Gopalganj Election: अवधेश कुमार राजन, गोपालगंज. अंग्रेजों के शासन में स्थापित गोपालगंज जिले की चार चीनी मिलों में से अब दो ही चालू हालत में है. गन्ना बाहुल्य क्षेत्र होने के नाते गन्नांचल के नाम से जिले की ख्याति थी. चुनाव में गन्ना, गंडक तब भी मुद्दा था. आज भी कमोबेश बरकरार है. महंगाई, बेरोजगारी, अपराध के बीच सारण, मुजफ्फरपुर, चंपारण व यूपी की सीमा से सटे इस इलाके में बेशक विकास के काम तो हुए हैं, लेकिन अब भी गोपालगंज का नाम देश के विकसित शहरों के पोर्टल पर दर्ज नहीं हुआ. इसका एक कारण यह भी है कि यहां के मतदाताओं ने हर बार नये चेहरे को संसद में भेजा है, 1980 के बाद किसी को लगातार दो बार चुनाव जीतने का मौका किसी को नहीं दिया. यह पहला लोकसभा चुनाव है, जहां वोटर खामोश है.
प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है यह सीट
एनडीए की ओर से जदयू ने दोबारा डॉ आलोक कुमार सुमन को उतारा है. तो इंडिया गठबंधन की ओर से वीआइपी के प्रेम नाथ पासवान चंचल के बीच चुनावी मैदान को जीतने की जंग है. टक्कर आमने-सामने की है. एनडीए प्रधानमंत्री की गारंटी, धारा 370, तीन तलाक, सीएए, राम मंदिर, कल्याणकारी योजनाओं को लेकर मैदान में है. एनडीए के सामने अपने किले को बचाने की कड़ी चुनौती है. वीआइपी के सामने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के गृह जिले में एनडीए के खाते से सीट को झटक लेने का लक्ष्य है. इंडिया गठबंधन की ओर से बेरोजगारी, हिन्दू-मुस्लिम, महंगाई को मुद्दा बनाकर जदयू के किले को भेदने की तैयारी है. राजद की ओर से जदयू को मात देने के जिए तेजस्वी यादव और वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है. जबकि एनडीए की ओर से भाजपा, जदयू के दिग्गज नेताओं ने लालू प्रसाद के घर में वीआइपी को हराने के लिए बड़ा चक्रव्यूह तैयार कर रखा है. एनडीए के लिए भी यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है.
डैमेज कंट्रोल करने की सबसे बड़ी चुनौती
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, मंत्री शीला मंडल, शिक्षा मंत्री सुनील कुमार, प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुशवाहा तो भाजपा की ओर से भीखू भाई दलसानिया, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, प्रेम कुमार, जनक राम, हम से पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, लोजपा प्रमुख चिराग पासवान चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोक चुके हैं. वैसे तो एआइएमआइएम से दीनानाथ मांझी भी वोटों के किले में सेंधमारी करने के लिए प्रयासरत है. जबकि बसपा भी अपने कैडर वोटों के साथ चुनावी पिच पर जीत का दावा कर रहा है. इस चुनाव के अंतिम दौर तक पार्टी के वर्करों की खामोशी प्रत्याशियों की बेचैनी को बढ़ाने के लिए काफी है. एनडीए के सामने अपने किले को बचाने के लिए डैमेज कंट्रोल करने की सबसे बड़ी चुनौती है. भाजपा व जदयू का एक खेमा सोशल मीडिया में नो कन्फ्यूजन का कैंपेन चला कर एनडीए के पक्ष में फिजां को बदलने की कोशिश रहा है. जबकि दूसरे खेमे में मान-मनौव्वल चल रहा है. राजद, कांग्रेस, वामदलों में भी वही हालात हैं. वर्करों की नाराजगी मान-मनौव्वल से खत्म होती है कि नहीं, यह तो अब समय बतायेगा. कुल मिलाकर जंग काफी रोचक बना हुआ है.
चुनावी पिच पर डटे है 11 खिलाड़ी
गोपालगंज सुरक्षित लोकसभा सीट के चुनावी पीच पर 11 खिलाड़ी जमे हुए है. जिसमें भारतीय राष्ट्रीय दल से सुरेंद्र राम, निर्दलीय सत्येंद्र बैठा, जदयू से डॉ. आलोक कुमार सुमन, गण सुरक्षा पार्टी से राम कुमार मांझी, विकासशील इंसान पार्टी से प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान, बहुजन मुक्ति पार्टी से जितेंद्र राम, बहुजन समाज पार्टी से सुजीत कुमार राम, निर्दलीय भोला हरिजन, एआइएमआइएम से दीनानाथ मांझी, निर्दलीय नमी राम और निर्दलीय अनिल राम जनता के बीच मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे हैं.
पिछले चुनाव में नोटा तीसरे पोजिशन पर आ गया था
2009 के परिसीमन में गोपालगंज की सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया. इस जिले में ब्राह्मण समुदाय की आबादी सबसे बड़ी मानी जाती है, जो सीट आरक्षित हो जाने से नाराज रहे. साथ ही, प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी से भी यहां जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने जब नोटा को विकल्प दिया तो नोटा का लोगों ने खूब इस्तेमाल किया. 2014 में नोटा के विकल्प का इस्तेमाल पहली बार लोगों ने किया. तब नोटा के पक्ष में 17841 वोट गया. चौथे पोजीशन पर था. 2019 के आम चुनाव में यह संख्या बढ़कर 51,660 पर पहुंच गया. कुल वोटर्स के 5.04% वोट नोटा को मिला. तीसरे पोजीशन पर रहा. जिससे साफ है कि कई वोटर्स में आरक्षण व प्रत्याशियों को लेकर नाराजगी बरकरार रही.
इस चुनाव में वोटरों की स्थिति
महिला मतदाता- 995095
पुरूष- मतदाता-1028898
थर्ड जेंडर-80
कुल मतदाता -2027454
जातीय समीकरण
सवर्ण 8.54 लाख
मुस्लिम 3.10 लाख
दलित 3.27 लाख
ओबीसी 4.93 लाख
अन्य 1.83 लाख
गोपालगंज में कब कौन रहे सांसद
1952: सैयद महमूद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1957: सैयद महमूद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1962: द्वारिका नाथ तिवारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1967: द्वारिका नाथ तिवारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1971: द्वारिका नाथ तिवारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1977: द्वारिका नाथ तिवारी, जनता पार्टी
1980: नगीना राय, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1984: काली प्रसाद पांडेय, स्वतंत्र
1989: राज मंगल मिश्रा, जनता दल
1991: अब्दुल गफूर, राष्ट्रीय जनता दल
1996: लाल बाबू प्रसाद यादव, राष्ट्रीय जनता दल
1998: अब्दुल गफूर, समता पार्टी
1999: रघुनाथ झा, समता पार्टी
2004: अनिरुद्ध प्रसाद यादव,उर्फ साधु यादव- राष्ट्रीय जनता दल
2009: पूर्णमासी राम, जनता दल (यूनाइटेड)
2014: जनक राम, भारतीय जनता पार्टी
2019:. डॉ.आलोक कुमार सुमन, जनता दल यूनाइटेड