चे बाढ़ के समय गांगेय डॉल्फिन को देखते हैं. शाम में यहां लोगों की काफी भीड़ रहती है. डॉल्फिन के प्रजनन में वृद्धि को पर्यावरण के लिए शुभ संकेत माना जाता है.
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पटना चिड़ियाघर का 50वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. इसे लेकर तीन महीने तक वन्यजीवों से जुड़े कई कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. अलग-अलग जीवों के संरक्षण को लेकर सेमिनार का आयोजन किया जाएगा. इसी कड़ी में 17 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक गंगा डॉल्फिन जागरूकता और संवेदीकरण सप्ताह का आयोजन हो रहा है. 29 जुलाई को असम जू से लाए काले तेंदुए को जनता के लिए छोड़ा गया था. पांच से सात अगस्त तक नेशनल बायलाजी कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया. अब डॉल्फिन सप्ताह मनाया जाएगा.
रिपोर्ट: जूही स्मिता