Holi Special Story : होली के पहले छत्तीसगढ़ के इस इलाके में शिकार करने की परंपरा
Holi Special Story : छत्तीसगढ़ के जशपुर में होली को लेकर कई परंपरा चली आ रही है. यहां होली के अवसर पर अंडे और मुर्गे की बली दी जाती है. होली के पहले शिकार करने की भी परंपरा है.

Holi Special Story : होली रंगों का ही नहीं परंपरा और रीति-रिवाजों का भी त्योहार है. कई परंपरा ऐसी है जो लोगों को बंधन में बांध देती है, जबकि कई परंपरा लोगों की सुरक्षा को लेकर होतीं हैं. छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में भी कुछ मान्यताएं हैं जिसे लोग मानते आ रहे हैं. यहां सगाई के बाद शादी का इंतजार कर रहे युवक, युवतियों के लिये होलिका दहन में शामिल होने पर प्रतिबंध होता है. आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही परंपराओं के बारे में…
दुर्घटना से बचने के लिए है ये परंपरा
जशपुर जिले में त्योहार को लेकर कई मान्यतायें हैं. यहां जिले के ऊपरी क्षेत्र में जनजातिय समुदाय सहित पुरखों के समय से रह रहे निवासियों में एक खास परंपरा चली आ रही है. इसके अनुसार, जिस युवक, युवती की शादी तय हो जाती है, वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में नहीं जा सकते हैं. बुजुर्गों का मानना है कि होली में किसी प्रकार की शारीरिक क्षति व दुर्घटनाओं से बचने के लिए यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. यहां इस परंपरा का पालन वर्षो से कड़ाई के साथ होता आ रहा है.
गर्भवती महिला के लिए नियम
कुछ मान्यताएं गर्भवती महिला और गर्भवती महिला के पति के लिये भी है. मान्यता है कि गर्भवती महिला होलिका दहन के सिर्फ लौ को ही देख सकती है. लौ देखने के बाद होलिकादहन स्थल की ओर चावल फेंकने का यहां रिवाज है.
अंडे की बलि और छद्म शिकार
जशपुर जिले के जनजातिय समाज के लोग होली के अवसर पर अंडे और मुर्गे की बली चढाते हैं. ऐसा सोचना थोड़ा अटपटा है, लेकिन यह भी परंपरा का एक हिस्सा है. होली के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना के साथ यहां अंडे और मुर्गे की बली दी जाती है. वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले समाज के लोग होलिका दहन के दो दिन पहले से जंगल की ओर शिकार के लिए निकलते हैं. इस परंपरा के पीछे इनका मानना है कि वे रामायण में सीता के अपहरण के लिए मृग बनकर आए राक्षस मारीच रूपी बुराई का वे अंत करने निकलते हैं.