चुनाव विश्लेषक संजय कुमार बोले- परसेप्शन और नरेटिव से चुनाव परिणाम नहीं आंके जा सकते हैं
चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने कहा कि हमें केवल परसेप्शन और नरेटिव पर चुनाव परिणाम नहीं आंकना चाहिए. उन्होंने कहा कि परसेप्शन और गॉसिप में बहुत अंतर नहीं होता है.
संजय कुमार देश के जाने-माने चुनाव विश्लेषक हैं. लोकनीति (सीएसडीएस) देश के चुनावी तापमान, जमीनी स्तर की राजनीति को समझने-परखने वाली प्रतिष्ठित संस्था है. संजय कुमार इस संस्था के सह निदेशक हैं. गुरुवार को श्री कुमार ‘प्रभात खबर’ के दो-दिवसीय ‘संपादकीय संवाद’ में पहुंचे थे. उन्होंने चुनावी सर्वे, चुनाव के चौंकानेवाले परिणाम और चुनाव की भावी तस्वीर को लेकर उसकी बारीकियां बतायीं. सटीक सर्वे, तथ्यपूर्ण चुनावी विश्लेषण को बहुत ही सहजता से समझाने का प्रयास किया. आंकड़ों के माध्यम से उन्होंने चुनाव के ट्रेंड और परिणाम को प्रभावित करनेवाले कारकों को बताया.
रांची : चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने ‘प्रभात खबर संवाद’ में कहा कि बतौर पत्रकार या चुनाव विश्लेषक हमें केवल परसेप्शन और नरेटिव पर चुनाव परिणाम नहीं आंकना चाहिए. उन्होंने बताया कि पूर्व के चुनावों के आंकड़ों को देखें, तो पता चलेगा कि हम जो सोच-समझ रहे थे, मामला उससे विपरीत है. कोई धारणा बना कर चुनावी परिणाम को नहीं देखा जा सकता है या आनेवाले चुनावी ट्रेंड को समझा जा सकता है.
चुनावी डाटा से परिणाम को समझाने का प्रयास किया, तो कैसे परसेप्शन टूट गये, उन्होंने यह भी बताया. उन्होंने बताया कि आज यह कहा जाता है कि परसेप्शन व्यक्ति विशेष का होता है. यह कोई सामूहिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता. परसेप्शन और गॉसिप में बहुत अंतर नहीं होता है. श्री कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम, भाजपा की जमीनी ताकत को आंकड़े के माध्यम से समझाया और भावी परिणाम की ओर संकेत किया. उन्होंने कहा, आंकड़ों से तो भाजपा देश में मजबूत दिख रही है.
संजय कुमार ने 2004 के चुनाव, तब भाजपा को मिली शिकस्त और आज की परिस्थिति का अंतर समझाया. उन्होंने कहा कि टीवी डिबेट से लेकर अन्य मीडिया में सीटों का आकलन हो रहा है. क्या भाजपा 370 पार करेगी? 400 पार करेगी…? ऐसे डिबेट हर दिन हो रहे हैं. आज डिबेट का विषय ही बदल गया है. इंडिया गठबंधन चुनौती दे सकेगी? उन्होंने कहा कि वाजपेयी की सरकार और आज की मोदी की सरकार में अंतर है.
2004 में कांग्रेस के पास 114 सीटें थीं, आज 52 सीट हैं. 2004 मेें कांग्रेस के पास 28 प्रतिशत वोट थे, आज 19 प्रतिशत है. तब 11 राज्यों में उनकी सरकार थी, आज 09 में इंडिया गठबंधन की सरकार है. 2004 में बीजेपी के पास 182 सीटें थीं, आज 302 सीट है. तब भाजपा के पास 23.75 प्रतिशत वोट थे और आज 37.5 प्रतिशत वोट है. 2004 में छह राज्यों में भाजपा की सरकार थी, आज 18 राज्यों में है. कांग्रेस को अभी 18 प्रतिशत वोट का फासला तय करना है. यह आसान नहीं है.
ग्रामीण और गरीब मतदाता जल्दी नहीं झुकते
भाजपा ने शहरी के साथ-साथ ग्रामीण वोटरों में पैठ बनायी है. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी आंकड़े में ज्यादा हैं. आज 2004 वाली भाजपा नहीं है. अरबन मतदाता तुरंत झुकते हैं, इधर-उधर होते हैं. इनकम टैक्स का दायरा बढ़ा, तो नाराज हो जायेंगे. ग्रामीण और गरीब मतदाता जल्दी नहीं झुकते हैं. भाजपा ने ओबीसी वोट बैंक में पूरी रणनीति के साथ काम किया है. वाजपेयी सरकार में नरेटिव कमजोर था, आज स्ट्रांग है. उन्होंने कहा कि महंगाई-बेरोजगारी मुद्दा है. लोग मानते हैं कि ये दोनों बढ़ी हैं. चिंता जताते हैं. उन्होंने आंकड़ाें से बताया कि 70 से 80 प्रतिशत लोग कहते हैं कि महंगाई-बेरोजगारी बढ़ी है, लेकिन यह सरकार के खिलाफ इस मुद्दे पर नहीं जाते हैं.
उन्होंने कहा कि कर्नाटक चुनाव-
2023 में कांग्रेसी अलग धारणा बना रहे थे. उनका कहना था कि 1000 हजार से कम अंतर में कई सीटें हार गये, जबकि सच कुछ और था. कांग्रेस केवल छह सीटें दो हजार वोट से कम से हारी. इसी तरह की बातें मध्यप्रदेश के 2018 के चुनाव में बताया जा रहा था कि भाजपा और कांग्रेस को कई सीटों पर नोटा से कम वोट पड़े. इस कारण कांग्रेस हार गयी. पर सच यह था कि हार के कारण कुछ और थे. कांग्रेस को नोटा से कम केवल 12 सीटों पर वोट मिले. वहीं, भाजपा को नौ सीटें ऐसी मिली थीं.
राज्यों के परिणाम को आंकड़े के माध्यम से समझाया
श्री कुमार ने बिहार सहित अन्य राज्यों के परिणाम को आंकड़े के माध्यम से समझाया कि कैसे चुनावी परिणाम के पूर्व की धारणा टूटी है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर उन्होंने कहा कि भाजपा की जीत के बाद यह कहा जाने लगा कि यूपी में मुस्लिम वोट शिफ्ट कर गया. खास कर मुस्लिम महिला वोटर भाजपा के साथ चली गयीं, लेकिन हकीकत यह नहीं था. आंकड़े बता रहे थे कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के साथ था. हां, काउंटर पोलराइजेशन हुआ.
इसी तरह उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल में कहा गया था कि दलित भाजपा के साथ नहीं है, जबकि वहां एससी की 88 रिजर्व सीटों में टीएमसी को 36 और भाजपा को 32 मिले. भाजपा को दलितों का 55 प्रतिशत वोट मिला. मध्य प्रदेश के पिछले चुनाव में कहा गया कि मामा को ‘लाडली बहना स्कीम’ का लाभ बिना. अखबारों से लेकर मीडिया में यही परसेप्शन बनाया गया. योजनाओं को लेकर झुकाव जरूर था, लेकिन डिसाइडिंग फैक्टर नहीं था. इसी तरह कहा गया कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ा यात्रा’ प्रभावी रही, लेकिन आंकड़े कुछ और कह रहे थे. सर्वे कुछ और बता रहे थे.