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एक माह में आदिम जनजाति के छह लोग मरे

चैनपुर के गोरे बलहिया गांव में इलाज की सुविधा नहीं चैनपुर (पलामू) : चैनपुर के गोरे बलहिया गांव में सरकारी इलाज की सुविधा नहीं मिलने से रविवार की रात आदिम जनजाति के देवा मुंडा (60) की मौत हो गयी. रविवार की सुबह ही गांव के 18 वर्षीय युवक सुनील कोरवा की मौत हो गयी थी.पिछले […]

चैनपुर के गोरे बलहिया गांव में इलाज की सुविधा नहीं

चैनपुर (पलामू) : चैनपुर के गोरे बलहिया गांव में सरकारी इलाज की सुविधा नहीं मिलने से रविवार की रात आदिम जनजाति के देवा मुंडा (60) की मौत हो गयी. रविवार की सुबह ही गांव के 18 वर्षीय युवक सुनील कोरवा की मौत हो गयी थी.पिछले एक माह में इस गांव में आदिम जनजाति के छह लोगों की मौत हो चुकी है. दो दिन पहले देवा मुंडा के नाक से खून निकला था.

सरकारी सुविधा के अभाव में उसने गांव में ही अपने स्तर पर इलाज कराया, पर बीमारी ठीक नहीं हुई. रविवार की शाम वह अचानक बेहोश हो गया. उसके बाद देवा मुंडा की आंख नहीं खुली.

दो साल से बेटा भी बीमार है

देवा मुंडा के पांच पुत्र हैं. तीन पुत्र विलियम, अरविंद व नवी होरो गांव से बाहर कमाने गये हुए हैं. चौथा बेटा निर्मल होरो (37) पिछले दो वर्षो से बीमार है. भाई हवील होरो व मां इलाज कराने के लिए उसे अंबिकापुर ले गये हैं. जब देवा मुंडा की मौत हुई, तो घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं था. घर की महिलाओं ने बताया कि गांव में इलाज की व्यवस्था नहीं है. वे लोग अपने स्तर से ही जो संभव हो पाता है, इलाज कराते हैं. आखिर इसके अलावा और क्या किया जा सकता है.

11 अप्रैल को भी हुई थी दो की मौत

गोरे बलहिया गांव में 11 अप्रैल को एक ही परिवार के दो सदस्यों की मौत हुई थी. सुबह में पूनम कुमारी और शाम में उसके दादा गुडल कोरवा की मौत अज्ञात बीमारी से हो गयी थी. रामू परहिया और उसकी पत्नी की मौत भी इसी माह हुई है. आदिम जनजाति को सरकारी खर्च से इलाज कराने का प्रावधान है. पर गांव के लोगों को यह सुविधा नहीं मिल पा रही है.

गांव की स्थिति ठीक नहीं : बीडीओ

चैनपुर बीडीओ विपिन कुमार दुबे ने कहा : यह सही है कि गांव की स्थिति ठीक नहीं है. वह इस मामले को लेकर गंभीर हैं. 11 अप्रैल को दो लोगों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव भेजी गयी थी. उसके बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है, तो फिर डॉक्टरों की टीम भेजी जायेगी.

प्रशासनिक लापरवाही : मोरचा

अनुसूचित जाति मोरचा के उदय राम का कहना है कि आदिम जनजाति के संरक्षण व संवर्धन के प्रति प्रशासन द्वारा गंभीरता नहीं दिखाया जा रहा है, जिसके कारण लगातार मौत हो रही है. इस मामले में प्रशासन द्वारा गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है.

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