JamshedpurNews : धोबनी स्थित सावित्रीबाई फूले सह वीर फूलो-झानो पुस्तकालय में रविवार को संताली भाषा की ओलचिकी लिपि की पढ़ाई का शुभारंभ किया गया. मौके पर यूसिल जादूगोड़ा के अधिकारी डी. हांसदा मौजूद थे. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि संताल समाज की मातृभाषा संताली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है. बावजूद इसके युवाओं में संताली भाषा में पठन-पाठन को लेकर रूझान बहुत कम है.संताली को भले ही आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया हो, लेकिन करियर की दृष्टिकोण से रोजी-रोजगार से अभी तक जुड़ नहीं सका है. अपने ही राज्य में केजी से पीजी तक की पढ़ाई संताली भाषा में शुरू नहीं हुआ है. समाज के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद व जनप्रतिनिधियों को इसपर चिंतन करना चाहिए. ताकि समाज के लोग ज्यादा से ज्यादा अपनी मातृभाषा में पठन-पाठन कर सके. इस अवसर पर माझी बाबा नसीब बेसरा, शिक्षक सुंदर मोहन मुर्मू, निर्मल बेसरा, बिरेन बास्के, छाकुराम सोरेन, राजीव किस्कू, सरिता सोरेन, मुकेश किस्कू, गोविंदा हांसदा, सरस्वती सोरेन, संगीता हांसदा, राजू टुडू, विजय सोरेन समेत अन्य मौजूद थे.
जनजातीय भाषाओं में संताली सबसे अधिक समृद्ध व विकसित
डी. हांसदा ने कहा कि जनजातीय भाषा में संताली सबसे अधिक समृद्ध व विकसित है. बावजूद इसके अभी तक कई स्तर पर कार्य होना बाकी है. समाज के युवा ओलचिकी लिपि को प्रचार-प्रसार करने के लिए चिंतन कर रहे हैं. यह समाज के सकारात्मक पहल है.पुसतकालय के संरक्षक आनंद बेसरा ने कहा कि हाल के दिनों में युवाओं को रूझानओलचिकी लिपि के प्रति काफी बढ़ा है. गांव देहात के युवा हिंदी व अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने के बाद भी अपनी मातृभाषा ओलचिकी लिपि को सीख रहे हैं.
नि:शुल्क कोचिंग देकर अपने गांव के छात्रों को देते हैं मार्गदर्शन
धोबनी पुस्तकालय ग्रामीण छात्रों के लिए शिक्षा का केंद्र बना हुआ है. पिछले कई वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक प्रेरणास्रोत रहा है. इस पुस्तकालय में छात्र समूह चर्चा (ग्रुप डिस्कशन) के माध्यम से अपनी तैयारी को सुदृढ़ करते हैं. यह पहल ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान है. जहां वे सामूहिक रूप से विभिन्न परीक्षाओं की रणनीति पर विचार-विमर्श करते हैं और एक-दूसरे की सहायता करते हैं.गांव के कुछ सीनियर छात्र इस प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, वे नि:शुल्क कोचिंग देकर अपने गांव के छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं. यह कोचिंग विशेष रूप से नवोदय विद्यालय, एकलव्य आवासीय विद्यालय, नेतरहाट, इंदिरा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय, अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय, और राज्य स्तरीय छात्रवृत्ति परीक्षाओं के लिए होती है. इन संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए छात्रों को गहन तैयारी की आवश्यकता होती है और पुस्तकालय में प्राप्त मार्गदर्शन उनके सपनों को साकार करने में सहायक सिद्ध हो रहा है.
समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में भी दे रहे योगदान
आदिवासी समाज के युवा वाद्य यंत्रों का प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह प्रशिक्षण उन्हें न केवल संगीत में दक्ष बनाता है, बल्कि समाज के उत्थान के प्रति जागरूक भी करता है. ये युवा अपनी पारंपरिक संस्कृति को जीवित रखते हुए, उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. इसके साथ ही, ये युवा शिक्षा के क्षेत्र में भी उत्कृष्टता प्राप्त करने का संकल्प रखते हैं. पढ़ाई में अव्वल रहने के साथ, वे सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं. अपने समाज की समृद्ध परंपराओं को सहेजते हुए, ये युवा समाज को एक नई दिशा देने के लिए तत्पर रहते हैं. इस तरह वे न केवल अपनी व्यक्तिगत उन्नति पर ध्यान देते हैं, बल्कि अपने समाज के उत्थान और विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं.
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