गैंगस्टर विकास दुबे का 34 वर्ष का आतंक खत्म, राजनीतिक सरपरस्ती ने ही बनाया था बड़ा गुंडा
कानपुर एनकाउंटर के साथ ही दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की कहानी खत्म हो गयी. उज्जैन में गुरुवार जिस नटकीयता से वह गिरफ्तार हुआ, उसी नाटकीयता के साथ शुक्रवार को वह मार गिराया गया
कानपुर एनकाउंटर के साथ ही दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की कहानी खत्म हो गयी. उज्जैन में गुरुवार जिस नटकीयता से वह गिरफ्तार हुआ, उसी नाटकीयता के साथ शुक्रवार को वह मार गिराया गया. उसकी मौत के साथ ही 34 साल से चला आ रहा उसके अपराध का सिलसिला खत्म हो गया. विकास दुबे शुरू से ही आपराधिक मानसिकता का रहा था. 1984 में वह हाईस्कूल में पढ़ने के दौरान बंदूक लेकर जाता था.
प्रिंसिपल व क्लास टीचर तक उससे भय खाते थे. एकबार किसी टीचर ने उसकी पिटाई कर दी, तो रास्ते में घेर कर उसने उन पर हमला कर दिया था. इसके बाद वह दुर्दांत अपराधी बन गया, मगर अंत ऐसा हुआ कि मां-बाप ने भी उसकी लाश लेने से मना कर दिया. उसकी मौत पर गांव के लोगों ने जश्न मनाया, मिठाइयां बांटी और खुद को सालों बाद आजाद बताया.
1990 में पहला केस दर्ज, साल 2000 में किया पहला मर्डर
विकास दुबे का अपराध करने का सिलसिला वर्ष 1990 से शुरू हुआ था. तब उसके पिता के साथ किसी का मामूली विवाद हो गया था. तब बदला लेने के लिए उसने नवादा गांव के किसानों को पीटा था. तब उसके खिलाफ शिवली थाने में पहला मामला दर्ज हुआ था. उस वक्त पूर्व विधायक नेकचंद्र पांडेय ने विकास को संरक्षण दिया था.
विकास क्षेत्र में दबंगई के साथ मारपीट करता रहा, थाने पहुंचते ही नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते थे. कुछ दिनों बाद तो पुलिस ने भी विकास पर नजर टेढ़ी करनी छोड़ दी थी. वर्ष 2000 में विकास ने इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडे को गोली मारकर पहला मर्डर किया था. 2001 में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला को शिवली थाने के भीतर गोली मारकर मौत के घाट उतार कर विकास ने क्षेत्र में अपनी दहशत फैलायी.
पत्नी ऋचा ने शव लेने से किया इंकार, बहनोई ने रिसीव की लाश
इससे पहले, पोस्टमार्टम के बाद विकास दुबे की पत्नी ऋचा ने उसका शव लेने से इंकार कर दिया. इसके बाद विकास के बहनोई दिनेश तिवारी पोस्टमार्टम हाउस से विकास का शव लेने के लिए पहुंचे. हालांकि बाद में पत्नी भी बेटे के साथ शवदाह गृह पहुंची.
स्कूल से ही थी आपराधिक मानसिकता, क्लास में लेकर जाता था बंदूक
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1990 में मामूली बात पर किसान को पीट कर आया था सुर्खियों में
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साल 2000 में किया पहला मर्डर, इंटर कॉलेज के प्रबंधक को मारी गोली
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साल 2001 में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की थाने के अंदर की थी हत्या
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अलग-अलग थानों में 60 केस दर्ज, राजनीतिक दबाव से छूटता रहा
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शुरू से ही था बिगड़ैल, इलाके में फैला रखा था आतंक, मौत पर लोगों ने जतायी खुशी
शहीद पुलिसकर्मियों के परिजन खुश, कहा- अब मिली आत्मा को शांति
विकास दुबे के मारे जाने की खबर मिलते ही शहीद पुलिसकर्मियों के परिवारों ने पुलिस की कार्रवाई पर संतोष जाहिर किया. कहा कि उन्हें यह भरोसा था कि यही होना है. दिवंगत सिपाही राहुल के पिता ने कहा कि, जो भी हुआ वह अच्छा हुआ. आज शांति मिली है. एसआइ अनूप सिंह के पिता ने कहा कि अब शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि मिली है. शूटआउट में घायल सिपाही अजय कश्यप ने विकास दुबे के एनकाउंटर पर खुशी जाहिर की है.
