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दिल्ली HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द, कहा- ‘युवक को तुरंत हिरासत में लिया जाए’, जानें मामला

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और आरोपी को तुरंत हिरासत में लेने का आदेश दिया. गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों का जिसमें एक व्यक्ति पर आरोप है कि वह कथित तौर पर हथियारों के प्रशिक्षण के लिए सीमा पार कर पाकिस्तान जाने की योजना बना रहा था.

By Aditya kumar | January 5, 2024 10:05 AM
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Supreme Court : बीते दिन गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और आरोपी को तुरंत हिरासत में लेने का आदेश दिया है. मामला है, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों का जिसमें एक व्यक्ति पर आरोप है कि वह कथित तौर पर हथियारों के प्रशिक्षण के लिए सीमा पार कर पाकिस्तान जाने की योजना बना रहा था. दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे डिफॉल्ट जमानत दे दी थी जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है और फैसले को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों को अदालत के द्वारा हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि आरोपी कथित तौर पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल था और ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का है.

क्यों दी गई थी जमानत?

जानकारी हो कि आरोपी पर भारतीय दंड संहिता, यूएपीए और शस्त्र अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं. जांच पूरी करने में देरी के आधार पर उसे दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से डिफ़ॉल्ट जमानत दे दी गई थी. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर रही जजों की पीठ ने कहा, “एक और पहलू पर विचार किया जाना चाहिए कि अपराध का नेचर कैसा है. यह ऐसी अपराध की प्रकृति है जिसमें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव बल्कि अन्य दुश्मन राज्यों पर भी प्रभाव डालेगा. साथ ही उन्होंने कहा कि यह मामला आतंकवादी गतिविधियां से जुड़ा हुआ है इसलिए जमानत पर रखना सही नहीं है.

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इस केस का दिया उदाहरण

जजों की पीठ ने एक पुराने केस की जानकारी देते हुए कहा कि महाराष्ट्र राज्य बनाम सुरेंद्र पुंडलिक गाडलिंग और अन्य के मामले में इस अदालत द्वारा धारा 43 डी (2) (बी) के प्रावधानों पर विचार किया गया था. उक्त मामले में, FSL रिपोर्ट का इंतजार किया गया था और इसमें वित्तीय रूप से कमजोर आरोपियों की हिरासत की भी आवश्यकता थी. कई शहरों में फैली बड़ी साजिश के मद्देनजर प्रतिवादी के विवरण का अभी भी पता लगाया जा रहा है. उच्च न्यायालय यूएपीए से संबंधित 2019 के उपरोक्त फैसले पर विचार करने में विफल रहा. साथ ही पीठ ने यह भी बताया कि इसने 1994 के एक फैसले पर भरोसा किया था टाडा के प्रावधानों के लिए.

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