70 वर्षीय रजा की सांस चलने लगी

रांची: गत एक महीने में सही समय पर उचित चिकित्सा शुरू होने से राजधानी में मौत के मुंह में पहुंच चुके मरीजों को नयी जिन्दगी मिली है. मौत की कगार पर पहुंच चुके 70 वर्षीय ए रजा को चिकित्सक डॉ अंशुमन ने नयी जिंदगी दी है. वहीं छत से गिरकर टूटी रीढ़ की हड्डियों वाली […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 30, 2014 7:23 AM

रांची: गत एक महीने में सही समय पर उचित चिकित्सा शुरू होने से राजधानी में मौत के मुंह में पहुंच चुके मरीजों को नयी जिन्दगी मिली है. मौत की कगार पर पहुंच चुके 70 वर्षीय ए रजा को चिकित्सक डॉ अंशुमन ने नयी जिंदगी दी है. वहीं छत से गिरकर टूटी रीढ़ की हड्डियों वाली लकवाग्रस्त 19 वर्षीया अंजू कुमारी को डॉ संजय जायसवाल ने फिर से पैरों पर खड़ा कर दिया है. इन दोनों घटनाओं को डॉक्टरों ने चिकित्सा का चमत्कार करार दिया है.

सांस बंद हो गयी थी : 26 मार्च को 70 वर्षीय सेवानिवृत्त प्रोफेसर ए रजा को सांस लेने में दिक्कत हुई. परिजन उन्हें आर्किड अस्पताल में लेकर गये. डॉ अंशुमान की देखरेख में मरीज को आइसीयू में भरती कराया गया. इलाज के क्रम में ही मरीज को कार्डियेक अरेस्ट (हृदयाघात) हुआ और उनकी सांस बंद हो गयी थीं. डॉ अंशुमान ने तुरंत उनको कार्डियक मसाज देना शुरू किया. करीब आधे घंटे मसाज के बाद उनके शरीर में हरकत हुई. इसके बाद उनको वेंटिलेटर पर रखा गया. रात भर मरीज कोमा में रहा. इसके बाद उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ. अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं. डॉ अंशुमान मौसम वैज्ञानिक डॉ ए बदूद के भाई है.

पैरों में आयी जान, चल पड़ी अंजू :दूसरी घटना लातेहार की अंजू की है. वह 18 फरवरी को सीढ़ियों से गिर गयी. उसकी रीढ़ की कई हड्डियां टूट गयी थी. पैर में लकवा मार दिया था. पेशाब भी बंद हो गया था. परिजन उसे पहले लातेहार एवं उसके बाद डालटनगंज में दिखाये. सुधार नहीं होने पर उसे प्लाजा चौक स्थित एलके ऑर्थो केयर सेंटर में डॉ संजय जायसवाल के यहां भरती किया गया. एमआरआइ के बाद अंजू का ऑपरेशन पांच मार्च को डॉ संजय जायसवाल, डॉ तरुण अडुकिया, डॉ स्टीफन हांसदा एवं डॉ सिमी की टीम द्वारा किया गया. ऑपरेशन के एक हफ्ते बाद ही अंजू के पैरों में हरकत हुई. उसके बाद फिजियोथेरेपी शुरू की गयी. अब पेशाब की थैली भी काम करने लगी. लड़की को एक दो दिन में छुट्टी दे दी जायेगी. डॉ संजय ने बताया कि अक्सर यह देखा जाता है कि स्पाइनल इंज्यूरी का इलाज समय पर शुरू नहीं हो पाता है, जिससे मरीज जिंदगी भर लकवाग्रस्त हो जाते हैं.

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