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अधिक बच्चे दिखा कर बढ़ा लिया बजट

।।सुनील कुमार झा।।रांचीः राज्य में कक्षा आठ तक के बच्चों को किताब देने के नाम पर गड़बड़ी का आरोप है. बच्चों की संख्या को आधार बना कर किताब आपूर्ति के टेंडर में खेल हुआ है. 2005-06 से शुरू हुई इस योजना में कई बार बजट बढ़ाने के लिए मनमाने तरीके से बच्चों की संख्या तक […]

।।सुनील कुमार झा।।
रांचीः राज्य में कक्षा आठ तक के बच्चों को किताब देने के नाम पर गड़बड़ी का आरोप है. बच्चों की संख्या को आधार बना कर किताब आपूर्ति के टेंडर में खेल हुआ है. 2005-06 से शुरू हुई इस योजना में कई बार बजट बढ़ाने के लिए मनमाने तरीके से बच्चों की संख्या तक बढ़ा दी गयी है. 2005-06 से 2012-13 तक किताब की छपाई के खर्च में लगभग 67 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.

क्या फरजी थे 20 लाख बच्चे : वर्ष 2009-10 में बजट बढ़ाने के लिए पिछले वर्ष की तुलना में करीब 13 लाख बच्चे बढ़ा दिये गये. बजट करीब 20 करोड़ बढ़ा दिया गया. 2009-10 व 2010-11 में बच्चों की संख्या में करीब 20 लाख का अंतर है. 2009-10 में बच्चों की संख्या 64,26,504 बतायी गयी. इतने ही बच्चों को किताब देने का दावा किया गया. इसके लिए कुल खर्च 72.71 करोड़ बताया गया. पर इसके अगले वर्ष 2010-11 में बच्चों किताब देने का समय आया, तो बच्चों की संख्या घट कर करीब 44 लाख हो गयी. यानी 2009-10 की तुलना में करीब 20 लाख बच्चे कम हैं. बाद में इसी आधार पर बजट तय किया गया. कुल कुल खर्च 48.91 करोड़ हुआ. यानी करीब 24 करोड़ कम. अब सवाल उठ रहा है कि एक वर्ष में स्कूल से 20 लाख बच्चे कहां चले गये.

बजट 30 करोड़ बढ़ा : किताब आपूर्ति के टेंडर में सबसे अधिक गड़बड़ी की शिकायत 2012-13 में आयी. इस वर्ष बजट में 30 करोड़ की बढ़ोतरी हुई थी. वर्ष 2011-12 में 45 लाख बच्चों की किताबों पर 45.58 करोड़ खर्च हुए थे. पर 2012-13 में इतने ही बच्चों पर 75.99 करोड़ खर्च हो गये. यानी बिना बच्चों की संख्या बढ़े, बजट 30 करोड़ बढ़ा दिया गया.

बच्चों की संख्या में इस तरह की बढ़ोतरी और कमी संदेहास्पद प्रतीत होता है. बजट में भी एक वर्ष में 30 करोड़ की बढ़ोतरी सही नहीं है. इस योजना में अगर गड़बड़ी हुई है, तो इसकी जांच करायी जायेगी. गीताश्री उरांव, शिक्षा मंत्री

नि:शुल्क किताब देने के नाम पर भारी गड़बड़ी

मध्याह्न् भोजन के आधार पर तय होती है बच्चों की संख्या

स्कूलों में किताबों की आपूर्ति मध्याह्न् भोजन खानेवाले बच्चों को आधार बना कर किया जाता है. पर किताबों की संख्या और मध्याह्न् भोजन खानेवाले बच्चों की संख्या में काफी अंतर है. 2009-10 में कुल 64,26,504 सेट किताबों की छपाई की गयी थी. पर इस वर्ष मध्याह्न् भोजन खानेवाले बच्चों की संख्या मात्र 33,48,645 थी.

टेंडर में खूब हुआ खेल

2012-13 में पिछले वर्ष की तुलना में विद्यार्थियों की संख्या बढ़े बिना ही किताब छपाई के खर्च में करीब 30 करोड़ की वृद्धि हो गयी. इस वर्ष तीन बार टेंडर रद्द किया गया. छह बार टेंडर फाइनल करने की तिथि बढ़ायी गयी. पहले टेंडर में पेपर मील क्षमता प्रति वर्ष पांच हजार मीट्रिक टन थी, जबकि दूसरे टेंडर में घटा कर तीन हजार कर दी गयी. तीसरे टेंडर में प्रकाशक के लिए सरकारी किताब छापने की शर्त का पूरा करना अनिवार्य कर दिया गया. पहले टेंडर में जिन प्रकाशकों ने हिस्सा लिया था, वही तीसरे टेंडर में भी थे. पर कुछ महीनों में उन्हीं प्रकाशकों की पैकेज दर में बढ़ोतरी हो गयी. पहले टेंडर में प्रकाशक लगभग 60 करोड़ में किताब छापने को तैयार थे, वहीं तीसरे टेंडर में यह बढ़ कर 79 करोड़ हो गया.

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