निजामुद्दीन ने विधानसभा से जालसाजी की
रांची: सजायाफ्ता निजामुद्दीन अंसारी ने विधायक बन विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया. सजा होने के बाद अवैध रूप से विधायक का वेतन भत्ता और सुविधाएं भी लीं. विधानसभा के साथ की गयी इस जालसाजी के मामले में अध्यक्ष की अनुमति के बाद उनके विरुद्ध कार्रवाई हो सकती है. उनके द्वारा वेतन भत्ता मद में […]
रांची: सजायाफ्ता निजामुद्दीन अंसारी ने विधायक बन विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया. सजा होने के बाद अवैध रूप से विधायक का वेतन भत्ता और सुविधाएं भी लीं. विधानसभा के साथ की गयी इस जालसाजी के मामले में अध्यक्ष की अनुमति के बाद उनके विरुद्ध कार्रवाई हो सकती है. उनके द्वारा वेतन भत्ता मद में ली गयी राशि की वसूली पेंशन से की जा सकती है.
निजामुद्दीन अंसारी को दिसंबर 2013 में सक्षम अदालत से दो वर्ष की साधारण कारावास की सजा दी गयी थी. सजा की अवधि तीन वर्ष से कम होने की वजह से सक्षम अदालत ने तत्काल जमानत पर रिहा कर दिया था. सजा सुनाये जाने की जानकारी निजामुद्दीन अंसारी ने विधानसभा से छिपा ली. सजा होने के बाद भी उन्होंने शीतकालीन सत्र और 2014 के बजट और मॉनसून सत्र में हिस्सा लिया. वह विधायक की हैसियत से विधानसभा में बैठे और सवाल भी पूछे. इधर निजामुद्दीन अंसारी ने दुबारा राजधनवार सीट से नामांकन दाखिल किया. चुनाव आयोग को सजायाफ्ता होने की सूचना मिली, तो उनका नामांकन रद्द कर दिया. इसके बाद यह मामला सार्वजनिक हुआ.
सितंबर से ही प्रभावी है कानून
सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की उस उपधारा को समाप्त कर दिया, जिसमें सजा होने के बावजूद राजनीतिज्ञों को चुनाव लड़ने के अलावा विधानसभा या लोकसभा का सदस्य बने रहने का अधिकार था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार ने 23 सितंबर 2013 को एक अधिसूचना जारी की थी. इसके तहत किसी भी जनप्रतिनिधि को दो वर्ष की सजा होने पर उसकी सदस्यता समाप्त हो जायेगी, साथ ही वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जायेगा. इस नियम के तहत निजामुद्दीन की सदस्यता सजा की तिथि से ही समाप्त हो जानी थी, लेकिन इससे संबंधित सूचना किसी भी स्नेत से विधानसभा अध्यक्ष को नहीं मिली. विधानसभा सूत्रों के अनुसार मामले से संबंधित जानकारी सरकारी वकील ने भी नहीं दी.
दो समितियों के सदस्य भी रहे
निजामुद्दीन अंसारी विधायक की हैसियत से विधानसभा की दो समितियों के सदस्य भी थे. सजा होने के बावजूद उन्होंने प्रत्यायुक्त समिति और सरकारी आवास समिति में सदस्य रहे और संभवत: इनकी बैठकों भी हिस्सा लिया. इसके एवज में उन्होंने यात्र भत्ता का भी दावा किया.
10 नवंबर को दिया था इस्तीफा
निजामुद्दीन असांरी ने इस महीने 10 तारीख को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. झामुमो में शामिल होने के बाद निजामुद्दीन ने झाविमो के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन वह एक वर्ष तक झाविमो के विधायक बने रहे. निजामुद्दीन अंसारी हेमंत सोरेन के विश्वासमत के दौरान भी सदन से गायब रहे थे. इसके खिलाफ झाविमो ने स्पीकर से शिकायत की थी. हॉर्स ट्रेडिंग में भी निजामुद्दीन अंसारी का नाम आया था. वह पार्टी के खिलाफ जाकर एक राज्यसभा प्रत्याशी के प्रस्तावक बन गये थे.
एक वर्ष तक अवैध रूप से क्या-क्या लिया
वेतन के रूप में : 68 हजार (प्रति माह)
निजी सहायक के लिए : 15000 प्रतिमाह
अनुसेवक : 5000 प्रतिमाह
विधायक सत्र में आयें या कमेटी की बैठक में आयें, तो प्रति दिन के हिसाब से 1000 रुपये मिलते हैं. यह राशि लगभग हर माह 30 हजार होती है.
यात्रा और दैनिक भत्ता : राज्य के अंदर 1000 और राज्य के बाहर 1500 रुपये प्रति किलोमीटर.
अब आगे क्या हो सकता है
अवैध रूप से वेतन और यात्र भत्ता के मद में ली गयी राशि पेंशन से वसूल हो सकती है.
सूचना छुपाने के लिए निजामुद्दीन असांरी पर एफआइआर दर्ज हो सकती है.
अवैध रूप से पूछे गये सवाल, वाद-विवाद कार्यवाही से हटाये सकते हैं.
विधानसभा छानबीन कर सकती है कि किन-किन स्नेत ने सूचना छुपायी.
क्या कहते हैं जिम्मेवार
हमें किसी भी स्नेत से सूचना नहीं मिली. निजामुद्दीन अंसारी ने भी सदन को गुमराह किया. उन्होंने इसकी सूचना छुपायी. वह अवैध रूप से विधायक रहे. विधानसभा से उनके वेतन और दिये गये दूसरे भत्ते की वसूली होगी. विधायक के पेंशन से वसूली हो सकती है. सजा होने के बाद सूचना छिपाना अपराध है. इससे संबंधित मामला भी दर्ज हो सकता है.
सुशील कुमार सिंह, प्रभारी सचिव, विधानसभा