कोई कमी नजर नहीं आती हम
राजकुमार लालपिछले 30 साल से प्रभात खबर पढ़ रहा हूं. इसकी मुख्य वजह यह है कि इसमें बड़ी खबरें भी कम शब्दों में कह दी जाती हैं और सारी सूचना भी मिल जाती है. खबर पढ़ते वक्त उसमें कोई कमी महसूस नहीं आती. यही कारण है कि अन्य अखबारों की अपेक्षा प्रभात खबर में अब […]
राजकुमार लाल
पिछले 30 साल से प्रभात खबर पढ़ रहा हूं. इसकी मुख्य वजह यह है कि इसमें बड़ी खबरें भी कम शब्दों में कह दी जाती हैं और सारी सूचना भी मिल जाती है. खबर पढ़ते वक्त उसमें कोई कमी महसूस नहीं आती. यही कारण है कि अन्य अखबारों की अपेक्षा प्रभात खबर में अब तक मेरी रुचि बनी है.
हजारीबाग में सर्वप्रथम प्रभात खबर की आठ-10 प्रतियां आयी थीं. इसके बाद अचानक अखबार के संस्थापक ज्ञानरंजन जी से हजारीबाग में मुलाकात हुई. उन्होंने कहा कि यहां अखबार की बिक्री बढ़ानी है. हमने सर्वप्रथम 250 लोगों से पेपर का एडवांस लेकर सभी को पेपर दे दिया. हमने सामाजिक सेवा के भाव से 250 पेपर के पैसे लेकर पहुंचा दिया. उसके बाद रांची से सूचना आयी कि जो लोग पेपर बांटते हैं उन्हें कुछ पैसा दे दीजिये. उस समय यहां राजेंद्र प्रसाद रिपोर्टर हुआ करते थे.
जो रिपोर्ट मुझे दिया करते थे और मैं रांची भेज देता था. सुबह चार बजे के अंदर पेपर हजारीबाग आ जाता था और उसी वक्त से शहर में बंटना शुरू हो जाता था. सुबह-सुबह पेपर मिलने से उनमें पेपर पढ़ने की रुचि बढ़ने लगी. मैंने आज तक अखबार के मालिक से पेपर बांटने की कोई रकम नहीं ली. सेवा भाव से काम करते थे. मेरे पास चार विद्यार्थी थे. उन्हीं से पेपर बंटवाते थे.पाठक के रूप में यह काम करके दकाफी आत्मसंतुष्टि मिलती थी. पहले खबर लंबी-चौड़ी होती थी. अभी खबर छोटी होती है. 1984 में जो पहला अंक आया वह काफी आकर्षक एवं खबरों को सजा कर लिखा गया था. उस समय रांची, टाटा, धनबाद, गिरिडीह की कुछ-कुछ खबरें अखबारों में पढ़ते थे.
हजारीबाग में 1989 में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का खेल शुरू हुआ. लेकिन प्रभात खबर ने संतुलित सूचना रांची को दी. किसी के पक्ष व विपक्ष में नहीं. जो सच्चई थी उसी की हमने टेलीफोन से जानकारी दी. उस समय माहौल सुधारने में प्रभात खबर ने अच्छी भूमिका निभायी. माओवादियों की पकड़ जब पूरे जिले में थी, रिपोर्टर जान जोखिम में डाल कर खबर जमा करते थे.नाम नहीं छापने की शर्त पर खबर देते थे. हमेशा माओवादियों से डर बना रहता था. यह समय 1990 का था. उस समय सुदूरवर्ती जंगली इलाकों की खबरें प्रमुखता से छपती थीं. प्रभात खबर में हर प्रकार की खबरें होती थीं. कहीं भी कोई घटना घटती थी तो अगले दिन पढ़ने को मिल जाता था. पेपर बेबाक खबरों को छापता था. किसी के दबाव में नहीं रहा.
प्रभात खबर ने बहुत से भंडाफोड़ किये. अब भी अखबार इस काम में पीछे नहीं रहता. कोई बड़ी घटना व गैंग के पकड़े जाने की खबर मुझे अच्छी लगती थी. राजनीतिक खबरें भी पढ़ता था. लेकिन एक बात है, प्रभात खबर में सभी खबरें संतुलित होती हैं. इसमें छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी खबर समय पर पढ़ने को मिल जाती है. शहर की कोई खबर छूटने नहीं पाती.हमने प्रभात में अब तक कोई खबर गलत नहीं पायी. पहले प्रभात खबर में रंगीन पेज नहीं आते थे. यह काफी दिनों के बाद रंगीन पेज पर खबर छप रही है. पहले लगभग आठ पेज हुआ करता था. प्रभात खबर में पेज की संख्या बढ़ने का कारण शहर में अन्य समाचार पत्रों से होनेवाली प्रतियोगिता है. पेपरों में हार्स रेस शुरू हो गया.
अखबार के पेज क्रमश: बढ़ाया जाने लगा. आज तक प्रभात खबर पढ़ते रहने का कारण अखबार की खबरों पर विश्वास, निष्पक्षता एवं दूसरे दिन खबर का छपना ही है. पहले आज की तरह पाठकों को जोड़ने के लिए कोई स्कीम नहीं चलायी जाती थी. हम खबर पर विश्वास एवं सच्चई के कारण पढ़ते आ रहे हैं. प्रभात खबर ने हमेशा शहर की जन समस्याओं को उठाया है. मुझे याद है कि 15 साल पहले शहर की खराब सड़कों को ठीक करने का मुद्दा उठायाथा.पहले हजारीबाग के सभी पेज को मिला कर मुश्किल से तीन चार फोटो हुआ करता था. लेकिन आज स्कूली बच्चों से लेकर हर कार्यक्रम का फोटो के साथ खबर पढ़ने को मिलती है. फोटो की संख्या प्रभात खबर में बढ़ी है. आज पहले की अपेक्षा ज्यादा खबरें पढ़ने को मिलती हैं.
(लेखक ग्वाला टोली, बड़ा बाजार, हजारीबाग में रहते हैं और प्रभात खबर के शुरुआत से पाठक हैं)