हरियाणा में अर्श से फर्श पर पहुंचे क्षेत्रीय दल, वजूद बचाने का संकट, जानें ऐसा क्यों हुआ?
Haryana Assembly Elections 2024: JJP और INLD दोनों पार्टियां खुद को "किंगमेकर" के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में सीधा मुकाबला कांग्रेस और BJP के बीच होगा.
Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा में राष्ट्रीय पार्टियों की बढ़ती लोकप्रियता और दबदबा, क्षेत्रीय दलों के प्रभाव को कमजोर कर रहा है. हाल के चुनावी नतीजों से यह स्पष्ट होता है. 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और BJP के बीच सीधा मुकाबला देखा गया, जहां कांग्रेस को 36.49% और BJP को 28.08% वोट मिले. जननायक जनता पार्टी (JJP) 10 सीटें जीतकर 14.80% वोट शेयर के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.
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2014 के विधानसभा चुनाव में BJP ने 33.5% वोट हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जीत दर्ज की थी, जबकि इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) 24.11% वोट के साथ दूसरे और कांग्रेस 20.58% वोट के साथ तीसरे स्थान पर रही. 2018 तक INLD हरियाणा की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी थी, लेकिन चौटाला परिवार में विभाजन से इसका असर पड़ा. दुष्यंत चौटाला ने अपने पिता अजय सिंह चौटाला के साथ मिलकर INLD से अलग होकर जननायक जनता पार्टी की स्थापना की.
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2019 के विधानसभा चुनाव में INLD का वोट शेयर घटकर 2.44% रह गया और वह सिर्फ एक सीट जीत पाई, जबकि JJP 14.80% वोट के साथ 10 सीटें जीतकर BJP के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हुई. हालांकि, पांच साल में JJP भी टूटने लगी. JJP के चार विधायक BJP में चले गए और तीन कांग्रेस में शामिल हो गए. अब JJP के पास केवल तीन विधायक बचे हैं, जिनमें दुष्यंत चौटाला और उनकी मां नैना चौटाला भी शामिल हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में JJP का वोट शेयर मात्र 0.87% रह गया, जबकि INLD को सिर्फ 1.74% वोट मिले. जाट समुदाय, जो पहले इन दोनों पार्टियों का वोट बैंक था, अब कांग्रेस की ओर चला गया.
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INLD और JJP ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए गठबंधन किए हैं. INLD ने बसपा के साथ और JJP ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है. हालांकि, बसपा का आधार भी हरियाणा में कमजोर हो चुका है, और JJP ने ASP को 20 सीटें दी हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, JJP और INLD का वोट बैंक तेजी से गिर रहा है और वे सिर्फ चुनाव में अपनी मौजूदगी दिखाने की कोशिश कर रही हैं.
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दोनों पार्टियां खुद को “किंगमेकर” के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और BJP के बीच होगा. कुछ क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है, पर क्षेत्रीय दलों का प्रभाव तेजी से घटा है. INLD कभी राष्ट्रीय दलों को कड़ी टक्कर देती थी, लेकिन पार्टी में विभाजन के बाद उसकी ताकत कमजोर हो गई है.
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हरियाणा में क्षेत्रीय दलों की सरकार का इतिहास भी कमजोर रहा है. 1967 में राव वीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी से मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन उनकी सरकार सिर्फ 241 दिन चली. 1999 में बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी से सरकार बनाई, लेकिन उनका कार्यकाल भी तीन साल 74 दिन का रहा. INLD ने दो बार सरकार बनाई, लेकिन ओमप्रकाश चौटाला का 2000 से 2005 का कार्यकाल ही पूरा हुआ. 2024 के हरियाणा चुनाव में, क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व अब गंभीर सवालों के घेरे में है, और वे हाशिए पर पहुंच चुके हैं.
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