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हिंदी पत्रकारिता को दी नयी ऊंचाई

दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’ हिंदी पत्रकारिता को नया आयाम देनेवाले अखबारों में दिल्ली सेप्रकाशित ‘जनसत्ता’ (प्रभाष जोशी के संपादन काल में) के बाद जिन अखबारों कानाम लिया जाता है, उनमें प्रभात खबर का अहम स्थान है. सामयिक विषयों पर सारगर्भित एवं खोजपूर्ण जानकारी देने और पाठकों का विश्वास अर्जित करने में इसका कोई सानी नहीं […]

दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’

हिंदी पत्रकारिता को नया आयाम देनेवाले अखबारों में दिल्ली सेप्रकाशित ‘जनसत्ता’ (प्रभाष जोशी के संपादन काल में) के बाद जिन अखबारों कानाम लिया जाता है, उनमें प्रभात खबर का अहम स्थान है. सामयिक विषयों पर सारगर्भित एवं खोजपूर्ण जानकारी देने और पाठकों का विश्वास अर्जित करने में इसका कोई सानी नहीं है.कई घटनाक्रमों में ऐसा देखा गया कि इसने निर्भीकता और निष्पक्षता का भरपूर परिचय तो दिया ही, साथ ही अपने समाज और संस्कृति के जागरूक प्रहरी का काम भी किया. समाचार संप्रेषण में अपनी तटस्थ, सक्रि य और परिपक्व भूमिका के कारण प्रभात खबर की उपलिब्धयां महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय रहीं. प्रभात खबर ने पीत पत्रकारिता से न सिर्फ दूरी बनाये रखी, बल्कि उसके विरुद्ध आवाज भी उठाता रहा. प्रभात खबर की स्थापना 14 अगस्त 1984 को रांची में हुई थी.

छोटानागपुर के चर्चित कांग्रेसी नेता रहे श्री ज्ञानरंजन और समाचार एजेंसी ‘समाचार भारती’ के तत्कालीन रांची ब्यूरो प्रमुख श्री एसएन विनोद ने संयुक्त रूप से इसकी स्थापना की थी. ज्ञानरंजन जी प्रबंध निदेशक और विनोद जी इसके संपादक बनाये गये. उन दिनों छोटानागपुर में रांची से रांची एक्सप्रेस, धनबाद से दैनिक आवाज और जमशेदपुर से दैनिक उदितवाणी का प्रकाशन हो रहा था. संभवत: रांची, जमशेदपुर और धनबाद से दैनिक आज का प्रकाशन भी प्रारंभ हो गया था. इसके बावजूद प्रभात खबर एक स्तरीय दैनिक अखबार के रूप में चर्चित होने लगा.

लेकिन ज्ञानरंजन जी और विनोद जी की दोस्ती बहुत दिनों तक नहीं चली. आपसी कलह इतना बढ़ गया कि अंतत: अखबार बंद हो गया. इस बीच ज्ञानरंजन जी ने विनोद जी को पैसा लौटा कर अखबार खरीद लिया. 90 दिनों तक बंद रहने के बाद प्रभात खबर श्री सुनील श्रीवास्तव के संपादन में पुन: प्रकाशित होने लगा. ज्ञानरंजन जी मेरे अच्छे मित्र थे. उन दिनों मैंदैनिक हिंदुस्तान (पटना) का जमशेदपुर से संवाददाता था. ज्ञानरंजन के दबाव पर मुङो दैनिक हिंदुस्तान छोड़ना पड़ा. मुङो प्रभात खबर का जमशेदपुर ब्यूरो प्रमुख बनाया गया. विशेष संवाददाता बना कर मुङो अयोध्या भी भेजा गया जहां महीनों रह कर बाबरी मसजिद के विवादित घटनाक्र म का समाचार भेजता रहा.

