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बिहार में अपनी पारंपरिक सीटों से भी बेदखल हो गयी कांग्रेस, जानें कन्हैया के साथ क्या हुआ खेला

बिहार में कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है. नेता का कहना है कि सहयोगी उसे बेहतर सीट नहीं दे रहे हैं. आरोप है कि कांग्रेस के भाग्यविधाता बिहार में लालू प्रसाद हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पर भी कई तरह के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में इस बार के लोग सभा चुनाव में पार्टी को उन सीटों से भी बेदखल कर दिया गया है जो उनकी परंपरागत सीटें रही है.

पटना. जीवन के पहले चुनाव में दो लाख 69 हजार से अधिक वोट पाकर दूसरे नंबर पर आने वाले जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार के लिए इस बार कांग्रेस एक अदद सीट तलाश नहीं कर पायी. राहुल गांधी की पदयात्रा में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. इसके बावजूद बेगूसराय से एनएसयूआइ के प्रभारी कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने का चैप्टर क्लोज हो गया है. सीट बंटवारे के मामले में कांग्रेस मूकदर्शक बनी हुई है, जबकि घटक दल राजद और सीपीआइ अपने प्रत्याशियों को या तो टिकट बांट रहे हैं या उनके नाम की घोषणा कर रहे हैं.

कन्हैया की वकालत नहीं कर पायी पार्टी

छात्रसंघ की राजनीति के बाद कन्हैया ने सीपीआइ के जरिये बड़े स्तर पर अपनी राजनीति शुरू की. पार्टी ने उन्हें 2019 के आम चुनाव में बड़े नेताओं को दरकिनार कर बेगूसराय लोकसभा सीट से भाजपा के दिग्गज गिरिराज सिंह के खिलाफ उम्मीदवार भी बनाया. यहां से राजद के तनवीर हसन उम्मीदवार थे. एक लाख 98 हजार वोट लाकर तनवीर हसन तीसरे स्थान पर रहे. इस बार के चुनाव में महागठबंधन में बेगूसराय की सीट सीपीआइ को मिली है. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस बेगूसराय की सीट पर कन्हैया की दावेदारी की जोरदार वकालत नहीं कर पायी.

पार्टी के भीतर भी कन्हैया को लेकर मतभेद

पार्टी के भीतर भी कन्हैया कुमार के बढ़ते कद को लेकर गुटबाजी शुरू हो गयी थी. कांग्रेस के कई नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं- पूरी पार्टी लालू प्रसाद के हवाले है. कांग्रेस की सीट और उम्मीदवार भी उनकी सहमति से ही तय हो रहे हैं. लिहाजा, इस चुनाव में कांग्रेस को जो भी सीटें मिलेंगी, वे राजद प्रमुख लालू प्रसाद की सहमति से ही होगी. भाकपा के महासचिव डी राजा ने गुरुवार को राजद प्रमुख लालू प्रसाद से मिलने के बाद शुक्रवार को बेगूसराय सीट के प्रत्याशी की घोषणा कर दी. पिछले लोकसभा चुनाव में बेगूसराय की सीट कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने से सुर्खियों में थी.

अखिलेश सिंह को जानकारी नहीं

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह को महागठबंधन के घटक दलों की ओर से टिकट बांटे जाने की कोई जानकारी नहीं है. कन्हैया अकेले ऐसे कांग्रेसी नेता नहीं है जिनकी सीट सहयोगी दलों ने झटक ली है. महागठबंधन के अंदर कांग्रेस की स्थिति ”बेचारा” जैसी बनती जा रही है. औरंगाबाद के बाद बेगूसराय इसका उदाहरण बन गया है. अगली कड़ी में कटिहार की सीट मानी जा रही है जो कांग्रेस सेफिसलनेवाली है.

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कांग्रेस में शामिल होने के बाद बिहार में कम दिखे कन्हैया

कांग्रेस में शामिल होने के बाद बिहार में कन्हैया कुमार की उपस्थिति कम रही है. बिहार में उभरते युवा नेताओं में राजद में तेजस्वी प्रसाद यादव, लोजपा (रा) के चिराग पासवान, कांग्रेस के कन्हैया कुमार, जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर का नाम लिया जा रहा है. बिहार में कांग्रेस कन्हैया कुमार का चुनाव में इस्तेमाल क्यों नहीं करना चाहती है, पार्टी के पास इसका कोई जवाब नहीं है. कन्हैया के लिए सीट क्यों नहीं निकल पा रही? इस सवाल पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर ने खुलकर कुछ नहीं कहा. पर इतना कहा कि हमलोग कोशिश कर रहे हैं कि इंडिया गठबंधन इंटैक्ट रहे.

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