राजीव पांडेय, रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स समेत अधिकांश ब्लड बैंकों में खून की किल्लत हो गयी है. ब्लड बैंकों में 50 फीसदी तक खून का स्टॉक कम हो गया है. रिम्स में फिलहाल 50 से 58 यूनिट ही खून उपलब्ध है. जबकि, यहां रोजाना 100 से 150 यूनिट खून की जरूरत होती है. सात मई को ब्लड बैंक में 24 यूनिट और छह मई को 50 यूनिट ही खून बचा था. हालांकि, बुधवार को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि में रक्तदान शिविर लगाया गया था, जहां से 82 यूनिट खून मिला है.
इधर, रांची सदर अस्पताल के ब्लड बैंक में भी 45 फीसदी तक खून का स्टॉक कम हो गया है. इस कारण कई ग्रुप का खून लोगों को नहीं मिल पा रहा है. निगेटिव ग्रुप का ब्लड एक या दो यूनिट ही स्टॉक में है. यहां 250-300 यूनिट खून हमेशा स्टॉक में रहता था. फिलहाल यहां 130-140 यूनिट खून ही स्टॉक में है.
रिम्स ब्लड बैंक के समक्ष फ्री ब्लड देने की चुनौती
रिम्स ब्लड बैंक के समक्ष मुफ्त में खून देने की चुनौती है. प्रतिदिन 15 से 20 यूनिट खून थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया और वैसे मरीज जिनके पास डोनर नहीं है, उन्हें देना पड़ता है. डॉक्टर द्वारा खून की जरूरत बताते हुए उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जाता है. यानी रिम्स को हर माह 500-600 यूनिट खून नि:शुल्क देना पड़ता है.
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मुश्किल में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे, करनी पड़ रही पैरवी
सदर अस्पताल के ब्लड बैंक में खून की कमी के कारण यहां इलाज कराने आये थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की परेशानी बढ़ गयी है. जरूरत के समय खून की उपलब्धता नहीं होने से परिजनों को रिम्स जाना पड़ रहा है. वहां भी खून की उपलब्धता कम होने से निजी अस्पताल जाना पड़ रहा है या फिर खून आने का इंतजार करना पड़ रहा है. परिजनों को खून के लिए पैरवी भी करनी पड़ रही है.
डोनर कार्ड नहीं मिलने से उत्साह हुआ कम
रक्तदान शिविर में खून देनेवालों की संख्या इसलिए भी कम हुई है, क्योंकि रक्तदान के बाद डोनर कार्ड नहीं दिया जाता है. लोगों को यह लगता है कि जब उन्हें जरूरत पड़ेगी, तब डोनर कार्ड नहीं होने से खून नहीं मिलेगा. ऐसे में रक्तदान करने से क्या फायदा है? वहीं, सरकार का कहना है कि दान दी गयी वस्तु या सामान वापस नहीं मांगे जाते हैं. इसलिए दान किये गये खून को भी नहीं मांगा जाना चाहिए.