बाघ के शिकार की परंपरा ने छीनी बेतला की रौनक
संतोष बेतला : यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पलामू की पहचान बाघों से रही है. एक जमाना था, जब यह इलाका बाघों के लिए जाना जाता था. दूर-दराज के शिकारी बाघों का शिकार करने यहां आते थे. जानकारों की मानें, तो अंग्रेजों के समय में सबसे अधिक बाघों का शिकार हुआ. उस समय तो […]
संतोष
बेतला : यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पलामू की पहचान बाघों से रही है. एक जमाना था, जब यह इलाका बाघों के लिए जाना जाता था. दूर-दराज के शिकारी बाघों का शिकार करने यहां आते थे. जानकारों की मानें, तो अंग्रेजों के समय में सबसे अधिक बाघों का शिकार हुआ. उस समय तो बाघ का शिकार करनेवालों को इनाम भी दिया जाता था. हर बाघ के शिकार पर डालटेनगंज कचहरी पर शिकारी को 25 रुपये इनाम मिलता था.
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आजाद भारत में भी बाघों को मारने का सिलसिला नहीं थमा. 1951 से 1970 तक बाघों का अंधाधुंध शिकार हुआ. 1970 में जब बाघों की गिनती करायी गयी, तो उस समय इस जंगल में 34 बाघ थे. इसके बाद बाघों के संरक्षण पर जोर दिया गया. 1974 में बेतला को पलामू टाईगर रिजर्व का दर्जा दिया गया. उस समय भी इस क्षेत्र में 22 बाघ थे.
जानकार बताते हैं कि बेतला को बाघ अभ्यारण्य बनाने के बाद बाघों की संख्या 45 तक पहुंच गयी, 1990 के बाद इसकी संख्या फिर घटने लगी. यह सिलसिला लगातार जारी रहा. अब तो बेतला में बाघ दिख जाये, तो यह खबर बनती है. अब जंगल में वही बाघ बचे हैं, जो विपरीत परिस्थितियों को भी झेलने में सक्षम हैं. वर्तमान समय में बाघों की संख्या कितनी है, इसका स्पष्ट उत्तर किसी के पास नहीं है.
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विभागीय पदाधिकारियों का दावा है कि बाघों की संख्या अभी भी कम नहीं है. लेकिन, उन पर नजर रखना मुश्किल हो गया है. स्टाफ की कमी सबसे बड़ी समस्या है. बाघ कहां है, इसका पता ही नहीं चल पाता. नतीजतन उनके वास्तविक आंकड़े की जानकारी नहीं हो पाती है.
हालांकि, कैमरा ट्रैप लगाने की प्रक्रिया शुरू की गयी है. पलामू टाईगर रिजर्व की अलग-अलग जगहों से बाघों की तस्वीर ली गयी है. लेकिन, इन तस्वीरों में एक बात स्पष्ट नजर आया है कि सभी बाघ नर पाये गये हैं. इसका मतलब यह है कि पलामू टाईगर रिजर्व में एक भी बाघिन नहीं है. साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि अभी तक एक भी बाघ की तस्वीर वन विभाग नहीं ले पाया है. यह इस बात का प्रमाण है कि बाघों की संख्या बढ़ नहीं रही है.
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विभागीय पदाधिकारी भी मानते हैं कि अभी बाघ नहीं बढ़ रहे. उनका कहना है कि वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या में वृद्धि होगी. इसके लिए दूसरे टाईगर प्रोजेक्ट से बाघिन को यहां लाया जायेगा. ऐसी परिस्थितियां तैयार की जायेगी कि बाघों की संख्या बढ़े. पलामू टाईगर रिजर्व का पुराना गौरव लौटाने के लिए विभाग ने प्रयास तेज कर दिये हैं.
ग्रामीणों की सहभागिता जरूरी
पलामू टाईगर रिजर्व के क्षेत्र निदेशक एमपी सिंह कहते हैं कि पीटीआर क्षेत्र में पड़नेवाले 168 गांवों के लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. इन गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. इसलिए उन गांवों के विकास की जरूरत है. जब तक गांव के लोग आत्मनिर्भर नहीं होंगे, तब तक जंगल बचाने की दिशा में कार्य करना कठिन है. इसके लिए विभाग ने कई उल्लेखनीय कार्य कराने का प्रस्ताव लिया है. इनमें इको विकास समिति को सशक्त कर ग्रामीणों का सर्वांगीण विकास करना है.
पदाधिकारियों को ग्रामीणों से जुड़ना होगा
वाइल्डलाइफ के सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि पदाधिकारियों का जुड़ाव ग्रामीणों से होना जरूरी है. जब गांव के लोग पदाधिकारियों को अपना समझेंगे, तो निश्चित रूप से उनकी बात को सुनेंगे. इतना तो तय है कि पीटीआर के जितने भी गांव के लोग हैं, वे काफी समझदार हैं. जंगल बचाना चाहते हैं. यदि ऐसा नहीं होता, तो पीटीआर कब का खत्म हो जाता.