सरायकेला में श्रद्धा के साथ निकली दोल यात्रा, भक्तों के साथ राधा-कृष्ण ने खेली होली, उत्कल परंपरा की दिखी झलक
झारखंड की धार्मिक नगरी सरायकेला में श्रद्धा व भक्ति के साथ दोल यात्रा निकली. भक्तों के साथ राधा-कृष्ण ने होली खेली. इस दौरान उत्कल की प्राचीन एवं समृद्ध परंपरा की झलक दिखी.
सरायकेला, शचिंद्र कुमार दाश: पवित्र दोल पूर्णिमा के मौके पर धार्मिक नगरी सरायकेला में आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली द्वारा राधा-कृष्ण की दोल यात्रा निकाली गयी. कार्यक्रम के आयोजक ज्योतिलाल साहू की अगुवाई में निकाली गयी दोल यात्रा में वर्षों से चली आ रही उत्कल की प्राचीन एवं समृद्ध परंपरा की झलक दिखायी दी. यहां भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रेयसी राधा के साथ सरायकेला के हर घर में दस्तक देकर भक्तों के साथ रंग और गुलाल खेले. भक्तों ने राधा-कृष्ण के साथ गुलाल लगा कर होली खेली. भक्त और भगवान के इस मिलन को देखने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचे हुए थे. आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली के संस्थापक ज्योतिलाल साहू की अगुवाई में दोल यात्रा का आयोजन किया गया. दोल यात्रा में स्थानीय सांसद गीता कोडा भी शामिल हुई.
विशेष विमान पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकले राधा-कृष्ण
राधा-कृष्ण की कांस्य प्रतिमा को कंसारी टोला स्थित मृत्युंजय खास मंदिर के समिप लाया गया. यहां विधि पूर्वक पूजा-अर्चना कर माखन-मिसरी का भोग अर्पण किया गया. साथ ही श्री कृष्ण एवं राधा रानी का भव्य शृंगार किया गया. इसके बाद राधा-कृष्ण विशेष विमान (पालकी) पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले.
पारंपरिक शंख ध्वनि और उलुध्वनि से हुआ कान्हा का स्वागत
दोल यात्रा के दौरान सरायकेला में जगह-जगह राधा-कृष्ण का स्वागत पारंपरिक शंख ध्वनि एवं उलुध्वनि से किया गया. पालकी यात्रा में भक्त पारंपरिक वाद्य यंत्र मृदंग, झंजाल के साथ दोलो यात्रा में शामिल होकर नृत्य एवं कीर्तन करते नजर आये. राधा-कृष्ण के स्वागत के लिए श्रद्धालु अपने घर के सामने गोबर लेपने के साथ-साथ रंग-बिरंगी अल्पना भी बनाये गये थे. इस दौरान पारंपरिक घोडा नाच आकर्षण का केंद्र बना रहा.
प्रभु श्रीकृष्ण के द्वादश यात्राओं में प्रमुख है दोल यात्रा, यह है दुर्लभ यात्रा
दोल यात्रा नामक इस धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन हर वर्ष आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली द्वारा किया जाता है. आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली के संस्थापक ज्योतिलाल साहू ने बताया कि जगत के पालनहार श्रीकृष्ण के द्वादश यात्राओं में से एक है दोल यात्रा. क्षेत्र में प्रचलित इस श्लोक ‘‘दोले तु दोल गोविंदम, चापे तु मधुसुदनम, रथे तु मामन दृष्टा, पुर्नजन्म न विद्यते…’’ के अनुसार दोल (झुला या पालकी), रथ और नौका में भू के दर्शन के मनुष्य को जन्म चक्र से मुक्ति मिलती है. होली में आयोजित होनेवाली इस यात्रा को दुर्लभ यात्रा माना जाता है. दोल यात्रा एकमात्र ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है, जब प्रभु अपने भक्त के साथ गुलाल खेलने के लिए उसकी चौखट पर पहुंचते हैं.