रांची में रह कर प्रभात खबर के समाचार-संपादक के पद पर भी काम करने का मौका मिला, किन्तु आर्थिक कठिनाइयों के चलते ज्ञानरंजन जी प्रभात खबर चलाने में असमर्थ रहे और अंतत: उन्हें इसे श्री झाबर जी के हाथों बेच देना पड़ा. अब प्रभात खबर के संपादक श्री हरिवंश बनाये गये.नयी व्यवस्था होने के कारण कुछ उथल-पुथल तो हुई, किन्तु आर्थिक कठिनाइयां दूर हो जाने के कारण अखबार की सेहत पर उसका प्रभाव नहीं पड़ा. हरिवंश जी के संपादन में अखबार चल निकला. रांची में अपने पांव जमाने के बाद प्रभात खबर अन्य शहरों से भी प्रकाशित होने लगा. आज दस प्रमुख शहरों से प्रभात खबर का प्रकाशन हो रहा है. रांची, जमशेदपुर, पटना, धनबाद, देवघर, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, गया, कोलकाता और सिलीगुड़ी से प्रकाशित होकर प्रभात खबर पूर्वी भारत का प्रमुख अखबार बन गया है.

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, मीडिया एक उद्योग के रूप में भारत में लगातार विकसित हो रहा है. इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया, दोनों का निरंतर विकास हो रहा है. प्रभात खबर ने पत्रकारिता के बदलते स्वरूप के साथ कदम से कदम मिला कर अपनी मंजिल तय की है. अखबारों की जिम्मेदारी होती है कि वह निर्णायक क्षणों में पाठकों को सही जानकारी दें.

कई अवसरों पर देखा गया है कि प्रभात खबर ने ऐसे मुद्दों पर सही निर्णय लिया है और लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है. यह सच है कि पत्रकारिता के बदलते स्वरूप के कारण अखबारों को अपने परम्परागत स्वरूप को बनाए रखने में कई प्रकार की बाधाएं आ रही हैं.इन तमाम बाधाओं को दरिकनार कर प्रभात खबर आगे बढ़ता रहा है और सामाजिकसरोकारों का ध्वजावाहक बन कर आम जन की आवाज बनता रहा है. सोशल मीडिया के इस युग में भी लोगों को अखबारों पर अधिक भरोसा है. आम लोगों का यह भरोसा और विश्वास ही अखबारों की सबसे बड़ी ताकत है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस जमाने में प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता का मुख्य कारण प्रिंट मीडिया में जमीन से जुड़े, गांव-गांव में फैले समर्पित पत्रकार ही हैं.

प्रभात खबर के पास ऐसे जमीन से जुड़े पत्रकारों की बहुत बड़ी और कुशल टीम है, जिसकी बदौलत प्रभात खबर अपनी विश्वसनीयता बनाये हुए है और विकास के पथ पर अग्रसर है. 1991 के बाद जब आर्थिक उदारीकरण की नीति अपने देश में लागू हुई और पत्रकारिता पर कई सवाल उठने लगे उस समय भी प्रभात खबर बहुत मजबूती के साथ जनता की आवाज बनता रहा. यह सच है कि मीडिया क्रांति के इस युग में अखबारों में काम करने में पहले जैसी आजादीनहीं है. इसके बावजूद नैतिक मूल्यों को बनायेरखना पत्रकारों का दायित्व होता है.हिंदी पत्रकारिता ने विगत तीन दशकों में उतरोत्तर विकास किया है. एक ओर जहां स्तरीय साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएं एक-एक कर बंद होती गयीं, वहीं हिंदी के दैनिक अखबारों ने उन पत्रिकाओं की जगह ले ली. अब दैनिक अखबारों में भी वो तमाम सामग्री मिलने लगी है, जो स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में आया करती थीं.

चाहे वह सामाजिक, आर्थिक और साहित्यिक आलेख हों अथवा रचनात्मक साहित्य, यानी कविता, कहानी, संस्मरण, बाल साहित्य, महिलाओं पर सामग्री, फिल्मी हलचल आदि-आदि. प्रभात खबर ने अपनी स्थापना काल से ही इस तरह की सामग्री देकर पाठकों का भरपूर मनोरंजन किया है. इधर कई वर्षो से ऐसा समाचार आ रहा है कि हिंदी के दैनिक अखबारों की प्रसार संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है.आज देश में हिंदी अखबारों के पाठकों की अनुमानित संख्या सात करोड़ से भी अधिक है. दैनिक अखबार पहले मात्र शहरों में दिखायी पड़ते थे, अब गांवों में पहुंच रहे हैं. अब गांवों की समस्याएं एवं अन्य समाचार प्रमुखता के साथ अखबारों में आ रहे हैं. प्रभात खबर ने पत्रकारिता के हर मोर्चे पर अपनी सफलता की छाप छोड़ी है. जो स्तुत्य है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रभात खबर के शुरुआती वर्षो में इससे जुड़े रहे हैं)

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