पूर्व डीजीपी रथ पर कार्रवाई की अनुशंसा
रांची: दारोगा नियुक्ति में हुई गड़बड़ी को लेकर डीजीपी राजीव कुमार ने पूर्व डीजीपी जीएस रथ के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की है. उन्होंने मेधा सूची को नये सिरे से प्रकाशित करने और वैसे उम्मीदवारों को नियुक्त करने की अनुशंसा की है, जिन्हें पूर्व डीजीपी जीएस रथ के फैसले के तहत अयोग्य करार दे दिया […]
रांची: दारोगा नियुक्ति में हुई गड़बड़ी को लेकर डीजीपी राजीव कुमार ने पूर्व डीजीपी जीएस रथ के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की है. उन्होंने मेधा सूची को नये सिरे से प्रकाशित करने और वैसे उम्मीदवारों को नियुक्त करने की अनुशंसा की है, जिन्हें पूर्व डीजीपी जीएस रथ के फैसले के तहत अयोग्य करार दे दिया गया था. उन्होंने मामले में अभ्यर्थियों की ओर से दायर रिट याचिकाओं में नये सिरे से शपथ पत्र दायर करने की भी अनुशंसा की है.
सलाहकार ने दिया था जांच का आदेश : दारोगा, सार्जेट और कंपनी कमांडर की नियुक्ति में हुई गड़बड़ी को लेकर दायर 45 रिट याचिकाओं के मद्देनजर राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल के सलाहकार के विजय कुमार ने मामले की जांच का आदेश दिया था. जांच रिपोर्ट गृह सचिव को भेजी गयी. इसमें कहा गया कि तत्कालीन डीजीपी जीएस रथ ने मेरिट के बदले प्रेफरेंस के आधार पर रिजल्ट बनाने का एकतरफा निर्णय लिया.
इसके लिए उन्होंने कोई लिखित आदेश जारी नहीं किया. नियुक्ति के लिए मेरिट लिस्ट को दरकिनार कर बनायी गयी सफल उम्मीदवारों की सूची फरवरी 2012 में पुलिस की वेबसाइट पर जारी कर दी गयी. राज्य लोक सेवा आयोग ने भी अपना मंतव्य देते हुए मेरिट के बदले प्रेफरेंस के आधार पर बनायी गयी सूची को नियम संगत नहीं माना है. तत्कालीन डीजीपी ने अपना पक्ष रखते हुए जांच कमेटी को कहा कि प्रेफरेंस के आधार पर सूची बनाने का फैसला चयन समिति की बैठक में लिया गया था. पर जांच में उनके दावे की पुष्टि नहीं हो पायी. चयन समिति के सदस्यों ने भी अपने बयान में कहा है कि सूची तैयार करने से पहले किसी तरह की बैठक नहीं हुई थी.
फिर से शपथ पत्र दायर करने की अनुशंसा : डीजीपी राजीव कुमार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि नियुक्ति में हुई गड़बड़ी को लेकर हाइकोर्ट में कुल 45 रिट याचिका दाखिल की गयी है. इनमें 27 में शपथ पत्र दायर कर प्रेफरेंस के आधार पर सफल उम्मीदवारों की घोषणा की बात कही गयी है, जो तर्कसंगत नहीं लगता. 18 मामलों में अभी शपथ पत्र दायर नहीं किया गया है. इसलिए बेहतर होगा कि सरकार के स्तर से जिन 27 मामलों में शपथ पत्र दायर किया जा चुका है, उनमें नये सिरे से शपथ पत्र दायर कर वास्तविक स्थिति की जानकारी दी जाये.
ट्रांसफर-पोस्टिंग में दिखती है गुटबाजी
रांची: सीनियर पुलिस अफसरों के बीच गुटबाजी का असर पूरे पुलिस विभाग और उसके काम पर पड़ रहा है. अपने गुट के लोगों को पोस्टिंग दिलाने के लिए अधिकारी आपस में भिड़ने लगे हैं. हाल ही में एक जिले के एसपी को हटाया गया. सरकार ने जिस अफसर की वहां पोस्टिंग करने का निर्णय लिया, मुख्यालय ने उन पर जांच चलने की बात कह कर वहां दूसरे की पोस्टिंग करवा दी. इसका कारण था. मुख्यालय में आज जिस गुट की चलती है, उसका मानना है कि सरकार ने जिस अफसर का नाम दिया, वह दूसरे गुट का है.
एक अन्य घटना. एक एसपी को सिर्फ इसलिए हटवाया गया, क्योंकि नया गुट समझता है कि वह पहले के ताकतवर गुट का अफसर है. हाल में हुए पुलिस उपाधीक्षकों और एसपी के तबादले की सूची को देखने से भी यही संकेत मिलता है कि तबादले में ताकतवर गुट की चलती रही. एसडीपीओ के पद अपने गुट के लोगों के बीच बांटे गये. एक पुलिस अधिकारी कहते हैं : पुलिसिंग पर इसका बड़ा खराब असर पड़ रहा है. गुटबाजी करने वाले सीनियर अफसर हर जिले में अपने गुट के लोगों को रख कर जिले के एसपी पर नजर रखते हैं. ये लोग सूचना जुटाने में लगे रहते हैं. उन्हीं सूचनाओं के आधार पर जिलों में थाना प्रभारी के पद पर अपनी पसंद के लोगों को रखने के लिए दबाव बनाते हैं. दबाव में नहीं आने वाले जिलों के एसपी को कई बार छोटी गलतियों के लिए भी परेशानी ङोलनी पड़ती है. गुटबाजी के कारण ही उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के एक जिले में तीन डीएसपी के बीच काम के बंटवारे को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं. एक जिले के दारोगा, जो डीआइजी के करीबी हैं, ने अपने एसपी को सूचना दिये बगैर ही जिला छोड़ दिया. जब एसपी ने सस्पेंड कर दिया तो मामला शीर्ष पर पहुंच गया.
कोल्हान प्रमंडल के एक जिले का वाक्या है. थानेदार ने बस मालिक से रुपये वसूले. शिकायत मिलने पर एसपी ने जब पूछताछ की तो दारोगा ने कह दिया कि चंदा वसूल रहा था रिश्वत नहीं. उस पर कार्रवाई नहीं हुई, क्योंकि वह खास गुट कादारोगा है.