शहीद जितेंद्र पाल के परिजनों ने इस एनकाउंटर के लिए योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश पुलिस को धन्यवाद दिया. शहीद सिपाही बबलू कुमार के भाई दिनेश कुमार ने विकास दुबे के एनकाउंटर पर खुशी जाहिर की है. लेकिन उन्होंने एनकाउंटर पर सवाल भी उठाये हैं. उन्होंने कहा कि सरकार असली गुनहगार को बचा रही है. कहा कि पूरी घटना की सीबीआइ जांच होनी चाहिए.
मानवाधिकार आयोग ने 2017-18 में हुए सभी एनकाउंटर पर यूपी सरकार को भेजे नोटिस
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2017-18 में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कथित मुठभेड़ में हत्याओं के कई मामलों को लेकर राज्य सरकार को नोटिस भेजे थे. लेकिन किसी का अबतक जवाब नहीं दिया गया है. सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए एनएचआरसी के दिशानिर्देशों के अनुसार हिरासत में मौत के मामलों में आयोग को 24 घंटे के अंदर सूचित किया जाना चाहिए .
2001 में थी एनकाउंटर की तैयारी, बच गया था तब
2001 में विकास दुबे ने कानपुर में राज्यमंत्री संतोष शुक्ला का मर्डर कर दिया था. सरेआम थाने में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री की हत्या के बाद कानपुर से लेकर डीजीपी ऑफिस तक हड़कंप मच गया था. इसके बाद पुलिस ने विकास के एनकाउंटर की तैयारी कर ली थी, लेकिन सियासी संरक्षण के चलते वह बच निकला था. इसी के बाद विकास के हौसले बुलंद हो गये. उसे ग्रामीणों का साथ मिलना भी शुरू हो गया था. इसके साथ ही वह राजनीति में भी अपने पैर पसारना शुरू कर चुका था.
लोगों के लिए सेल्फी प्वाइंट बना कथित मुठभेड़ स्थल
कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोपी दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की शुक्रवार को कथित मुठभेड़ में मौत के बाद यह घटनास्थल लोगों के लिए सेल्फी प्वाइंट बन गया है. वारदात के बाद वह घटनास्थल लोगों के कौतूहल का विषय बन गया है. उधर से गुजरने वाला हर शख्स यह जानने के लिए उत्सुक है कि किस जगह पर मुठभेड़ हुई और यह अंदाजा लगाने की कोशिश में है कि दुबे को कैसे मारा गया होगा.
यह कहना गलत नहीं होगा कि वह घटनास्थल सेल्फी प्वाइंट बन गया है. गुजरने वाला हर व्यक्ति मौका-ए-वारदात की तस्वीर को अपने मोबाइल फोन में कैद करने की कोशिश में लगा था. लोगों की भीड़ की वजह से भौती इलाके में उस जगह पर जाम की स्थिति बन रही है.
कैदी को हथकड़ी लगाने या न लगाने पर एकबार छिड़ी बहस
विकास दुबे की मौत के बाद अपराधियों को हथकड़ी लगाने या न लगाये जाने को लेकर बहस छिड़ गयी है. एक तरफ सवाल है कि पुलिस ने दुबे जैसे बदमाश को हथकड़ी क्यों नहीं लगा रखी थी, तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के वे निर्देश हैं, जिनमें वह हथकड़ी लगाये जाने को अमानवीय, अनावश्यक तथा कठोर और मनमाना तरीका करार दे चुका है.
पुलिस कई न्यायिक मंचों पर यह कहते हुए हथकड़ी लगाये जाने का समर्थन करती आयी है कि इससे यह सुनिश्चित करने मदद मिलती है कि खूंखार आरोपी या दोषी गिरफ्त से भाग न पाये. शीर्ष अदालत समय-समय पर विचाराधीन व्यक्ति को हथकड़ी लगाए जाने की प्रक्रिया को लेकर दिशा-निर्देश जारी करती रही है.
एसटीएफ आइजी अमिताभ यश जाने जाते हैं डकैतों के खात्मे के लिए
कुख्यात अपराधी विकास दुबे मामले को आइपीएस अधिकारी आइजी अमिताभ यश देख रहे थे. उनकी पहचान बुंदेलखंड के बीहड़ों में डकैतों के अंत के लिए रही है. वर्तमान में एसटीएफ के आइजी अमिताभ यश एसटीएफ के मुखिया हैं और उनकी ही टीम उज्जैन से विकास को कानपुर लेकर आ रही थी.
वास्तविकताओं में खूब बची है यह फिल्म की पटकथा : कुमार विश्वास
देश के चर्चित कवि कुमार विश्वास ने खुशी जताते हुए ट्वीट कर कहा कि फिल्मी-पटकथाओं में तो वास्तविकता बची नहीं है पर वास्तविकताओं में खूब फिल्मी पटकथा बची है. गिरफ्तारी पर विश्वास ने ट्वीट कर कहा था कि विकास राजनीति, अफसरशाही व सत्ता के कलंकित घालमेल का अनवरत उत्पाद है.
भाजपा के ठोक दो राज में अदालत की जरूरत नहीं : जयंत चौधरी
राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी ने मुठभेड़ में विकास दुबे की मौत को लेकर कहा कि विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद देश के सारे न्यायधीशों को इस्तीफा दे देना चाहिए. भाजपा के ठोक दो राज में अदालतों की जरूरत ही नहीं है. उन्होंने कहा कि विकास के मारे जाने के साथ ही उसके आका बचा लिये गये.
महाकाल में ही सरेंडर क्यों, किसके भरोसे यहां आया था : दिग्विजय
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि यह पता लगाना आवश्यक है विकास दुबे ने मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर को आत्मसमर्पण के लिए क्यों चुना? मध्यप्रदेश के कौन से प्रभावशाली व्यक्ति के भरोसे वह यहां उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटर से बचने आया था?
शिवसेना ने किया मारे जाने का समर्थन, कहा- सवाल उठाना गलत
विकास दुबे के एनकाउंटर का शिवसेना ने समर्थन किया है. शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा यूपी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल न उठाये जायें. जिन गुंडों ने पुलिस की हत्या की उसपर सवाल उठना चाहिए, पुलिस पर नहीं. राउत ने कहा कि विकास दुबे का एनकाउंटर लॉ एंड आर्डर का सवाल था.
एनकाउंटर के बाद ट्रोल हुए आनंद महिंद्रा, टीयूवी300 का उड़ा मजाक
एनकाउंटर के बाद ट्विटर पर लोगों ने महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा को ट्रोल करना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया यूजर महिंद्रा से पूछ रहे हैं कि आपकी यह वाहन कैसी है कि खुले व चौड़े सड़कों पर भी पलट जाती है. एक यूजर ने उन्हें इस वाहन में कभी सफर न करने की भी सलाह दे डाली.
इन एनकाउंटर्स भी पर उठे थे सवाल
2004 इशरतजहां एनकाउंटर : साल 2004 में हुए एनकाउंटर में गुजरात पुलिस ने इशरत जहां और उसके दोस्त प्रनेश पिल्लई उर्फ जावेद शेख और दो पाकिस्तानी नागरिकों अमजदाली राना और जीशान जोहर को आतंकी बताते हुए ढेर कर दिया था.
2005 सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर : 2005 में अहमदाबाद और गुजरात पुलिस ने संयुक्त ऑपरेशन में सोहराबुद्दीन शेख का एनकाउंटर किया. उसके बाद उसके साथी तुलसी प्रजापति का भी एनकाउंटर हुआ. शेख पर 2003 में गुजरात के गृह मंत्री की हत्या का आरोप था.
2008 बाटला हाउस एनकाउंटर : 19 सितंबर, 2008 में दिल्ली के बाटला हाउस में पुलिस के एनकाउंटर को लेकर भी सवाल उठे थे. पुलिस को सूचना मिली थी कि दिल्ली सीरियल ब्लास्ट में शामिल पांच आतंकी बटला हाउस के एक मकान में मौजूद हैं.
2015 आंध्र प्रदेश स्मगलर एनकाउंटर : सात अप्रैल, 2015 को आंध्र प्रदेश की पुलिस ने राज्य के चित्तूर जंगल में 20 कथित चंदन तस्करों को गोली मार दी थी. पुलिस का कहना था कि पुलिसकर्मियों पर हंसियों, छड़ों, कुल्हाड़ियों से हमला किया गया और बार बार चेतावनी देने के बावजूद हमले जारी रहे.
2016 मप्र में 8 सिमी आतंकियों का एनकाउंटर : 2016 में भोपाल की सेंट्रल जेल से 30-31 अक्टूबर की रात भागे आठ सिमी आतंकियों को पहाड़ी पर घेरकर पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया था. आतंकियों ने जेल से भागते वक्त एक कॉन्स्टेबल का मर्डर भी किया था. इसके बाद चादर की रस्सी के सहारे फरार हो गये थे.
2019 हैदराबाद एनकाउंटर : बीते वर्ष छह दिसंबर को हैदराबाद में वेटनरी डॉक्टर के गैंगरेप और मर्डर के चारों आरोपियों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया. हैदराबाद पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार ने एनकाउंटर की पुष्टि करते हुए बताया था कि ये घटना मौका-ए-वारदात पर क्राइम सीन दोहराने के क्रम में हुई. इस मुठभेड़ के बाद देश में कई जगह जश्न मनाया गया था.हालांकि कई सवाल भी उठे थे.
Post by : Pritish Sahay